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वोटर-कार्ड से आधार का जुड़ना नहीं, निजी कंपनियों के पास डेटा का जाना ज्यादा चिंताजनक: पुनीत भसीन

By भाषा | Updated: December 26, 2021 15:01 IST

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नयी दिल्ली, 26 दिसंबर मतदाता सूची को आधार संख्या से जोड़ने वाला निर्वाचन विधि संशोधन विधेयक विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद पिछले दिनों संसद से पारित हो गया। इसके समर्थन में सरकार के अपने तर्क हैं जबकि विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। इसी विधेयक से जुड़े तमाम पहलुओं पर साइबर व प्रौद्योगिकी संबंधी कानूनों की विशेषज्ञ पुनीत भसीन से ‘भाषा के पांच सवाल’ और उनके जवाब:

सवाल: मतदाता सूची को आधार संख्‍या से जोड़ने वाले विधेयक को पिछले दिनों संसद ने मंजूरी दे दी। सरकार का दावा है कि इससे मतदाता सूची और अधिक पारदर्शी होगी तथा फर्जी मतदाताओं को हटाया जा सकेगा। आपकी राय?

जवाब: आपके मतदाता पहचान में सारी जानकारियां होती हैं। इसमें नाम, पता और संपर्क होता है जबकि आधार कार्ड का उपयोग आप बैंक खाते, मोबाइल और अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने इत्यादि के लिए किया जाता है। अगर आप देखेंगे तो लगभग सारे विकसित देशों में ऐसा हो रहा है। हमारा देश एक बहुत अलग प्रकार का देश है। विभिन्न जाति और धर्म के लोग रहते हैं। आबादी भी बड़ी है और भौगोलिक स्थितियां भी अलग-अलग हैं। हमारे देश में अपराध के मामले मामलों की दर बहुत अधिक है और इसके मुकाबले दोष सिद्धि की दर बहुत कम है। अगर आधार कार्ड को मतदाता सूची से जोड़ा जाता है तो फर्जी मतदाताओं की पहचान आसान हो जाएगी और अन्य कई खामियों को दूर किया जा सकेगा।

सवाल: विपक्ष का आरोप है कि इससे मतदाताओं के संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों एवं निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। कितनी सहमत हैं आप?

जवाब: कुछ लोगों को यह लगता है कि इससे हमारी निजता का उल्लंघन होगा। लेकिन आप देखेंगे तो पाएंगे कि गूगल हो या फेसबुक या फिर व्हाट्सएप। इनके पास सभी उपयोगकर्ताओं के डेटा उपलब्ध हैं। आपके ई-मेल से लेकर आपकी हर जानकारी है उन तक पहुंच रही है और हम बेहिचक उन्हें इसकी अनुमति भी दे देते हैं। लेकिन आपको यह डर लग रहा है कि आंकड़े कहीं सरकार के पास चले जाएंगे तो बहुत बड़ी दिक्कत हो जाएगा। निजी कंपनियों के पास डेटा जाने का डर नहीं लगता है लेकिन आपको डर है कि यदि यह डेटा एक चुनी हुई सरकार के पास जाता है दिक्कत और परेशानी खड़ी हो सकती है। लोगों को इसका अनुमान भी नहीं है कि ये विदेश कंपनियां इन डेटा का क्या और कैसे इस्तेमाल कर सकती हैं। इसलिए सरकार जो विधेयक लेकर आई है, इसके पीछे उसका इरादा ऐसी कंपनियों पर नजर रखना भी है और उनके बारे में कुछ दिशानिर्देश तय करना भी है।

सवाल: इसके दुरुपयोग की कितनी संभावनाएं हैं क्योंकि निर्वाचन आयोग के पास करोड़ों मतदाताओं की निजी जानकारी का ब्योरा होगा?

जवाब: जब आप बैंक में जाते हैं, हवाईअड्डे पर जाते हैं या फिर कोई डिजिटल लेन-देन या संपत्ति हस्तांतरित करवाते हैं या नया सिम कार्ड लेते हैं तो अपनी आधार संख्या देते ही हैं। तो निजता का मामला कहां रह जाता है। आपके अन्य डेटा भी तो आधार से ही जुड़े हैं। इसमें तो कोई दिक्कत नहीं है आपको, लेकिन यही अगर निर्वाचन सूची से जुड़ जाए तो आपको तकलीफ है। वैसे भी आधार के साथ आपकी सारी जानकारियां लिंक होती हैं। बिना आधार कार्ड के आज कुछ नहीं होता। यह मतदाता सूची के साथ जुड़े या ना जुड़े कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे भी निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है और हमें उस पर भरोसा करना चाहिए। वैसे भी लोग नया मतदाता पहचान पत्र बनवाने के समय आवास के प्रमाण के तौर पर आधार संख्या ही देते हैं। तो आयोग के पास तो बड़ी संख्या में लोगों की आधार संख्या पहले से ही मौजूद है। मुझे नहीं लगता कि कोई इसका दुरुपयोग कर सकता है। वैसे भी सरकार के पास तो आधार से जुड़े आंकड़े लगभग पहले से ही मौजूद हैं। उसे मतदाता सूची से जोड़कर उसे कोई बड़ी उपलब्धि नहीं हासिल होने वाली है। हां इतना जरूर होगा कि फर्जी मतदाताओं की पहचान हो जाएगी और उन्हें सूची से अलग किया जा सकेगा।

सवाल: इस विधेयक की संवैधानिक वैधता के बारे में आपकी राय? उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को ऐसा करने की इजाजत नहीं दी थी जिसके बाद यह कानून बनाया गया।

जवाब: रही बात इसकी संवैधानिक वैधता की तो हर देश में नागरिकों का अपना एक विशेष पहचान पत्र होता है। इसके नाम अलग-अलग हो सकते हैं। हमारे यहां आधार संख्या है। सरकार के पास एक मास्टर डेटा होता है जिसके जरिए नागरिकों को विभिन्न योजनाओं का लाभ दिया जाता है। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी आगे बढ़ रही हैं, कानून भी उसी के अनुरूप और समय के हिसाब से होने चाहिए। अदालत में जब यह मामला जाएगा तो वह इसके हर पहलू की परख करेगी और तय करेगी कि यह संविधान सम्मत है या नहीं है। इस पर मैं कुछ नहीं कहूंगी।

सवाल: निजता के हितैषी कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि यह कानून लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। आपकी राय?

जवाब: बड़ी-बड़ी कंपनियां देश के नागरिकों से संबंधित डेटा ले रही हैं। हमें इसकी ज्यादा चिंता करनी चाहिए। डर इसका लगना चाहिए। ना कि सरकार या निर्वाचन आयोग से डरना चाहिए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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