प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर विवाद, निजी कंपनियां कमा रही लाभ, जानिए क्यों पैदा हुई ये स्थिति
By शीलेष शर्मा | Published: February 21, 2020 06:15 AM2020-02-21T06:15:00+5:302020-02-21T06:15:00+5:30
2016-17 में बीमा कराने वाले किसानों की संख्या लगभग 5.78 करोड़ थी. जो 2017-18 में घटकर 5.21 करोड़ हो गई. हालांकि 2018-19 में इसमें कुछ इजाफा हुआ और यह संख्या 5.62 करोड़ तक जा पहुंची.
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से जुड़े फैसलों पर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. विवाद का बड़ा कारण सरकार द्वारा किसानों की कीमत पर निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने को लेकर है. उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार प्रीमियम राशि को रूप में जिन कंपनियों को फसल बीमा योजना का काम सौंपा गया था उन्होंने दावों का भुगतान करने के बाद 7701 करोड़ रुपए की राशि प्रीमियम के रूपए में प्राप्त की. जिससे उन्हें सीधे सीधे 19202 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ हुआ.
2019 तक किसान को खरीफ फसल के लिए प्रीमियम राशि 2 फीसदी रवि के लिए 1.5 फीसदी और बागवानी के लिए 5 फीसदी निर्धारित थी लेकिन मंत्रिमंडल ने जो फैसला लिया उसके बाद अब यह माना जा रहा है कि 2 फीसदी की प्रीमियम देने वाले किसान को 27 फीसदी या उससे भी अधिक राशि का भुगतान बीमा कंपनियों को फसल बीमा योजना के लिए देना होगा.
यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है कि सरकार ने अपनी हिस्सेदारी की सीमा 30 और 25 फीसदी निर्धारित कर दी है. शेष 50 फीसदी की राशि का भुगतान राज्य सरकारों के पास छोड़ा है. सवाल उठ रहा है कि यदि राज्य सरकारें अपने हिस्से की राशि में कटौती करती हैं तो उसका भी अतिरिक्त बोझ किसान पर पड़ेगा. ठीक उसी तरह जैसे केंद्र द्वारा 25-30 फीसदी की सीमा तय करने के बाद 27 फीसदी का प्रीमियम किसान को देय हो रहा है. यह राशि बढ़कर 52 फीसदी तक जा सकती है.
कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति उठाई और पूछा कि फसल बीमा योजना का उद्देश्य निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने का है अथवा किसान की सहायता करना. क्योंकि जिस तरह सरकार लगातार बीमा के लिए प्रीमियम की राशि बढ़ा रही है उससे साफ है कि किसान यह राशि चुकाने में समर्थ नहीं होगा और अंत्तोगत्वा यह योजना ही बंद हो जाएगी.
सरकार ने इस बात का भी कोई प्रावधान नहीं किया है कि यदि राज्य सरकारें भुगतान नहीं करती हैं अथवा देरी करती हैं तो उसके लिए क्या प्रावधान होंगे. पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सरकार के इस फैसले पर कड़ी आपत्ती उठाई और पूछा कि देश का गरीब किसान 2 फीसदी प्रीमियम की जगह 27 फीसदी का प्रीमियम कैसे भरेगा. उन्होंने ये भी पूछा कि इस बात की क्या गारंटी है कि राज्य सरकारें अपने हिस्से के भुगतान में कटौती नहीं करेंगी.
गौरतलब है कि कि 2016-17 में बीमा कराने वाले किसानों की संख्या लगभग 5.78 करोड़ थी. जो 2017-18 में घटकर 5.21 करोड़ हो गई. हालांकि 2018-19 में इसमें कुछ इजाफा हुआ और यह संख्या 5.62 करोड़ तक जा पहुंची. इन तीन वर्षों में बीमा कंपनियों ने किसानों को 58,599 करोड़ का भुगतान किया जबकि अतिरिक्त प्रीमियम के रूप में लगभग 20 किरोड़ अतिरिक्त प्रीमियम प्राप्त किया.