सुप्रीम कोर्ट का बाबा रामदेव से सवाल- पतंजलि की माफी का आकार भ्रामक विज्ञापनों के बराबर क्यों नहीं, केंद्र से भी पूछे कड़े सवाल
By मनाली रस्तोगी | Published: April 23, 2024 01:50 PM2024-04-23T13:50:20+5:302024-04-23T13:51:17+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद से बड़ा माफी मांगने को कहा. अदालत ने केंद्र से उनके द्वारा की गई कार्रवाई पर कई कड़े सवाल भी पूछे।
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सुप्रीम कोर्ट का बाबा रामदेव से सवाल- पतंजलि की माफी का आकार भ्रामक विज्ञापनों के बराबर क्यों नहीं, केंद्र से भी पूछे कड़े सवाल
नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कुछ अखबारों में भ्रामक विज्ञापन चलाने के लिए बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद द्वारा जारी माफी के आकार पर नाराजगी व्यक्त की। कोर्ट ने केंद्र से कई कड़े सवाल भी किए और अगली सुनवाई में जवाब के साथ तैयार होकर आने को कहा।
पीठ ने मामले को 30 अप्रैल के लिए स्थगित कर दिया और कहा कि वह रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद द्वारा समाचार पत्रों में जारी माफी का वास्तविक आकार देखना चाहती है। पतंजलि आयुर्वेद ने सोमवार को कुछ अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित कर गलती के लिए माफी मांगी।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की सुनवाई की और वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी से पूछा कि माफी के आकार और भ्रामक विज्ञापनों में इतना बड़ा अंतर क्यों है। रोहतगी ने कहा कि रामदेव ने 60 प्रकाशनों में सार्वजनिक माफी मांगी है।
अदालत ने इससे पहले अदालत में हलफनामा दायर करने के बाद भी प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने और भ्रामक विज्ञापन देने के लिए अदालत की अवमानना पर बाबा रामदेव और पतंजलि के एमडी बालकृष्ण की खिंचाई की थी। रामदेव और पतंजलि के एमडी आचार्य बालकृष्ण आज व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित थे।
वहीं, अदालत ने विज्ञापन प्रकाशित करने पर पूछा कि माफी एक हफ्ते बाद क्यों मांगी गयी? क्या माफ़ी का आकार विज्ञापनों के समान है? इसपर रोहतगी ने अदालत को बताया कि पतंजलि अखबार में ताजा और बड़ा माफीनामा जारी करेगा।
पीठ ने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों के प्रति केंद्र के दृष्टिकोण पर कई कड़े सवाल पूछे। कोर्ट ने मामले को अगली सुनवाई तक के लिए स्थगित कर दिया। केंद्र से औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के नियम 170 और उससे संबंधित प्रावधानों के संबंध में अनुशंसा पत्र पर स्पष्टीकरण देने को कहा गया है।
बता दें कि शीर्ष अदालत 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कोविड टीकाकरण और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के खिलाफ एक दुष्प्रचार अभियान चलाने का आरोप लगाया गया है।