विपक्षी दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय के केंद्र से यह पूछे जाने का स्वागत किया है कि क्या देश में आजादी के 75 वर्ष बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत है। उच्चतम न्यायालय ने 'औपनिवेशिक काल' के राजद्रोह संबंधी दंडात्मक कानून के 'भारी दुरुपयोग' पर बृहस्पतिवार को चिंता व्यक्त की और केंद्र से सवाल किया कि स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के वास्ते महात्मा गांधी जैसे लोगों को 'चुप' कराने के लिए ब्रितानी शासनकाल में इस्तेमाल किए गए प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा?
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक पूर्व मेजर जनरल और ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की याचिकाओं पर गौर करने पर सहमति जताते हुए कहा कि उसकी मुख्य चिंता 'कानून का दुरुपयोग' है।
पीठ ने मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया। उच्चतम न्यायालय के इस रुख पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, 'हम उच्चतम न्यायालय की इस टिप्पणी का स्वागत करते हैं।'
तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव समेत कुछ नेताओं ने इस ओर इशारा किया कि किसानों के प्रदर्शन के दौरान हरियाणा विधानसभा के उपाध्यक्ष की कार पर हमले के सिलसिले में राज्य में करीब 100 किसानों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं। मोइत्रा ने कहा कि अब उन्हें आखिरकार उम्मीद है कि 'इस पुरातनकालीन कानून का भारत सरकार द्वारा दुरुपयोग समाप्त होगा।'
यादव ने कहा, 'कल ही सिरसा में एक मंत्री की गाड़ी के शीशे तोड़ने पर किसानों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।' पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी पर सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन ट्वीट किया कि हरियाणा के किसानों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं का अपमान हैं। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार को फौरन और बिना शर्त आरोप वापस लेने चाहिए।'
वकील प्रशांत भूषण ने कहा, 'असहमति को दबाने के लिए राजद्रोह के इस औपनिवेशिक काल के कानून के पूरी तरह दुरुपयोग पर सरकार से सवाल करने के लिए उच्चतम न्यायालय और प्रधान न्यायाधीश की प्रशंसा होनी चाहिए।' कांग्रेस नेता जयवीर शेरगिल ने कहा कि अंग्रेज महात्मा गांधी को चुप करने के लिए राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल करते थे और भाजपा महात्मा गांधी के पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों को समाप्त करने के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है।
अभिनेत्री और शिवसेना नेता उर्मिला मातोंडकर ने कहा, 'क्या आजादी के 75 साल बाद भी हमें इसकी जरूरत है?' फिल्मकार और पूर्व सांसद प्रीतीश नंदी ने कहा कि अंग्रेजों के शासनकाल के सभी अवशेषों को समाप्त करने की बात होती है लेकिन इस भयावह कानून को समाप्त नहीं किया जाता जिसके तहत स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डाला जाता था।