CAA पर बोले वसीम बरेलवी, हमें बच्चों के लिए ऐसे ख्वाब देखना है जहां कांटे कम, गुलाब की गुंजाइश ज्यादा हो

By भाषा | Updated: December 20, 2019 14:06 IST2019-12-20T14:05:54+5:302019-12-20T14:06:24+5:30

उत्तर प्रदेश विधानपरिषद में समाजवादी पार्टी के सदस्य नागरिकता संशोधन कानून पर हंगामा कर रहे थे वहीं इसी सदन के सदस्य वसीम बरेलवी खामोश कर बैठे सदन को निहार रहे थे।

poet Wasim Barelvi on citizenship amendment act 2019 we have to see dreams for the children of India where thorns are less, there is more scope of rose | CAA पर बोले वसीम बरेलवी, हमें बच्चों के लिए ऐसे ख्वाब देखना है जहां कांटे कम, गुलाब की गुंजाइश ज्यादा हो

प्रदर्शनकारियों के बारे में उनका मानना है कि ''यह लोग औरों के दुख जीने निकल आये है सड़कों पर, अगर अपना ही गम होता तो यूं धरने नहीं देते।''

Highlightsदेश में सीएए को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन बरेलवी ने कहा कि आजकल मीडिया हिन्दू मुस्लिम कर रहा है जबकि यह वास्तविक विषय नहीं है। बरेलवी के शेर की इस पंक्ति को नारे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है कि ‘‘उसूलो पर जहां आंच आये, टकराना जरूरी है।

नागरिकता संशोधन कानून पर देश में विभिन्न स्थानों पर हो रहे प्रदर्शनों में जहां वसीम बरेलवी के शेर की इस पंक्ति को नारे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है कि ‘‘उसूलो पर जहां आंच आये, टकराना जरूरी है’’, वहीं स्वयं मशहूर शायर का इस मौजूदा घटनाक्रम पर मानना है कि हमें ‘‘अपने बच्चों के लिए ऐसे ख्वाब देखने हैं जहां कांटे कम और गुलाब की गुंजाइश ज्यादा हो’’।

उत्तर प्रदेश विधानपरिषद में समाजवादी पार्टी के सदस्य नागरिकता संशोधन कानून पर हंगामा कर रहे थे वहीं इसी सदन के सदस्य वसीम बरेलवी खामोश कर बैठे सदन को निहार रहे थे। देश में सीएए को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन बरेलवी ने कहा कि आजकल मीडिया हिन्दू मुस्लिम कर रहा है जबकि यह वास्तविक विषय नहीं है।

उन्होंने कहा,‘‘हमें हिन्दुस्तान के बच्चों के लिए ऐसे ख्वाब देखना है जहां कांटे कम हों, गुलाब की गुंजाइश ज्यादा हो। जहां हम उनके लिये ऐसा रास्ता तैयार कर सकें कि अगली नस्ल चैन से रह सके।’’ उन्होंने कहा,''हिन्दुस्तान सदियों से है, यह दो दिन का नहीं है। यह है तो सबके लिये है। यह जिद हमारी है।

इस एक बात पर दुनिया से जंग जारी है'' बरेलवी नागरिकता संशोधन कानून पर सीधे कुछ भी बोलने से बच रहे थे। लेकिन उन्होंने यह अवश्य कहा कि आज हर विश्वविद्यालय, शिक्षण संस्थान में उनके इस शेर के नारे लगाये जा रहे है कि'' उसूलो पर जहां आंच आये टकराना जरूरी है, जो जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना जरूरी है।''

प्रदर्शनकारियों के बारे में उनका मानना है कि ''यह लोग औरों के दुख जीने निकल आये है सड़कों पर, अगर अपना ही गम होता तो यूं धरने नहीं देते ।'' उन्होंने कहा कि ''मैं सदियों के बाद के हिंदुस्तान का ख्वाब देख रहा हूं मेरी शायरी अपना काम कर रही है,मेरी शायरी वक्त को आईना दिखायेगी, वक्त को दिशा देगी। मुझे ऐसे हिन्दुस्तान का ख्वाब देखना है जिसमें इन बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सकें।

उसके लिये मुझे वहीं रहना जरूरी है जहां मेरा कलम चल रहा है। शायर ने कहा कि ''हम शायरों फिराक, जिगर, सुमित्रानंद पंत और नीरज जी जैसे लोगों ने हिंदुस्तान को बनाने की बात की है। इसका नतीजा यह है कि आज पूरा भारतवर्ष किसी बात पर एक होकर खड़ा है। हमें अगर अपने बच्चों का, आने वाली नस्लों के भविष्य का ख्याल है तो हमें जो दिलों में फासले पैदा कर रहे हैं उनसे बचना पड़ेगा।

इन फासलों को मोहब्बतों में बदलना हमारी मजबूरी भी है और हमारे संस्कार भी है।'' उन्होंने कहा कि समाज में बहुत से ऐसे लोग है जो छिप कर एकजुट होने का काम कर रहे है लेकिन मीडिया इन तक नहीं पहुंच पाता है।

बरेलवी ने मौजूदा हालात की ओर इशारा करते हु ने एक शेर कहा: ''वह मेरे चेहरे तक अपनी नफरतें लाया तो था, मैंने उसके हाथ चूमें और बेबस कर दिया ।'' उन्होंने कहा कि हमें मुश्किल हालात में संयम बरत कर एकजुट रहना है। सब आपस में प्यार से रहें, मोहब्बत से रहें और जितना एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहेंगे उतना ही देश तरक्की करेगा ।’’ उन्होंने कहा,''मुझे यकीन है कि हिन्दुस्तान अपनी जगह पर रहेगा। हमारे बुजुर्गो ने यह मुल्क हमें विरासत में सौंपा है... नया भविष्य बनाने वाले बच्चे इस विरासत को संभाल लेंगे ।’’

Web Title: poet Wasim Barelvi on citizenship amendment act 2019 we have to see dreams for the children of India where thorns are less, there is more scope of rose

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