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लोकसभा में मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 पेश

By भाषा | Updated: July 8, 2019 18:46 IST

निचले सदन में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 पेश किया। कांग्रेस ने विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए कि यह मानवाधिकार आयोग को कमजोर करने का प्रयास है और सरकार को आयोग को पर्याप्त धन उपलब्ध कराना चाहिए और रिक्त पदों को भरना चाहिए

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ठळक मुद्देअधीर रंजन चौधरी ने कहा कि आरबीआई, सीबीआई को कमजोर करने के प्रयास के बाद अब बारी मानवाधिकार आयोग की है।राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के पास कोष की कमी है और कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

लोकसभा में सोमवार को मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 पेश किया गया, जिसमें आयोग के अध्यक्ष के रूप में ऐसे व्यक्ति को भी नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है।

निचले सदन में गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक 2019 पेश किया। कांग्रेस ने विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए कि यह मानवाधिकार आयोग को कमजोर करने का प्रयास है और सरकार को आयोग को पर्याप्त धन उपलब्ध कराना चाहिए और रिक्त पदों को भरना चाहिए।

विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि आरबीआई, सीबीआई को कमजोर करने के प्रयास के बाद अब बारी मानवाधिकार आयोग की है। अभी जो संशोधन लाया गया है, वह मूल अधिनियम के अनुरूप नहीं है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के पास कोष की कमी है और कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस कोई ध्यान नहीं दिया गया है। हमें लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाने पर ध्यान देना चाहिए।

कांग्रेस के शशि थरूर ने कहा कि इस संबंध में पेरिस संधि के सिद्धांतों में निकायों को स्वायत्तता प्रदान करने की बात कही गई है। आयोग लम्बे समय से अधिक अधिकार देने का आग्रह करता रहा है लेकिन इस विधेयक में इसका जिक्र नहीं है। इसमें समयबद्ध तरीकों से पदों को भरने का उल्लेख नहीं है।

गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि सदस्यों को सिर्फ विरोध के लिये ही विरोध नहीं करना चाहिए बल्कि सार्थक सुझाव देने चाहिए । उन्होंने कहा कि इस संबंध में 1993 में जो अधिनियम बनाया गया था, उसमें भी पेरिस सिद्धांत का उल्लेख था। अभी जो हम संशोधन लाए हैं, वह भी पेरिस सिद्धांत के आधार पर लाए हैं।

रेड्डी ने कहा कि पेरिस सिद्धांत में कहा गया कि निकाय में नागरिक संगठनों, महिलाओं को जोड़ा जाना चाहिए । हम जो संशोधन लाए है, वह महिलाओं को जोड़ने से संबंधित है । उन्होंने कहा कि आयोग के अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रहे व्यक्ति के साथ उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रहे व्यक्ति को शामिल करने की बात कही गई है। ऐसा इसलिये किया गया कि कई बार सीजेआई रहे व्यक्ति द्वारा अनिच्छा व्यक्त किये जाने पर महीनों तक पद खाली रहे जाते हैं।

इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि आयोग के अध्यक्ष के रूप में ऐसा व्यक्ति जो उच्चतम न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश रहा हो, उसके अतिरिक्त किसी ऐसे व्यक्ति को भी नियुक्त किया जा सके जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है।

इसमें आयोग के सदस्यों की संख्या दो से बढ़ाकर तीन की जा सके जिसमें एक महिला हो। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि आयोग और राज्य आयोगों के अध्यक्षों और सदस्यों की पदावधि को पांच वर्ष से कम करके तीन वर्ष किया जा सके और वे पुनर्नियुक्ति के पात्र होंगे।

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 को मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग और मानव अधिकार न्यायालयों के गठन को लेकर उपबंध करने के लिए अधिनियमित किया गया था।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उक्त आयोग की पुन: प्रत्यायन संबंधी राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थाओं की वैश्विक संधि की संबद्धता संबंधी उप समिति द्वारा उठाई गई चिंताओं का समाधान करने के लिए अधिनियम में कुछ संशोधनों का प्रस्ताव किया है।

इसके अलावा, कुछ राज्य सरकारों ने भी अधिनियम में संशोधन के लिए प्रस्ताव किए हैं क्योंकि उन्हें संबंधित राज्य आयोगों के अध्यक्ष के पद पर उक्त पद के लिए विद्यमान पात्रता मानदंडों के कारण उचित अभ्यर्थियों को ढूंढने में कठिनाइयां आ रही हैं।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए उक्त अधिनियम के कुछ उपबंधों का संशोधन करना आवश्यक हो गया है। प्रस्तावित संशोधन आयोग और साथ ही राज्य आयोगों को भी उनकी स्वायत्तता, स्वतंत्रता, बहुलवाद और मानव अधिकारों के प्रभावी संरक्षण व उनका संवर्धन करने के लिए व्यापक कार्यों के संबंध में पेरिस सिद्धांत से और अधिक सुसंगत करने में समर्थ बनाएंगे।

इसमें उपबंध किया गया है कि ऐसे व्यक्ति जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे हों, उन्हें राज्य आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति हेतु पात्र बनाया जा सके।

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