जम्मू-कश्मीर में मार्च 2020 तक भी चुनाव की संभावना नहीं, चुनाव आयोग को गृह मंत्रालय की हरी झंडी का इंतजार

By हरीश गुप्ता | Updated: August 30, 2019 08:27 IST2019-08-30T08:27:10+5:302019-08-30T08:27:10+5:30

गृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग से कहा है कि अगले छह हफ्ते में परिस्थितियां सामान्य हो जाएंगी. हिरासत में रखे गए 1700 लोगों को रिहा कर दिया गया है और बाकी 400 की रिहाई की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है.

no possibility of elections in Jammu and Kashmir till March 2020, Election Commission awaits the Home Ministry's green signal | जम्मू-कश्मीर में मार्च 2020 तक भी चुनाव की संभावना नहीं, चुनाव आयोग को गृह मंत्रालय की हरी झंडी का इंतजार

जम्मू-कश्मीर में मार्च 2020 तक भी चुनाव की संभावना नहीं, चुनाव आयोग को गृह मंत्रालय की हरी झंडी का इंतजार

Highlightsगृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग से कहा है कि अगले छह हफ्ते में परिस्थितियां सामान्य हो जाएंगी.2002 में लंबित परिसीमन पर डॉ. अब्दुल्ला ने एक संशोधन के जरिये 2026 तक की पाबंदी लगा दी थी.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग से जम्मू-कश्मीर के विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन के कामकाज को अगले निर्देश तक रोके रखने को कहा है. इस स्थिति के चलते राज्य में मार्च 2020 तक भी विधानसभा चुनावों की कोई संभावना नहीं दिखती. राज्य में 18 साल के अंतराल के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन होना है. परिसीमन का काम शुरू होने के बाद पूरा होने में कम से कम एक साल का वक्त लगता है.

निर्वाचन आयोग का प्रयास है कि परिसीमन का काम जल्द से जल्द शुरू किया जाए. परिसीमन के बाद केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़कर 114 होने की संभावना है. इसमें पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) की 24 सीटें भी हैं जो विधानसभा में खाली रहती हैं. 107 सीटों में लद्दाख की चार सीटें और निर्वाचित सदस्यों की दो सीटें शामिल नहीं हैं.

सूत्रों के मुताबिक यह प्रक्रिया 31 अक्तूबर के बाद ही शुरू हो सकेगी, जब दो केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) का पुनर्गठन प्रभावी होगा. गृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग से कहा है कि अगले छह हफ्ते में परिस्थितियां सामान्य हो जाएंगी. हिरासत में रखे गए 1700 लोगों को रिहा कर दिया गया है और बाकी 400 की रिहाई की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. संवेदनशील जिलों में भी घरों में हथियारों और आतंकियों की मौजूदगी के लिए छानबीन का काम लगभग पूरा हो चुका है.

सामान्यतया निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया कुछ सालों बाद दोहराई जाती है ताकि निर्वाचन क्षेत्रों के बीच मतदाता संख्या को लेकर कोई असामनता न हो. दुर्भाग्य से जम्मू-कश्मीर में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने 2001 की जनगणना के बाद इसकी इजाजत नहीं दी.

2002 में लंबित परिसीमन पर डॉ. अब्दुल्ला ने एक संशोधन के जरिये 2026 तक की पाबंदी लगा दी थी. धारा 370 के खत्म हो जाने के बाद वह फैसला अपने आप ही रद्द हो गया. इस बीच चुनाव आयोग ने कुछ ऐसे सलाहकारों की नियुक्ति कर दी है जिन्हें परिसीमन के काम का अच्छा-खासा अनुभव है. ऐसे में जम्मू-कश्मीर में स्थिति के सामान्य होने में लगने वाले वक्त और परिसीमन के चलते विधानसभा चुनाव जल्द होने की कोई संभावना नहीं दिखती.

Web Title: no possibility of elections in Jammu and Kashmir till March 2020, Election Commission awaits the Home Ministry's green signal

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