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राजस्थानः नागरिकता का मुद्दा तो महाराणा प्रताप के समर्थकों को भी भारी पड़ेगा?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 26, 2019 15:14 IST

दक्षिण राजस्थान के भील, गाड़िया-लुहार आदि के विकास के लिए सरकार ने कई योजनाएं जरूर बनाई, पर कामयाबी कुछ प्रतिशत भी नहीं मिल पाई है.

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वैसे तो नागरिकता कानून का मुद्दा अस्पष्ट है एवं केन्द्र सरकार इसे और भी उलझाती जा रही है, लेकिन यदि यह लागू होता है तथा इसके लिए किसी भी तरह के प्रमाण मांगे जाते हैं तो यह महाराणा प्रताप के प्रबल समर्थक रहे भील, गाड़िया-लुहार आदि को भी भारी पड़ेगा.

दक्षिण राजस्थान के भील, गाड़िया-लुहार आदि के विकास के लिए सरकार ने कई योजनाएं जरूर बनाई, पर कामयाबी कुछ प्रतिशत भी नहीं मिल पाई है. महाराणा प्रताप के संघर्ष के दिनों से ही गाड़िया-लुहार अपनी जिंदगी देसी गाड़ियों में ही गुजार रहे हैं. वे किसी एक जगह स्थाई रूप से नहीं रहते हैं. इन्हें एक जगह बसाने के सरकारी प्रयासों को भी पूर्ण कामयाबी नहीं मिली है, इसलिए शिक्षा, जन्म प्रमाण-पत्र जैसे किसी भी प्रकार के कागजात का उनके जीवन में कोई अस्तित्व ही नहीं है.

इसी तरह आदिवासियों के हजारों बच्चे पढ़ाई शुरू करने की उम्र में ही घर छोड़ कर गुजरात जैसे राज्यों में मजदूरी के लिए चले जाते हैं. इन बच्चों के पास भी अपनी जन्म तिथि, जन्म स्थान का कोई प्रमाण नहीं होता, तो इनके माता-पिता के पास कौनसे दस्तावेज मिल जाएंगे.

हिन्दू, जैन, सिख, सिंधी आदि धर्मों का तो मूल ही भारत है, तो इनसे नागरिकता के लिए किसी भी तरह के प्रमाण मांगने का हक किसी भी सरकार को नहीं है. यह सही है कि अन्य राज्यों की तरह ही राजस्थान के कई क्षेत्रों में भी पड़ौसी देशों के नागरिक आ कर बस गए हैं, लिहाजा सरकार को जल्दी-से-जल्दी ऐसे नागरिकों की पहचान करके आवश्यक कानूनी कदम उठाने चाहिए.

लेकिन, नागरिकता के मुद्दे पर सभी नागरिकों को उलझन में डालने का कोई औचित्य नहीं हैं. इसने कई ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं जिनके सही जवाब किसी के पास भी नहीं है. यही नहीं, केन्द्र सरकार भी इस पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दे रही है, जिसके कारण भ्रम की स्थिति बढ़ती जा रही है.

टॅग्स :नागरिकता संशोधन कानूनराजस्थान
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