Ayodhya Dispute: रामलला विराजमान ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- सिर्फ विवादित ही नहीं, सरकार द्वारा अधिगृहित 67 एकड़ जमीन भी चाहिए!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 20, 2019 08:48 AM2019-10-20T08:48:59+5:302019-10-20T08:48:59+5:30

रामलला के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से शनिवार को कहा है कि जब भव्य राम मंदिर बनेगा तो श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सरकार द्वारा अधिगृहित जमीन की भी आवश्यकता होगी। गौरतलब है कि 1993 में सरकार ने विवादित स्थल के आस-पास करीब 67 एकड़ जमीन अधिगृहित की थी।

Ram Janmabhumi Babri Masjid Dispute: Ramlalla Virajman seeks not only disputed, but also land acquired by the government! | Ayodhya Dispute: रामलला विराजमान ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- सिर्फ विवादित ही नहीं, सरकार द्वारा अधिगृहित 67 एकड़ जमीन भी चाहिए!

Ayodhya Dispute: रामलला विराजमान ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- सिर्फ विवादित ही नहीं, सरकार द्वारा अधिगृहित 67 एकड़ जमीन भी चाहिए!

Highlightsरामलला विराजमान ने पूरे विवादित स्थल पर तो दावा किया ही है साथ ही 1993 में केंद्र सरकार द्वारा अधिगृहित जमीन की भी मांग की है।हिंदू महासभा ने अदालत से मंदिर निर्माण और व्यवस्था के लिए ट्रस्ट बनाने की मांग की है।

रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस बीच इस मामले में एक पक्षकार रामलला विराजमान ने पूरे विवादित स्थल पर तो दावा किया ही है साथ ही 1993 में केंद्र सरकार द्वारा अधिगृहित जमीन की भी मांग की है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक रामलला के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से शनिवार को कहा है कि जब भव्य राम मंदिर बनेगा तो श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सरकार द्वारा अधिगृहित जमीन की भी आवश्यकता होगी। गौरतलब है कि 1993 में सरकार ने विवादित स्थल के आस-पास करीब 67 एकड़ जमीन अधिगृहित की थी।

रामलला विराजमान के वकील के पारासरन, सीएस वैद्यनाथन और पीवी योगेश्वरन ने कोर्ट से अपने लिखित 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' में कहा कि हिंदुओं के लिए विवादित और अधिगृहित क्षेत्र बेहद जरूरी है। कोर्ट किसी पक्ष ऐसी कोई राहत ना दे जिससे योजना में गड़बड़ी हो।

अखिल भारतीय हिंदू महासभा और मुस्लिम पक्षों ने भी अयोध्या भूमि विवाद को लेकर उच्चतम न्यायालय में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर हलफनामा दाखिल कर दिया है। हिंदू महासभा ने अदालत से मंदिर निर्माण और व्यवस्था के लिए ट्रस्ट बनाने की मांग की है। हिंदू महासभा का कहना है कि संपत्ति का प्रबंध कैसे किया जाए इसे लेकर अदालत आदेश दे सकता है।

कोर्ट ने मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर सभी पक्षों को लिखित नोट देने के लिए तीन दिन की मोहलत दी थी। 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' के तहत यह तय किया जाएगा कि एक से अधिक दावेदारों के विवाद वाली जमीन का मालिकाना हक किसी एक पक्ष को मिलेगा तो अन्य पक्षों इसके बदले क्या मिलेगा।

राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील इस मुद्दे पर 17 नवंबर से पहले ही फैसला आने की उम्मीद है क्योंकि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई इस दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं। संविधान पीठ ने अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला- के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश देने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर इस दौरान विस्तार से सुनवाई की।

शुरूआत में निचली अदालत में इस मसले पर पांच वाद दायर किये गये थे। पहला मुकदमा ‘राम लला’ के भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दायर किया था। इसमें उन्होंने विवादित स्थल पर हिन्दुओं के पूजा अर्चना का अधिकार लागू करने का अनुरोध किया था। उसी साल, परमहंस रामचन्द्र दास ने भी पूजा अर्चना जारी रखने और विवादित ढांचे के मध्य गुंबद के नीचे ही मूर्तियां रखी रहने के लिये मुकदमा दायर किया था। लेकिन बाद में यह मुकदमा वापस ले लिया गया था। बाद में, निर्मोही अखाड़े ने 1959 में 2.77 एकड़ विवादित स्थल के प्रबंधन और शेबैती अधिकार के लिये निचली अदालत में वाद दायर किया। 

इसके दो साल बाद 1961 में उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड भी अदालत में पहुंचा गया और उसने विवादित संपत्ति पर अपना मालिकाना हक होने का दावा किया। ‘राम लला विराजमान’ की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल और जन्म भूमि ने 1989 में मुकदमा दायर कर समूची संपत्ति पर अपना दावा किया और कहा कि इस भूमि का स्वरूप देवता का और एक ‘न्यायिक व्यक्ति’ जैसा है। अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराये जाने की घटना और इसे लेकर देश में हुये सांप्रदायिक दंगों के बाद में सारे मुकदमे इलाहाबाद उच्च न्यायालय को निर्णय के लिये सौंप दिये गये थे। 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला- के बीच बांटने के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। शीर्ष अदालत ने मई 2011 में उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुये अयोध्या में यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था।

समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा से इनपुट्स लेकर

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