देश में आरक्षण व्यवस्था लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर फिर सियासी संग्राम छिड़ गया है. विपक्षी दलों खास तौर पर कांग्रेस ने बयान की तीखी आलोचना करते हुए भाजपा एवं संघ को 'दलित-पिछड़ा विरोधी' करार दिया है. पार्टी ने कहा कि यही इनका 'असली एजेंडा' है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.एल. पूनिया ने आरोप लगाया, ''भाजपा जब भी सरकार में आई तो संविधान में बदलाव की कोशिश की गई. भागवत का बयान आया है कि आरक्षण पर सद्भावपूर्ण बहस होनी चहिए. ये लोग किस तरह की बहस चाहते हैं? यह सोची समझी चाल है. उनकी मानसिकता आरक्षण खत्म करने की है. क्या यह सही नहीं है कि इन लोगों ने शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण खत्म करने की कोशिश नहीं की?''
असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की चाल कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने दावा किया कि भागवत के बयान का मकसद विवाद खड़ा करके लोगों का ध्यान भटकाना है. भाजपा और आरएसएस की आदत है कि जनता को विवादों के जरिये व्यस्त रखें ताकि लोग कठिन सवाल पूछना बंद कर दें और बुनियादी मुद्दे नहीं उठें. लोग अब अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति पर सवाल पूछने लगे हैं तो भागवत का यह बयान आया है.
क्या कहा था भागवत ने
संघ प्रमुख ने रविवार को एक कार्यक्रम में कहा था कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं, उन लोगों के बीच इस पर सौहार्द्रपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए. मैंने पहले भी आरक्षण पर बात की थी लेकिन इससे काफी हंगामा मचा और चर्चा वास्तविक मुद्दे से भटक गई.
आरक्षण का पक्ष लेने वालों को उन लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए जो इसके खिलाफ हैं. इसी तरह से इसका विरोध करने वालों को भी इसका समर्थन करने वालों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए.
आरक्षण-विरोधी मानसिकता त्याग दे संघ तो बेहतर: मायावती
लखनऊ बसपा सुप्रीमो मायावती ने आरएसएस पर हमला करते हुए कहा कि संघ अपनी आरक्षण विरोधी मानसिकता त्याग दे तो बेहतर है.
बसपा नेता ने ट्वीट कर कहा, ''आरएसएस का एससी-एसटी-ओबीसी आरक्षण के संबंध में यह कहना कि इसपर खुले दिल से बहस होनी चाहिए, संदेह की घातक स्थिति पैदा करता है, जिसकी कोई जरूरत नहीं है. आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है जिससे छेड़छाड़ अनुचित व अन्याय है.''