उच्चतम न्यायालय ने आरोपपत्र दायर होने के बाद जमानत देने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

By भाषा | Updated: October 7, 2021 21:58 IST2021-10-07T21:58:03+5:302021-10-07T21:58:03+5:30

Supreme Court issues guidelines for grant of bail after chargesheet is filed | उच्चतम न्यायालय ने आरोपपत्र दायर होने के बाद जमानत देने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

उच्चतम न्यायालय ने आरोपपत्र दायर होने के बाद जमानत देने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए

नयी दिल्ली, सात अक्टूबर उच्चतम न्यायालय ने आरोपपत्र दाखिल होने के बाद जमानत देने के लिए बृहस्पतिवार को दिशा-निर्देश जारी किए और कहा कि निचली अदालतों को जांच के दौरान आरोपी के आचरण को देखते हुए अंतरिम राहत देने से रोका नहीं जा सकता।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने इस मुद्दे पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू और वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा द्वारा दिए गए सुझावों को स्वीकार कर लिया।

इसने कहा कि अपराधों को ए से डी तक चार श्रेणियों में रखा गया है और दिशा-निर्देश संबंधित अदालतों के विवेक को प्रभावित किए बिना तथा वैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किए गए हैं।

पीठ ने कहा, "हम दिशा-निर्देशों को स्वीकार करने और उन्हें अदालतों के लाभ के लिए अदालत के आदेश का हिस्सा बनाने के इच्छुक हैं।"

श्रेणी ए के अपराधों में शामिल हैं: ए) पहली बार में सामान्य सम्मन/वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति सहित; बी) यदि ऐसा आरोपी समन की तामील के बावजूद पेश नहीं होता है, तो प्रत्यक्ष उपस्थिति के लिए जमानती वारंट जारी किया जा सकता है; सी) जमानती वारंट जारी होने के बावजूद पेश होने में विफल रहने पर गैर जमानती वारंट।

इसके अलावा, गैर जमानती वारंट को रद्द किया जा सकता है या आरोपी की प्रत्यक्ष उपस्थिति पर जोर दिए बिना जमानती वारंट/समन में परिवर्तित किया जा सकता है, यदि आरोपी की ओर से ऐसा आवेदन गैर जमानती वारंट के निष्पादन से पहले सुनवाई की अगली तारीख को प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित होने के वादे के साथ किया जाता है।

अंत में, श्रेणी ए में, ऐसे आरोपियों के पेश होने पर जमानत आवेदनों पर निर्णय इस आधार पर लिया जा सकता है कि आरोपी को हिरासत में लिया जा रहा है या जमानत आवेदन पर फैसला होने तक अंतरिम जमानत दी जा सकती है।

दिशा-निर्देश उन "श्रेणियों/अपराधों के प्रकार" के लिए जारी किए गए, जिनमें सात साल या उससे कम के कारावास से जुड़े दंडनीय अपराध शामिल हैं या जो श्रेणी बी और डी में नहीं आते हैं; मृत्युदंड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक कारावास से जुड़े दंडनीय अपराध; जमानत के लिए कड़े प्रावधान वाले विशेष अधिनियमों के तहत दंडनीय अपराध, जैसे एनडीपीएस कानून, धनशोधन रोकथाम कानून, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, कंपनी अधिनियम और आर्थिक अपराध जो विशेष अधिनियमों द्वारा कवर नहीं किए गए हैं।

न्यायालय ने कहा कि अपेक्षित शर्तों के दायरे में वे लोग आते हैं जिन्हें जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया हो, और वे लोग जिन्होंने कभी भी बुलाए जाने पर जांच अधिकारी के समक्ष पेश होकर पूरी जांच में सहयोग किया हो।

इस श्रेणी में ऐसे अभियुक्तों के जमानत आवेदन भी शामिल होंगे, जिन पर आरोपी को हिरासत में लिए बिना या जमानत अर्जी पर निर्णय होने तक अंतरिम जमानत देकर निर्णय लिया जा सकता है।

श्रेणी बी और डी में गुणदोष के आधार पर निर्णय के लिए जारी जमानत आवेदन की प्रक्रिया के अनुसार अदालत में आरोपी की उपस्थिति शामिल होगी।

वहीं, श्रेणी सी में, श्रेणी बी और डी की तरह ही "एनडीपीएस, पीएमएलए, 212 (6) कंपनी अधिनियम 43 डी (5) यूएपीए, पोक्सो आदि के तहत जमानत के प्रावधानों के अनुपालन की अतिरिक्त शर्त शामिल होगी।’’

श्रेणी ए पुलिस और शिकायत दोनों मामलों से संबंधित है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालतें और उच्च न्यायालय जमानत आवेदनों पर विचार करते समय उपरोक्त दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखेंगे।

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Web Title: Supreme Court issues guidelines for grant of bail after chargesheet is filed

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