28 साल पुरान मर्डर के मामले में CM नीतीश को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, केस को किया निरस्त
By एस पी सिन्हा | Published: March 15, 2019 05:44 PM2019-03-15T17:44:08+5:302019-03-15T17:44:08+5:30
न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की एकल पीठ ने नीतीश कुमार द्वारा दायर आपराधिक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी गवाह ने अपनी गवाही में याचिकाकर्ता का नाम नही लिया है कि वे इस हत्याकांड में शामिल थे.
हत्या के मामले में अभियुक्त बनाए गए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शुक्रवार (15 मार्च) पटना हाई कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. पटना हाईकोर्ट ने नीतीश कुमार के विरुद्ध बाढ़ की निचली अदालत द्वारा लिये गये संज्ञान को रद्द कर दिया. न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की एकल पीठ ने नीतीश कुमार की याचिका पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे शुक्रवार को सुनाया. 28 साल पुराने पंडारक हत्या मामले में अब उन पर कोई मामला नहीं चलेगा. 1991 में सीताराम सिंह की हत्या हुई थी, जिसमें इन्हें अन्य लोगों अलावे आरोपी बनाया गया था.
न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की एकल पीठ ने नीतीश कुमार द्वारा दायर आपराधिक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी गवाह ने अपनी गवाही में याचिकाकर्ता का नाम नही लिया है कि वे इस हत्याकांड में शामिल थे. नीतीश कुमार को शक के आधार पर इस मामले में अभियुक्त बनाया गया है. एकलपीठ ने कहा कि बाढ़ के एसीजेएम द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए जो संज्ञान लिया है, वह कानूनी रूप से गलत है. इसलिए इसे निरस्त किया जाता है.
उल्लेखनीय है कि 16 नवंबर 1991 में बाढ लोकसभा संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव के दौरान चुनावी हिंसा में सीताराम सिंह की हत्या हो गई थी. हत्या के इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत कई अन्य लोगों को भी अभियुक्त बनाया गया था. हत्या के करीब 17 वर्ष बाद बाढ़ के एसीजीएम की अदालत में एक परिवाद पत्र दायर कर नीतीश कुमार को अभियुक्त बनाने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि सीताराम सिंह की हत्या में ये भी शामिल थे. पुलिस ने इनका नाम जांच में हटा दिया है.
इस हत्या कांड में इन्हें भी अभियुक्त बनाया जाय. बाढ़ के एसीजीएम ने दायर परिवाद पत्र पर वर्ष 2009 में नीतीश कुमार समेत अन्य लोगों पर मुकदमा चलाने के लिए संज्ञान ले लिया था. निचली अदालत द्वारा लिए गए संज्ञान आदेश को अभियुक्त बनाए गए, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं अन्य द्वारा अपराधिक याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी.
हाई कोर्ट के एकलपीठ की न्यायाधीश सीमा अली खां ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाते हुए इसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था. वर्ष 2018 में इस मामले पर सुनवाई शुरू हुई और 31 जनवरी 2019 को न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की एकलपीठ ने सुनवाई पूरी कर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था. जिसपर अपना फैसला सुनाया.
सुनवाई के दौरान कोर्ट में याचिककर्ता की ओर से जबलपुर हाई कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुरेन्द्र सिंह और पटना हाई कोर्ट के वरीय अधिवक्ता कृष्णा प्रसाद सिंह ने इस मामले में साक्ष्य का अभाव बताते हुए कहा था कि पुलिस ने इस मामले में कोई साक्ष्य नही पाया है और यह मामला राजनीतिक साजिस का परिणाम है.
वहीं सरकारी अधिवक्ता ने कहा था कि इस मुकदमे में कोई ठोस सबूत नीतीश कुमार के खिलाफ नहीं है और यह मुकदमा राजनीति से प्रेरित होकर दायर किया गया है.
बताया जाता है कि प्राथमिकी में नीतीश कुमार सहित कुल 5 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन नीतीश कुमार एवं दुलार चंद्र को आरोप मुक्त कर दिया गया था.