एनजीटी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में हुए अवैध गंगा बालू के खनन मामले में लिया संज्ञान, डीएम से रिपोर्ट तलब की
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 18, 2022 01:33 PM2022-02-18T13:33:27+5:302022-02-18T13:44:06+5:30
वाराणसी के जिलाधिकारी द्वारा निकाली गई बालू टेंडर का निर्धारित समय बीतने के बाद भी एक फर्म को अनुचित लाभ पहुंचाते हुए बालू उठाने की अनुमति जारी की गई। यह सभी कार्य वाराणसी जिला प्रशासन की ओर से की गई बड़ी अनियमितताओं, मनमानेपन और भ्रष्टाचार का पुख्ता प्रमाण को पेश कर रहे हैं।
वाराणसी: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में घाट उस पार गंगा में नियम विरुद्ध अवैध बालू खनन को लेकर जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा को निर्देश जारी किया है कि वो इस मामले में सभी आवश्यक दस्तावेज और रिपोर्ट एनजीजी के सामने पेश करें।
एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच के कोर्ट नबर 2 में दायर 'अवधेश दीक्षित बनाम भारत सरकार व अन्य' मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस ब्रजेश सेठ्ठी और स्पेशल मेंबर पर्यावरण विशेषज्ञ डॉक्टर अफरोज अहमद ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से गुरुवार 17 फऱवरी को यह आदेश जारी किया।
इस केस में याचिकाकर्ता डॉक्टर अवधेश दीक्षित की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने एनजीटी बेंच के सामने कहा कि स्थानीय प्रशासन की भूमिका पूरे मामले में संदिग्ध है।
वकील सौरभ ने याचिकाकर्ता डॉक्टर अवधेश दीक्षित की ओर से कहा कि बालू निकासी के ठेके वाराणसी जिला प्रशासन के द्वारा मनमाने तरीके से किये गये। जिसकी वजह से बालू माफियाओं ने रोजाना अवैध तरीके हजारों टन बालू को उठाया और यह सब पर्यावरण के नियमों की अनदेखी करते हुए वाराणसी प्रशासन की मिलीभगत और सारे नियमों को ताख पर रखते हुए किया गया। गंगा में बालू के अवैध खनन से तट को और पर्यावरण पारिस्थितिकी को भयंकर नुकसान पहुंचाया गया है।
इसके साथ ही याचिका में कहा गया है कि बीते साल 2021 में बरसात के पूर्व गंगा नदी में लगभग 12 करोड़ की लागत से नहर की खुदाई का कार्य पर्यावरणीय नियम-कानूनों के विरुद्ध किया गया। जब इस मामले में विवाद हुआ तो वाराणसी जिला प्रशासन ने आनन-फानन में नहर निर्माण से निकली बालू को निस्तारित के लिए 1 जून 2021को टेंडर निकाल दिया।
लेकिन टेंडर निकाले जाने के बाद गंगा में आयी बाढ़ में न तो कथित नहर बची और न ही नहर की खुदाई से निकला बालू बचा। इसके बावजूद वाराणसी के जिलाधिकारी द्वारा निकाले गये बालू टेंडर की आड़ में बगैर किसी अनुमति पत्र के गंगा में अवैध तरीके से बरसात में बह चुकी नहर के कथित ड्रेजिंग में निकले मैटेरियल को उठाने के नाम पर गंगा के पर्यावरण से भारी छेड़छाड़ की गई। रेत माफियाओं ने ने प्रशासन की मिलीभगत से कई महीनों तक लगातार हजारों टन बालू की भयंकर लूट की और एक बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम दिया।
आरोप है कि यह सब तब हुआ जब जिलाधिकारी वाराणसी के द्वारा निकाली गई बालू टेंडर का निर्धारित समय बीत चुका था, इसके बाद भी एक फर्म को अनुचित लाभ पहुंचाते हुए बालू उठान की अनुमति जारी की गई। यह सभी कार्य वाराणसी जिला प्रशासन की ओर से की गई बड़ी अनियमितताओं, मनमानेपन और भ्रष्टाचार का पुख्ता प्रमाण को पेश कर रहे हैं।
इस पूरे मामले में सबसे आश्चर्यजनक बात यह रही की हजारों ट्रैक्टर गंगा बालू का खनन रोजाना होता रहा और इस कारण गंगा नदी की तलहटी तक को मनमाने तरीके खोदा गया लेकिन खनन विभाग के पास इसके खनन का कोई आकलन मौजूद नहीं है।
याचिकाकर्ता डॉक्टर अवधेश दीक्षित की ओर से पेश किये सबूतों के आधार पर एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच के जस्टिस ब्रजेश सेठ्ठी ने संज्ञान लिया और इस मामले में जिलाधिकारी वाराणसी को तत्काल निर्देश जारी करते हुए संबंधित मामले में अवैध बालू खनन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश जारी किया।