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बड़े भूकंप की जताई गई आशंका, अगर ऐसा हुआ तो मचेगी भीषण तबाही

By भाषा | Updated: July 15, 2018 15:35 IST

वर्ष 1905 में कांगड़ा में आये भूकंप की तीव्रता भी 7.8 मापी गयी थी जिसमें जान-माल की व्यापक तबाही हुई थी। इसके बाद साल 2015 में हिमालयी देश नेपाल में 7. 8 के वेग के भूकंप से मची तबाही की याद तो लोगों के जेहन में अभी ताजा ही है। 

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देहरादून, 15 जुलाई: भूगर्भीय हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाले, देश के चार बड़े संस्थानों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर आठ से भी ज्यादा हो सकती है और तब जान माल की भीषण तबाही होगी। यह अध्ययन देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, हैदराबाद, नेशनल सेंटर फॉर अर्थ सीस्मिक स्टडीज, केरल और आईआईटी खड़गपुर ने किया है। 

वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और जियोफिजिक्स के प्रमुख डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि इस अध्ययन को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों ने वर्ष 2004 से 2013 के बीच कुल 423 भूकंपों का अध्ययन किया। 

उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि 1905 से अब तक इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराने पर घर्षण से पैदा हुई कुल ऊर्जा में से भूकंपों के जरिए केवल तीन से पांच प्रतिशत ऊर्जा ही निकली है। इसका मतलब यह है कि आने वाले समय में आठ से ज्यादा तीव्रता का भूकंप आने की पूरी आशंका है।' 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1905 में कांगड़ा में आये भूकंप की तीव्रता भी 7.8 मापी गयी थी जिसमें जान-माल की व्यापक तबाही हुई थी। इसके बाद साल 2015 में हिमालयी देश नेपाल में 7. 8 के वेग के भूकंप से मची तबाही की याद तो लोगों के जेहन में अभी ताजा ही है। 

डॉ. कुमार बताते हैं कि उत्तर पश्चिम हिमालय क्षेत्र में इंडियन प्लेट उत्तर दिशा की तरफ खिसक रही है और यूरेशियन प्लेट के नीचे दबाव पैदा कर रही है जिससे इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा फॉल्ट सिस्टम बन गये हैं ​जिसमें मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी), मेन बांउड्री थ्रस्ट (एमबीटी) और हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (एचएफटी) प्रमुख हैं। 

अपने अध्ययन को पुख्ता करने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ने हिमालय में विभिन्न जगहों पर 12 ब्रांडबैंड सीस्मिक स्टेशन लगाये और कई सालों के अंतराल में इन स्टेशनों पर रिकॉर्ड भिन्न-भिन्न प्रकार के भूकंपों का विश्लेषण किया। 

हालांकि, इन सभी अध्ययनों के बावजूद डॉ. सुशील कुमार ने कहा कि यह नहीं बताया जा सकता कि भविष्य में बड़ा भूकंप कब और कहां आयेगा। उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि हिमालय में लोग भूकंप के बारे में जागरूक रहें और मकान निर्माण में भूकंप रोधी तकनीक का इस्तेमाल करें।' वर्ष 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में आये भूकंपों की विभाीषिका झेल चुके उत्तराखंड की राज्य सरकार ने कई जगह आईआईटी रूढ़की के सहयोग से अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाये हैं। 

डॉ. सुशील ने बताया कि राज्य सरकार के साथ भूकंप की तैयारियों को लेकर हाल में हुई एक बैठक के दौरान उन्होंने सुझाव दिया है कि हर गांव में एक भूकंप रोधी इमारत बनवा दी जाये जहां भूकंप की चेतावनी मिलने या भूकंप आने के बाद लोग रह सकें। 

उन्होंने कहा, 'भूकंप आने के बाद सबसे बड़ी समस्या घरों और उन तक पहुंचने वाले रास्तों के क्षतिग्रस्त होने की होती है । हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए इन इमारतों में हर समय खाद्य सामग्री, पानी और कंबल उपलब्ध रहना चाहिए ताकि लोग राहत दल के आने तक आसानी से अपना गुजारा कर सकें।' 

टॅग्स :भूकंप
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