महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन क्यूं टूटा, सियासत के तह तक जाती "ऑपरेशन शिवसेना-तख्तापलट से सत्ता तक"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 8, 2023 08:31 PM2023-02-08T20:31:38+5:302023-02-08T20:41:02+5:30

"ऑपरेशन शिवसेना-तख्तापलट से सत्ता तक" में पत्रकार समीर चौगांवकर ने उद्धव ठाकरे के महाविकास अघाड़ी सरकार की विदाई और एकनाथ शिंदे-भाजपा सरकार के गठन के बारे में विस्तार से लिखा है। साल 2002 में मानस पब्लिकेशन से छपी समीर चौगांवकर की यह किताब 2019 में महाराष्ट्र में हुई सत्ता के उठा-पटक की गहराई से पड़ताल करती है।

"Operation Shiv Sena - coup from coup to power" on breaking of Shiv Sena-BJP alliance in Maharashtra | महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन क्यूं टूटा, सियासत के तह तक जाती "ऑपरेशन शिवसेना-तख्तापलट से सत्ता तक"

महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन क्यूं टूटा, सियासत के तह तक जाती "ऑपरेशन शिवसेना-तख्तापलट से सत्ता तक"

Highlights"ऑपरेशन शिवसेना-तख्तापलट से सत्ता तक" शिवसेना-भाजपा संबंधों की व्यापक व्याख्या करती है इसमें महाविकास अघाड़ी सरकार और एकनाथ शिंदे के बगावत को विस्तार से समझाया गया है इसमें यह भी बताया गया है कि हिंदुत्व की समान विचारधारा वाले दो दल क्यों अलग राह चुन लेते हैं

दिल्ली:महाराष्ट्र की सियासत में हिंदुत्व की समान विचारधारा के साथ दशकों तक साथ निभाने वाली भाजपा शिवसेना गठबंधन के सियासी रास्ते 2019 में उस समय अलग हो गये, जब दोनों दल सत्ता की साझेदारी में बराबरी के दावे पर टकरा गये। साल 2014 में बदले सियासी निजाम वाली भाजपा शिवसेना के साथ क्षेत्रीय दल के तरह व्यवहार कर रही थी, वहीं शिवसेना को भी लग रहा था कि 2014 के बाद वाली भाजपा के हिंदुत्व के नैरेटिव में वो अपने अस्तीत्व को खो देगी।

"ऑपरेशन शिवसेना-तख्तापलट से सत्ता तक" में इन्हीं बातों को विस्तार से बताते हुए पत्रकार समीर चौगांवकर ने उद्धव ठाकरे के महाविकास अघाड़ी सरकार की विदाई और एकनाथ शिंदे-भाजपा सरकार के गठन के बारे में विस्तार से लिखा है। साल 2002 में मानस  पब्लिकेशन से छपी समीर चौगांवकर की यह किताब 2019 में महाराष्ट्र में हुई सत्ता के उठा-पटक की न केवल गहराई से पड़ताल करती है बल्कि इस किताब से शिवसेना के अतीत के साथ आने वाले भविष्य का आंकलन भी किया जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस किताब में बाल ठाकरे से लेकर उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे और आदित्य ठाकरे तक शिवसेना के सफरनामे को बेहद बारीकी से लिखा गया है।

इस किताब में समीर ने शिवसेना के स्थापना साल 1966 से लेकर मौजूदा दौर में दो गुटों में बंटी हुई शिवसेना का वह खाका खिंचा है, जो महाराष्ट्र की सियासत में दक्षिण भारतीयों और गुजरातियों के विरोध और मराठी अस्मीता के मुद्दे को लेकर सियासी मुहिम शुरू करती है और फिर जल्द ही हिंदुत्व के राह पर मुड़ जाती है। साल 1980 में जनसंघ से भाजपा का स्वरूप अख्तियार करने वाली भाजपा के प्रमोद महाजन 1989 में पहली बार भाजपा-शिवसेना गठबंधन कराने में सफल हो जाते हैं लेकिन बाल ठाकरे की शर्तों पर। 1995 में पहली बार भाजपा-शिवसेना गठबंधन कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर गद्दी हासिल की। लेकिन 1999 में महाराष्ट्र की सत्ता से बेदखल हुई शिवसेना-भाजपा गठबंधन को कांग्रेस-एनसीपी ने मिलकर लगभग डेढ दशकों तक विपक्ष में बैठाये रखा।

इस दौरान साल 2006 की 12 मई को प्रमोद महाजन का दिवंगत हो जाने और 2012 की 17 नवंबर को बाल ठाकरे के निधन से दोनों दलों के सियासी समीकरण को काफी धक्का पहुंचाया। बाला साहब की मौत के बाद उद्धव ने औपचारिक तौर पर शिवसेना की कमान संभाल तो ली लेकिन वो भाजपा के उस तरह का संतुलन नहीं बना पाए, जैसे बाल ठाकरे के वक्त में हुआ करता था।

शिवसेना और भाजपा के गठबंधन को भारी झटका 3 जून 2014 को लगा, जब एक कार हादसे में गोपीनाथ मुंडे का असमय देहांत हो गया, जो प्रमोद महाजन और बाल ठाकरे के चले जाने के बाद दोनों दलों के बीच एक कड़ी के तौर पर कर रहे थे। किताब में समीर इस बात का बखूबी जिक्र करते हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी का प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली आगमन और भाजपा अध्यक्ष के तौर पर अमित शाह के हाथों में आयी कमान ने महाराष्ट्र के सारे सियासी समीकरण को बदल कर रख दिया।

2014 में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने लोकसभा साथ लड़ा लेकिन विधानसभा चुनाव अलग-अलग। विधानसभा में भाजपा ने 122 और शिवसेना ने 63 सीटों पर परचम लहराया। शिवसेना ने देवेंद्र फड़नवीस सरकार को समर्थन तो दिया लेकिन सत्ता में साथ रहते हुए वो विपक्षी खेमें में खड़ी नजर आयी। पूरे पांच साल दोनों दलों के बीच जबरदस्त नूराकुश्ती चलती रही।

वहीं 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने साथ मिलकर लड़ा। भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिली हैं। गठबंधन के खाते में 161 सीटें आयीं। बहुमत का जादुई आंकड़ा 146 था, जिससे बीजेपी शिवसेना गठबंधन काफी आगे था। ऐसे में सरकार बनाने में कोई मुश्किल नजर नहीं आ रही है। लेकिन भाजपा-शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री की गद्दी को लेकर पेंच फंस गया।

जिसके बाद सूबे में तमाम सियासी बवंडर उठा और महाविकास अघाड़ी अस्तित्व में आया। लगभग तीन दशकों की भाजपा-शिवसेना की साझेदारी टूट गई और उद्धव ठाकरे शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस के पाले में ले गये। जिसकी सियासी कहानी शरद पवार ने बेहद करीने से लिखी। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में कहीं न कहीं उद्धव ठाकरे खुद की शिवसेना से या कहें कि एकनाथ शिंदे से ही गच्चा खा गये।

उद्धव से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे ने सत्ता पाने की महत्वाकांक्षा में कहीं न कहीं शिवसेना के उग्र हिंदुत्व की सोच को उद्धव के खिलाफ ही हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया और वो ऐसे करते भी क्यों नहीं जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर उद्धव ठाकरे बेटे आदित्य ठाकरे को शिवसेना के केंद्र में करते हुए परिवार की विरासत सौंपने की तैयारी कर रहे थे।

किताब में एक जगह समीर लिखते हैं कि बाल ठाकरे ने 17 नवंबर 2012 को निधन से 22 दिन पहले दशहरा रैली के लिए जो भाषण रिकार्ड कराया था। उसमें उन्होंने कांग्रेस और सोनियां गांधी पर जबरदस्त हमला किया था। बाल ठाकरे ने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, राबर्ट बाड्रा और अहमद पटेल को पंचकड़ी का खिताब देते हुए कड़ी आलोचना की थी।

लेकिन बदले सियासी समीकरण में उद्धव ठाकरे उसी कांग्रेस के पास चले गये, जिसका फायदा एकनाथ शिंदे ने उठाया। इसके अलावा भी इस किताब में कई ऐसे भी तथ्य पेश किये गये जो महाराष्ट्र की सियासत की भीतरी परतों को खोलती है, जो गूगल या अन्य किसी जगह पर नहीं मिल सकती है। महाराष्ट्र के सियायी कलेवर को समझने के लिए यह किताब सही मायने में बेहद अहम और दिलचस्प है।

Web Title: "Operation Shiv Sena - coup from coup to power" on breaking of Shiv Sena-BJP alliance in Maharashtra

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