सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति दलों को लताड़ लगाते हुए कहा, "नेता जिस पल राजनीति में धर्म का उपयोग बंद कर देंगे, हेट स्पीच खुद-ब-खुद खत्म हो जाएगी"
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 29, 2023 06:20 PM2023-03-29T18:20:57+5:302023-03-29T18:24:50+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति दलों द्वारा जनता के बीच धार्मिक मुद्दों को उठाये जाने पर तीखी आलोचना करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों का पहला और मुख्य कार्य देश में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देना है लेकिन यह देखकर बेहद अफसोस होता है कि राजनीतिक दल जनता के बीच धार्मिक मुद्दों को पेश करते हैं और इस कारण से हेट स्पीच को बढ़ावा मिलता है।
दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने देश में बढ़ती हेट स्पीच की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता प्रगट करते हुए राजनीति दलों को जमकर लताड़ लगाई और राजनीति में धार्मिक मुद्दों को उठाये जाने की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों का पहला और मुख्य कार्य देश में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देना है लेकिन यह बेहद अफसोस है कि राजनीतिक दल धार्मिक मुद्दों को जनता के सामने पेश करते हैं और इसके कारण हेट स्पीच को बढ़ावा मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने बुधवार को बुधवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए देश में तेजी से फैसले वाले नफरती भाषणों को बेहद गंभीरता से लेते हुए बेहद तल्ख अंदाज में कहा कि इस देश में जिस पल राजनीति और धर्म अलग-अलग हो जाएंगे और राजनीति दलों के नेता अपनी राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल करना बंद कर देंगे, तो नफरती भाषणों पर खुद-ब-खुद लगाम लग जाएगी।
इसके साथ ही देश की शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि देश में ऐसे बहुत से असामाजिक तत्व हैं, जो दिन-रात केवल नफरत भाषणों को जनता के बीच फैलाने में लगे हुए हैं लेकिन आम लोगों को खुद को संयमित रखते हुए ऐसे नफरती भाषणों से बचने का प्रयास करना चाहिए।
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू और अटल बिहारी वाजपेयी के सार्वजनिक भाषणों का हवाला देते हुए कहा कि एक समय था जब देश के दूर-दराज इलाकों से लोग उनके दिये भाषणों को सुनने के लिए बहुत उत्साह और उम्मीद के साथ इकट्ठा होते थे। जनता को उन नेताओं के भाषणों से देश के हालात और भविष्य के बारे में सही तस्वीर को समझने में मदद मिलती थी, उन नेताओं ने कभी भी धर्म के नाम पर देश को नफरत की आग में झोंकने का काम नहीं किया। लेकिन अफसोस है कि आज की तारीख में सभी राजनीतिक दलों में वैसे नेताओं की बेहद कमी है।
इसके साथ ही दोने जजों ने इस बात पर हैरानी जताई कि आखिर अदालतें नफरती भाषणों के लिए कितने नेताओं के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सकती हैं। दोनों जजों की बेंच ने कहा कि भारत की जनता और राजनीतिक दलों के नेता क्यों नहीं अन्य नागरिकों या समुदायों का तिरस्कार नहीं करने का संकल्प लेते हैं।
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों, पुलिस प्रशासन और गामप्राधिकरणों के खिलाफ दायर की गई अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "ये एक दिन नहीं हो रहा है, हर दिन असामाजिक तत्व टीवी और सार्वजनिक मंचों के जरिये दूसरों समुदाय को बदनाम करने के लिए लगातार नफरती भाषण दे रहे हैं लेकिन कोई भी उन पर सख्ती से लगाम लगाने का प्रयास नहीं कर रहा है।"
इस मामले में केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट का ध्यान एक व्यक्ति विशेष द्वारा केरल में विशेष समुदाय के खिलाफ दिए गए अपमानजनक भाषण की ओर दिलाया और सवाल उठाया कि इस संबंध में याचिका पेश करने वाले शाहीन अब्दुल्ला ने कोर्ट के सामने देश में नफरती भाषणों की घटनाओं के संबंध में केवल चुनिंदा उदाहरणों को पेश किया है।