संसद मानसून सत्रः राज्यसभा के 50 में से 40 घंटे बेकार, केवल 10 घंटे ही काम, बर्बाद हुए करोड़ों रुपये
By भाषा | Updated: August 1, 2021 07:49 IST2021-08-01T07:46:58+5:302021-08-01T07:49:11+5:30
Parliament Monsoon Session: तृणमूल कांग्रेस सांसद सेन ने केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथों से ‘‘पैगासस विवाद’’ पर दिए जा रहे उनके बयान की प्रति छीन ली थी और उसके टुकड़े कर हवा में उछाल दिए थे।

चार विधेयकों को पारित करने के लिए केवल एक घंटे 24 मिनट का विधायी कार्य हो सका।
Parliament Monsoon Session: मानसून सत्र में विपक्षी दलों के लगातार हंगामे के चलते राज्यसभा के 50 में से 40 घंटे बेकार हो गए और केवल 10 घंटे ही काम हो सका। राज्यसभा की कार्यवाही पहले दो सप्ताहों में तय समय का सिर्फ करीब 21.60 प्रतिशत ही चल सकी और दूसरे सप्ताह में यह आंकड़ा 13.70 प्रतिशत का रहा।
अधिकारियों ने बताया कि कुल 50 कार्य घंटों में से 39 घंटे 52 मिनट हंगामे की भेंट चढ़ गए। पहले दो सप्ताहों में नौ बैठकों के दौरान उच्च सदन में केवल एक घंटे 38 मिनट का प्रश्नकाल ही हो सका। चार विधेयकों को पारित करने के लिए केवल एक घंटे 24 मिनट का विधायी कार्य हो सका।
हंगामे के चलते सदन में केवल एक मिनट का शून्यकाल हुआ और चार मिनट का विशेष उल्लेख। राज्यसभा सचिवालय ने दैनिक बुलेटिन में सदन में काम न होने से संबंधित जानकारी देने की पहली बार शुरुआत की है। मानसून सत्र के पहले सप्ताह, संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही विपक्ष द्वारा तीन नये केंद्रीय कृषि कानूनों, पेगासस जासूसी मामला सहित विभिन्न मुद्दों पर किए गये हंगामे की भेंट चढ़ गयी तथा शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस के एक राज्यसभा सदस्य को शेष सत्र के लिए सदन से निलंबित कर दिया गया।
पूरे सप्ताह के दौरान सिर्फ मंगलवार को उच्च सदन में उस समय चार घंटे सामान्य ढंग से कामकाज हो पाया जब कोविड-19 के कारण देश में उपजे हालात को लेकर, सभी दलों के बीच आपस में बनी सहमति के आधार पर चर्चा की गयी। शुक्रवार को विपक्ष के हंगामे के कारण लोकसभा एक बार के स्थगन और राज्यसभा तीन बार के स्थगन के बाद पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गयी।
दोनों सदनों में आज भी प्रश्नकाल और शून्यकाल नहीं हो सका तथा शुक्रवार को होने वाला गैर सरकारी कामकाज भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने उच्च सदन में लगातार हो रहे हंगामे और व्यवधान पर क्षोभ प्रकट करते हुए, सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथों से एक विपक्षी सदस्य द्वारा बयान की प्रति छीन उसके टुकड़े हवा में लहराने की घटना को ‘‘संसदीय लोकतंत्र पर हमला’’ करार दिया। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी की विभीषिका के बीच यह सत्र आयोजित हुआ है और जनता से जुड़े कई अहम मुद्दों पर चर्चा की जानी है।
उन्होंने सदस्यों के सामने कई सवाल भी उठाए ओर उनसे इर पर चिंतन करने को कहा। सभापति ने बृहस्पतिवार को सदन में हुए हंगामे और इस दौरान तृणमूल कांग्रेस के सदस्य शांतनु सेन सहित अन्य विपक्षी नेताओं के आचरण का जिक्र किया और इसे अशोभनीय बताया। सभापति ने कहा कि कल जो कुछ हुआ, निश्चित रूप से उससे सदन की गरिमा प्रभावित हुई। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की गरिमा ही प्रभावित होती है। नायडू ने कहा कि उन्होंने पहले भी इस बात पर जोर दिया है कि संसद राजनीतिक संस्थाओं से बहुत बड़ी है क्योंकि उसके पास संवैधानिक अधिकार हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन ऐसा लगता है कि संसद की गरिमा और संविधान के प्रति नाम मात्र का सम्मान है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।’’ राज्यसभा के सभापति ने कहा कि जब देश आजादी के 75वें साल में प्रवेश कर रहा है तो ऐसे समय में सदन की कार्यवाही में व्यवधान अच्छा संदेश नहीं देता।
उन्होंने सदस्यों से आग्रह किया कि वह सदन की गरिमा धूमिल न होने दें। उन्होंने सदस्यों को याद दिलाया कि वे संसदीय लोकतंत्र के संरक्षक हैं और उन्हें अपने-अपने राज्यों के और वहां की जनता के मुद्दे उठाने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘सदन में व्यवधान न्याय का कोई तरीका नहीं है।’’ उच्च सदन में तृणमूल सदस्य शांतनु सेन को कल सदन में उनके अशोभनीय आचरण के लिए राज्यसभा के मौजूदा सत्र की शेष अवधि के लिए आज निलंबित कर दिया गया।