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मराठा आरक्षण आंदोलनः क्यों भभका महाराष्ट्र, जानिए क्या चाहता है मराठा समुदाय

By स्वाति सिंह | Updated: July 25, 2018 15:30 IST

मराठा क्रांति मोर्चा के लोगों ने मुंबई के कई जगहों दुकान बंद करा दी है। इसके साथ ही उन्होंने ठाणे में लोकल ट्रेन भी रोक दी है।

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मुंबई, 25 जुलाई: महाराष्ट्र का मराठा समुदाय नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की मांग को लेकर कई दिनों से प्रदर्शन कर रहा है। लेकिन सोमवार को औरंगाबाद में एक आंदोलनकारी की मौत के बाद इस आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया है। मराठा क्रांति मोर्चा ने बुधवार को मुंबई बंद का आह्वान किया। दिनभर आगजनी, पत्‍थरबाजी के बाद शाम को संस्‍था बंद वापस ले लिया। इससे पहले मराठा क्रांति मोर्चा के लोगों ने मुंबई के कई जगहों दुकान बंद करा दी। इसके साथ ही उन्होंने ठाणे में लोकल ट्रेन भी रोक दी। वह जगह जगह तोड़-फोड़ किया। वहीं औरंगाबाद के गंगापुर में मराठा क्रांति मोर्चा के सदस्यों ने ट्रक को भी आग के हवाले कर दिया।

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मराठा आंदोलन का दावा है कि इसका कोई नेतृत्व नहीं करता। कहा जाता है कि यह एक ये एक ख़ामोश आंदोलन है और यह बात सच भी है। इसकी शुरुआत 15 अक्टूबर को कोल्हापुर में मराठा रैली के दौरान हुई थी। मोर्चों की कवरेज सोशल मीडिया सेल करती है। यह काम महाराष्ट्र के कई शहरों में छोटे-छोटे कमरों से किया जाता है। जिसे ये वॉर रूम कहते हैं। पुणे में तीन लोगों की टीम है। यह वहां बैठकर छोटे कमरों से मोर्चों को कंट्रोल करते हैं।

मराठा समुदाय रही में ओबीसी दर्जे की मांग कर रहे हैं। गौरतलब है कि 2014 में कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों मे 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था। जिसपर नवंबर 2014 में बम्बई हाई कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही कोर्ट ने कुल आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं बढ़ाने की बात कही थी। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी बताया कि इस बात कोई सबूत नहीं मिले हैं कि मराठा समुदाय आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ेपन का शिकार है।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, कोई भी राज्य 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकता। आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था के तहत देश में अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण है। 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब मराठा समुदाय पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में डलवा दिया जाए। लेकिन यह काम केवल केंद्र सरकार ही कर सकती है।

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