जन्मदिन पर पढ़ें क्रांतिकारी हिन्दी कवि सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' की 5 प्रतिनिधि रचनाएँ
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 9, 2018 04:16 PM2018-11-09T16:16:33+5:302018-11-09T16:20:47+5:30
धूमिल को 'कल सुनना मुझे' कविता-संग्रह के लिए 1979 में मृत्योपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। जीते जी धूमिल का केवल एक कविता संग्रह प्रकाशित हो सका था। धूमिल की महज 38 साल की उम्र में 1975 में मृत्यु हो गयी।
सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में शुमार किये जाते हैं। धूमिल का जन्म नौ नवंबर 1936 को वाराणसी के नजदीक स्थित खेवली गाँव में हुआ था। धूमिल को हिन्दी की साठोत्तरी कविता के प्रमुख हस्ताक्षरों में शुमार किया जाता है। 'संसद से सड़क तक' और 'कल सुनना मुझे' उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं। 'कल सुनना मुझे' के लिए उन्हें 1979 में मृत्योपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। धूमिल की 10 फरवरी 1975 को महज 38 साल की उम्र में मृत्यु हो गयी। धूमिल शिल्प और कथ्य दोनों स्तर पर भारत के सबसे क्रांतिकारी और प्रयोगधर्मी कवियों में शुमार किये जाते हैं।
नीचे पढ़ें धूमिल की 5 प्रतिनिधि कविताएँ-
धूमिल की पहली कविता
शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है
या
मिट्टी में गिरे हुए ख़ून
का रंग।
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।
धूमिल की दूसरी कविता
हर तरफ धुआं है
हर तरफ कुहासा है
जो दांतों और दलदलों का दलाल है
वही देशभक्त है।
अंधकार में सुरक्षित होने का नाम है- तटस्थता.
यहां कायरता के चेहरे पर
सबसे ज्यादा रक्त है
जिसके पास थाली है
हर भूखा आदमी उसके लिए,
सबसे भद्दी गाली है।
हर तरफ कुआं है
हर तरफ खाईं है
यहां, सिर्फ, वह आदमी, देश के करीब है
जो या तो मूर्ख है
या फिर गरीब है।
धूमिल की तीसरी कविता
एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।
धूमिल की चौथी कविता
भूख और भूख की आड़ में
चबायी गयी चीजों का अक्स
उनके दाँतों पर ढूँढना बेकार है।
समाजवाद उनकी जुबान पर
अपनी सुरक्षा का एक आधुनिक मुहावरा है।
मगर मैं जानता हूँ कि मेरे देश का समाजवाद
मालगोदाम में लटकती हुई
उन बाल्टियों की तरह है जिस पर ‘आग’ लिखा है
और उनमें बालू और पानी भरा है।
धूमिल की पाँचवी कविता
"सुनो !
आज मैं तुम्हें वह सत्य बतलाता हूँ
जिसके आगे हर सच्चाई छोटी है
इस दुनिया में भूखे आदमी का
सबसे बड़ा तर्क रोटी है।
मगर तुम्हारी भूख और भाषा में
यदि सही दूरी नहीं है
तो तुम अपने आप को आदमी मत कहो
क्योंकि पशुता-
सिर्फ पूंछ होने की मजबूरी नहीं है।