सुभाष चंद्र बोस की वो आखिरी हवाई यात्रा! क्या कुछ हुआ था उस दिन और उसके एक दिन पहले, पढ़िए

By विनीत कुमार | Published: January 22, 2021 12:28 PM2021-01-22T12:28:14+5:302021-01-22T12:34:41+5:30

Subhas Chandra Bose: सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर रहस्य अब भी बरकरार है। कई तरह की थ्योरी सामने आ चुकी है। हालांकि, ठोस रूप से कभी कुछ साबित नहीं हुआ। आखिर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की उस आखिरी हवाई यात्रा में क्या हुआ था...पढ़िए।

Netaji Subhas Chandra Bose last days facts, last journey, netaji death mystery story | सुभाष चंद्र बोस की वो आखिरी हवाई यात्रा! क्या कुछ हुआ था उस दिन और उसके एक दिन पहले, पढ़िए

सुभाष चंद्र बोस की आखिरी प्लेन यात्रा, 18 अगस्त 1945 को हुआ था हादसा

Highlightsनेताजी सुभाष चंद्र बोस का 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था जन्म18 अगस्त, 1945 को ताइपे में हवाई दुर्घटना में मौत, पर इसे लेकर रहस्य आज भी बरकरार टोक्यो जाते समय हवाई जहाज उड़ान भरने के कुछ देर बार ही हो गया था क्रैश

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत को लेकर रहस्य आज भी बरकरार है। देश की आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नेताजी की मौत को लेकर अब तक कई बातें कहीं जा चुकी हैं। अब तक सामने आए तथ्य यही बताते हैं कि सुभाष चंद्र बोस की मौत एक प्लेन दुर्घटना में 1945 में हुई। 

हालांकि, ये भी सच है कि उस दुर्घटना के बाद नेताजी को लेकर कई और दावे किए जाते रहे। ये भी कहा गया कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में बच गए थे और दुनिया की नजरों से बचकर जिंदा रहे। इन बातों का वैसे कोई ठोस सबूत कभी नहीं मिल सका। 

बताया जाता है कि ताइवान में प्लेन दुर्घटना के बाद अस्पताल में इलाज के दौरान नेताजी की मौत हो गई पर कुछ दावे कई और इशारे भी करते हैं। आखिर नेताजी की उस आखिरी हवाई यात्रा की कहानी क्या है...क्या कुछ हुआ था उस दिन, आईए बताते हैं। 

महफूज जगह जाने के लिए निकले थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस

अगस्त, 1945 का वो दूसरा हफ्ता था। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरने के बाद जापान बैकफुट पर आ चुका था और हथियार डाल चुका था। ऐसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर भी संकट गहरा रहा था। ऐसे में इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के उनके सहयोगियों ने उनसे कहीं महफूज जगह जाने की सलाह दी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी यही ठीक समझा।

कई औपचारिकताओं और जिम्मेदारियों को अपने सहयोगियों को सौंपने के बाद नेताजी 17 अगस्त की सुबह बैंकॉक एयरपोर्ट पहुंचे। बैंकॉक तब जापान के कब्जे में था। नेताजी के साथ तब 6 लोग और थे। 

हालांकि, जापानी इतने ज्यादा लोगों को एक साथ ले जाने के लिए तैयार नहीं थे। नेताजी ने तब वहां मौजूद जनरल इशोडा से बात की और उन्हें समझाने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि भारत की आजादी की लड़ाई के लिए उन्हें इन लोगों की जरूरत है और वे इन्हें नहीं छोड़ सकते।

दो अलग-अलग जहाजों में रवाना हुई नेताजी की टीम

आखिरकार दो अलग-अलग हवाई जहाजों में इन्हें ले जाने की बात तय हुई। टीम सैगोन के लिए उड़ चली। ये आज के वियतनाम का एक शहर है जिसे 'हो ची मिन' के नाम से जाना जाता है। इस उड़ान में नेताजी के साथ दो छोटे और दो बड़े शूटकेस थे, जिसमें अहम दस्तावेज रखे थे। टीम सुबह करीब 8 या 9 बजे के बीच सैगोन पहुंच गई।

सौगेन पहुंचने के बाद मालूम हुआ कि जापानी INA के लोगों के लिए अलग प्लेन मुहैया कराने को तैयार नहीं थे। युद्ध के हालात के कारण जापान के सहयोगी देशों ने भी बिना किसी निर्देश के प्लेन नहीं उड़ाने की सलाह दी थी। हालांकि, एक प्लेन एयरोड्रम पर जरूर मौजूद था जो टोक्यो जा रहा था। इसमें पहले से ही 11 लोग बैठे हुए थे।

नेताजी को अकेले भेजने की पेशकश

इस विमान में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लिए एक सीट देने की पेशकश जापान की ओर से की गई लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। नेताजी अपनी पूरी टीम को साथ ले जाना चाहते थे। 

आखिरकार आईएनए के अधिकारियों ने नेताजी को सुरक्षित करने के लिए उन्हें अकेले जाने की सलाह दी। उनके साथ के लिए एक और शख्स को साथ ले जाने की बात हुई। नेताजी ने अपने साथ के लिए हबीबुर को चुना और जापानी भी इसके लिए तैयार हो गए।

17 अगस्त की नेताजी की सैगोन से टुरैन की यात्रा

नेताजी को जिस विमान में सवार होना था, वो दो इंजन वाला बमवर्षक विमान था। इसमें एक टम वजन ले जाने की क्षमता थी। 11 जापानी पहले से बैठे थे और नेताजी के साथ उनके एक सहयोगी को भी विमान में बैठना था। साथ ही नेताजी के साथ बक्से भी थे। 

विमान के पायलट ने बक्सों को काफी भारी बताते हुए उन्हें ले जाने से इनकार किया। आखिरकार कैसे भी इन बक्सों को विमान के अंदर रखा गया। नेताजी हबीबुर के अलावा एक और सहयोगी को भी साथ ले जाना चाहते थे। 

हालांकि, विमान में वजन को देखते हुए उनके सामने यही शर्त रखी गई कि या तो तीसरा शख्स भी नेताजी के साथ जा सकता है या फिर बक्से जा सकेंगे। आखिरकार नेताजी ने बक्सों को साथ ले जाने का विकल्प चुना। जानकारों के अनुसार विमान का इंजन यहीं उड़ान के समय काफी आवाज करने लगा था।

18 अगस्त: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आखिरी हवाई यात्रा 

बहरहाल, 17 अगस्त की शाम 5.20 बजे विमान उडा। विमान को उस रात टुरैन में रूकना था और फिर अगले दिन सुबह इसे ताइपे और फिर वहां से टोक्यो के लिए उड़ान भरना था।

टुरैन में विमान के पहुंचते ही पायलट ने कई हथियार और प्लेन में लगे मशीन गन वगैरह हटा दिए ताकि वजन कम हो सके। इसके बाद अगली सुबह यानी 18 अगस्त को विमान ने ताइपे के लिए उड़ान भरी। दोपहर में विमान ताइपे पहुंची और उसमें इंधन भी डाला गया।

योजना के अनुसार विमान को चीन के डालियान पहुंचना था। इसके बाद मंचूरिया प्रांत की राजधानी शेनयांग जाना था। बहरहाल, विमान ने 2 बजे के करीब उड़ान भरी जो आखिरी उड़ान साबित होने वाली थी।

विमान के अंदर कौन कहां बैठा था

विमान के अंदर पहले की यात्रा के तहत सभी अपनी-अपनी जगह पर बैठे थे। सुभाष चंद्र बोस विमान में पेट्रोल की टंकी के पीछे वाली सीट पर बाईं ओर थे। उनके पीछे उनके सहयोगी हबीबुर थे। इसके अलावा कई और जापानी अधिकारी बैठे थे। नेताजी का बैग उनके पैर के करीब रखा हुआ था।

विमान अभी उड़ान भरने के बाद 20 से 30 मीटर की एल्टीट्यूड पर पहुंचा होगा कि एक जोरदार धमाका हुआ। इसके बाद तीन से चार और धमाके हुए। प्लेन के बाईं ओर का प्रोपेलर गिर गया। कंक्रीट रनवे के बाहर तक विमान क्रैश करते हुए दो हिस्सों में टूट गया। इस हादसे में सात लोगों की जान बच सकी।

आग की लपटों से खुद बाहर आए नेताजी

इस विमान क्रैश के बाद चारों और भयानक आग का मंजर था। नेताजी का शरीर पेट्रोल से भरा था और कपड़ों में आग लग गई थी। वे विमान के टूटे हिस्सों से बाहर आए और पीछे-पीछे हबीबुर भी बाहर आए। नेताजी के कपड़ों में आग लगी थी।

हबीबुर ने उन कपड़ों और स्वेटर को जल्दी-जल्दी नेताजी के शरीर से अलग किया। इस हादसे में बचे एक मेजर ताकाशी ने नेताजी को जमीन पर लिटाया और आग बुझाने की कोशिश करने लगे। नेताजी का शरीर और चेहरा आग की गर्मी से तप रहा था। हबीबुर का हाथ और दाएं ओर का चेहरा भी झुलस चुका था। हालांकि उनके कपड़ों में आग नहीं लगी थी।

हवाई दुर्घटना के बाद नेताजी की स्थिति सबसे गंभीर

आननफानन में सभी घायलों को पास के मिलिट्री अस्पताल पहुंचाया गया। इसमें नेताजी की स्थिति सबसे गंभीर थी। जलने के कारण उनके शरीर का चमड़ा कई जगहों पर राख जैसा काला हो गया था।

चेहरे और आंख सूज गए थे। उनकी इंजरी थर्ड डिग्री की थी जो आग से जलने के मामले में काफी खतरनाक मानी जाती है। उन्हें बुखार हो गया था लेकिन इन सबके बावजूद वो होश में थे।

नेताजी की हालत हालांकि खराब होती जा रही थी। उन्हें तीन इंट्रावेनस इंजेक्शन दिए गए। छह और इंजेक्शन उनके हृदय के लिए दिए गए। कुछ खून उनके शरीर से निकाला गया और ब्लड ट्रांसफ्यूजन भी दिया गया। रिकॉर्ड्स के अनुसार शाम करीब 7 या 7.30 बजे के करीब उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गई और रात 8 बजे के बाद उन्होंने आखिरी सांस ली।

Web Title: Netaji Subhas Chandra Bose last days facts, last journey, netaji death mystery story

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