नई दिल्ली, 28 मार्चः उच्चतम न्यायालय ने देश की जेलों में काफी भीड़भाड़ होने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि कैदियों के भी मानवाधिकार हैं और उन्हें पशुओं की तरह जेल में नहीं रखा जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि जेल में ऐसे अनेक कैदी जिन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन वे जमानत राशि नहीं भरने की वजह से उन्हें रिहा नहीं किया गया है। वहीं, कुछ लोग मामूली अपराधों के लिये जेल में हैं, जिन्हें काफी समय पहले जमानत मिल जानी चाहिये थी।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जेलों में काफी भीड़ है। कैदियों के भी मानवाधिकार हैं और उन्हें पशुओं की तरह जेल में नहीं रखा जा सकता। जेल सुधारों के बारे में बात करने का क्या मतलब है जब हम उन्हें जेल में नहीं रख सकते। अगर आप उन्हें सही से नहीं रख सकते हैं तो हमें उन्हें रिहा कर देना चाहिये।'
न्यायालय ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब उसे सूचित किया गया कि देश के कई जेलों में निर्धारित संख्या से छह गुना अधिक लोग रखे गए हैं। पीठ ने विधिक सेवा प्राधिकरण के वकीलों की भी आलोचना की, जिन्होंने कैदियों की रिहाई सुनिश्चित नहीं की। पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत 30-40 साल पहले कह चुकी है कि कैदियों के भी मानवाधिकार हैं।
शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकार (एनएएलएसए) से 21 फरवरी को कहा था कि वह जेलों में काफी भीड़ के मुद्दे की पड़ताल करे और उसके सामने जेलों में आबादी के बारे में संख्या रखे जहां पिछले साल 31 दिसंबर तक 150 फीसदी से अधिक लोगों को रखा गया था। शीर्ष अदालत देशभर के 1382 जेलों में व्याप्त अमानवीय स्थिति के संबंध में याचिका पर सुनवाई कर रही थी।