शख्स दूसरा निकाह करके पहुंचा हाईकोर्ट, बोला- 'दोनों को साथ में रखना चाहता हूं', कोर्ट ने कुरान के हवाले से कहा, 'भरण-पोषण की हैसियत न हो तो दूसरा निकाह गुनाह है'

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: October 11, 2022 05:52 PM2022-10-11T17:52:06+5:302022-10-11T17:56:25+5:30

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निकाह के एक मामले में की सुनवाई करते हुए कुरान के सुरा 4 आयत 3 का हवाला दिया और कहा कि दूसरा निकाह तभी किया जा सकता है, जब शौहर अपनी पहली बीवी और उससे हुए बच्चों का भरण पोषण करने में सक्षम हो। यह बात सभी मुस्लिम पुरुषों पर लागू होती है।

person reached the High Court after having a second marriage, said - 'I want to keep both of them together' | शख्स दूसरा निकाह करके पहुंचा हाईकोर्ट, बोला- 'दोनों को साथ में रखना चाहता हूं', कोर्ट ने कुरान के हवाले से कहा, 'भरण-पोषण की हैसियत न हो तो दूसरा निकाह गुनाह है'

फाइल फोटो

Highlightsदूसरे निकाह की इजाजत उसी सूरत में मिलती है, जब पहली पत्नी का भरण-पोषण ठीक से हो सकेकुरान भी पहली बीवी का भरण-पोषण न कर पाने वाले शख्स को दूसरे निकाह की इजाजत नहीं देता हैइलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एसपी केसरवानी और जस्टिस राजेंद्र कुमार ने अपने आदेश में यह बात कही

इलाहाबाद: मुस्लिम निकाह के मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुराना का हवाला देते हुए कहा कि इस्लाम में दूसरे निकाह की इजाजत उसी सूरत में मिलती है, जब निकाह करने वाला शख्स पहली पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण करने में सक्षम हो।

अदालत ने अजीजुर्रहमान के निकाह की याचिका को खारिज करते हुए कुरान के सुरा 4 आयत 3 का जिक्र करते हुए कहा, “दूसरा निकाह तभी किया जा सकता है, जब शौहर अपनी पहली बीवी और उससे हुए बच्चों का भरण पोषण करने में सक्षम हो। यह बात सभी मुस्लिम पुरुषों पर लागू होती है।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की पीठ ने बीते सोमवार को याचिका के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, “जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, उस समाज को किसी भी कीमत पर सभ्य नहीं कहा जा सकता। जिस देश में महिलाओं का सम्मान होता है, सही मायने में वही देश सभ्य कहलाने के हकदार होते हैं। यह केवल एक की बात नहीं है, मुस्लिम समाज में किसी भी मर्द को पहली बीवी के रहते दूसरा निकाह करने से बचना चाहिए। कुरान भी एक बीवी के साथ इंसाफ न कर पाने वाले मुस्लिम शख्स को दूसरा निकाह करने की इजाजत नहीं देता है।”

इसके साथी ही दो जजों की पीठ ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए आगे कहा कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्रत्येक नागरिक को गरिमामय जीवन जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद-14 देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है और अनुच्छेद-15(2) लिंग आदि के आधार पर भेदभाव से रोकता है।

जानकारी के मुताबिक हाईकोर्ट ने अजीजुर्रहमान के निकाह की अर्जी इसलिए ठुकराई क्योंकि उसने हमीदुन्निशा नाम की महिला से 12 मई 1999 को निकाह किया था। हमीदुन्निशा अपने अब्बा की इकलौती संतान थी, जिसके चलते उसके अब्बा ने अपनी सारी संपत्ति हमीदुन्निशा के नाम कर दी थी। महिला अपने तीन बच्चों के साथ अपने 93 साल के बुजुर्ग अब्बा की देखभाल करती है।

पीड़िता हमीदुन्निशा के शौहर अजीजुर्रहमान ने उसे बिना बताए दूसरा निकाह कर लिया। जब हमीदुन्निशा ने दूसरे निकाह का विरोध किया तो उसका शौहर अजीजुर्रहमान फैमिली कोर्ट पहुंचा और अपील की कि उसे दूसरी बीवी को भी साथ रखने का हक दिया जाए। फैमिली कोर्ट ने अजीजुर्रहमान की अर्जी खारिज कर दी, तब वो केस को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। लेकिन हाईकोर्ट ने कुरान का ही हवाला देते हुए उसके केस को खारिज कर दिया है।

Web Title: person reached the High Court after having a second marriage, said - 'I want to keep both of them together'

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