‘‘संवेदनशील मामले’’ में हिमाचल प्रदेश सरकार के रवैये पर हतप्रभ: उच्चतम न्यायालय

By भाषा | Published: August 23, 2021 08:04 PM2021-08-23T20:04:50+5:302021-08-23T20:04:50+5:30

Shocked at the attitude of Himachal Pradesh government in "sensitive matter": Supreme Court | ‘‘संवेदनशील मामले’’ में हिमाचल प्रदेश सरकार के रवैये पर हतप्रभ: उच्चतम न्यायालय

‘‘संवेदनशील मामले’’ में हिमाचल प्रदेश सरकार के रवैये पर हतप्रभ: उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह बेटी के कथित यौन शोषण से संबंधित ‘‘संवेदनशील मामले’’ में हिमाचल प्रदेश सरकार के रवैये पर हतप्रभ है। न्यायालय ने इस मामले में 636 दिन के विलंब से अपील दायर करने पर सख्त रूख अपनाया और राज्य पर 25 हजार रुपये का जुर्माना किया।यह मामला हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के दिसम्बर, 2018 के फैसले के खिलाफ अपील से संबंधित है। इस मामले में उच्च न्यायालय ने आरोपी पिता को बरी कर दिया था। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने अपील दायर करने में 636 दिन के विलंब का जिक्र करते हुए अपने आदेश में कहा कि इस देरी के लिए राज्य जरा भी शर्मिंदा नहीं है। पीठ ने कहा कि वह इस मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए समय सीमा के बाद दायर अपील खारिज नहीं करेगी। साथ ही पीठ ने यह विलंब माफ करते हुए राज्य पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया और यह राशि चार सप्ताह के भीतर उच्चतम न्यायालय समूह ‘सी’ (गैर लिपिक) कर्मचारी कल्याण संघ में जमा कराने का आदेश दिया। पीठ ने कहा, ‘‘लेकिन यह कोई बहाना नहीं है कि इस तरह की अत्यधिक देरी के लिए राज्य के साथ ही और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को जवाबदेह क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए।’’ उच्चतम न्यायालय ने राज्य को जांच करने, जिम्मेदारी तय करने और देरी के लिए संबंधित अधिकारियों से राशि वसूल करने का निर्देश दिया और कहा कि वसूली का प्रमाण पत्र भी उसके समक्ष दायर किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य द्वारा दाखिल याचिका पर पीठ ने नोटिस जारी किया और मामले में बरी किए गए व्यक्ति से जवाब मांगा। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के अगस्त 2017 के उस आदेश के खिलाफ उस व्यक्ति द्वारा दायर एक अपील पर फैसला सुनाया था जिसमें उसे यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के प्रावधानों के तहत दंडनीय कथित अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था। निचली अदालत ने उसे 10 साल जेल की सजा सुनाई थी। जुलाई 2016 में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने अपनी पत्नी की मौत के बाद नाबालिग बेटी का यौन उत्पीड़न किया था। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया था।

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