मोदी सरकार ने 4 साल में जितना अपने विज्ञापन पर खर्च किया उतने में हो जाते ये 5 बड़े काम

By रंगनाथ सिंह | Published: September 1, 2018 07:28 AM2018-09-01T07:28:40+5:302018-09-01T07:28:40+5:30

इसी साल जुलाई में भारत को दुनिया के सबसे ज्यादा बेहद ग़रीब लोगों वाले मुल्क के तमगे से मुक्ति मिली। जुलाई में ही नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री ने राज्य सभा में बताया कि सरकार ने अपने प्रचार पर चार साल में कितना खर्च किया है।

Narendra Modi Government Promotion Budget can be used in these 5 better way | मोदी सरकार ने 4 साल में जितना अपने विज्ञापन पर खर्च किया उतने में हो जाते ये 5 बड़े काम

मोदी सरकार ने 4 साल में जितना अपने विज्ञापन पर खर्च किया उतने में हो जाते ये 5 बड़े काम

नई दिल्ली, 01 सितंबर: इसी साल जुलाई में ब्रुकिंग इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट ने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खींचा। देश-विदेश के कई मीडिया संस्थानों में मोटे-मोटे शीर्षकों में ख़बर छपी कि अब भारत दुनिया के सबसे ज़्यादा ग़रीबों वाला मुल्क़ नहीं रहा।

ब्रुकिंग इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार नाइजीरिया ने भारत को इस मामले में पीछे छोड़ दिया है। रिपोर्ट के अनुसार अब केवल सात करोड़ भारतवासी भयानक ग़रीबी में जी रहे हैं, जबकि नाइजीरिया में आठ करोड़ 70 लाख लोग भयानक ग़रीबी में जी रहे हैं। ब्रुकिंग इंस्टीट्यूट ने उन लोगों को बेहद ग़रीब माना है जो 1.9 अमेरिकी डॉलर (करीब 134 रुपये) प्रति दिन से कम में गुजारा करते हैं।

ग़रीबी के अंतरराष्ट्रीय मानक एक तरफ, अब आइए भारत सरकार का ग़रीबी का मानक देखते हैं। साल 2014 के मानक के अनुसार भारत के ग्रामीण इलाके में हर रोज 32 रुपये से कम और शहरी इलाके में प्रति दिन 47 रुपये से कम खर्च करने वालों को सरकार ग़रीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवनयापन करने वाला मानती है।

भारत सरकार के अनुसार करीब 25 प्रतिशत भारतीय (करीब 30 करोड़) गरीबी रेखा के नीचे जीवन गुजार रहे हैं।

इन आंकड़ों के बरक्स अब जुलाई में ही देश की संसद में केंद्र सरकार द्वारा दिये गये एक और आंकड़े पर ग़ौर करें।

देश के सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राज्यवर्धन सिंह राठौर ने संसद के मॉनसून सत्र में राज्य सभा में बताया था कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने चार सालों के कार्यकाल में सरकारी योजनाओं के प्रचार में 4880 करोड़ रुपये खर्च किये हैं। केंद्र सरकार ने ये पैसा अप्रैल 2014 से जुलाई 2018 के बीच 52 हफ्तों में खर्च किया है।

भारत की केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, सभी पैसे की कमी का रोना रोती रहती हैं। ऐसे में जनता के प्रतिनिधि मानी जाने वाली सरकारों को विज्ञापनों पर हजारों करोड़ खर्च करना कितना नैतिक और न्यायसंगत है?

आइए देखते हैं नरेंद्र मोदी सरकार ने चार साल में जितने पैसे विज्ञापन पर खर्च किये हैं उनमें ग़रीबों और आम लोगों की बेहतरी के लिए कौन से काम किये जा सकते थे।

1- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)

वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर अब तक केंद्र सरकार ने 4365.38 करोड़ रुपये देश भर में 20 एम्स स्थापित करने के लिए खर्च किये हैं। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के अनुसार इनमें से केवल छह एम्स अभी तक चालू हुए हैं। मोदी सरकार ने जितना पैसा इन चार सालों में विज्ञापन पर खर्च किया है उतने में एम्स का बज़ट दोगुना किया जा सकता था।

2- स्कूली बच्चों के लिए मिड डे मील

भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में मिड डे मील के लिए 10 हजार 500 करोड़ रुपये का बज़ट आवंटित किया था जिसमें से 2225 करोड़ रुपये जारी किये जा चुके हैं। 

मिड डे मील के तहत सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को दोपहर का भोजन खिलाया जाता है। चार हजार करोड़ रुपये में बच्चों को खाना देने का बज़ट करीब 40 फीसदी बढ़ जाता।

3-  मनरेगा में रोजगार

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वित्त वर्ष 2018-19 का बज़ट पेश करते हुए महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार योजना (मनरेगा) के लिए 55 हजार करोड़ रुपये आवंटित किये थे।

मनरेगा के तहत देश के ग्रामीण इलाकों के मजदूरों को साल के 365 दिनों में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिया जाता है।

विज्ञापन में खर्च किये गये चार हजार करोड़ रुपयों में मनरेगा के तहत देश  20.643 करोड़ लोगों को एक दिन का रोजगार दिया जा सकता था। 

4- 10 मंगलयान और भेजे जा सकते थे

साल 2014 में जब भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह के लिए निरीक्षण के लिए मंगलयान भेजने में सफलता हासिल की तो पूरी दुनिया में उसकी तारीफ हुई।

भारत के मंगल अभियान की एक और बात के लिए काफी प्रशंसा हुई। वो बात है इसका किफायती होना। भारत के मंगलयान को तैयार करने में करीब 450 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

पीएम मोदी ने मंगलयान के किफायती लागत की प्रशंसा करते हुए याद दिलाया था कि इससे ज्यादा लागत में एक हॉलीवुड फिल्म बनी है। पीएम मोदी का इशारा उस समय आयी स्पेस फैंटेसी फ़िल्म ग्रैविटी की तरफ था जिसकी लागत 10 करोड़ डॉलर (करीब सात सौ करोड़ रुपये) था।

जाहिर है भारतीय वैज्ञानिकों की तरह मोदी सरकार भी किफायती होती तो 4880 करोड़ में भारत 10 मंगलयान और अंतरिक्ष में भेज सकता था।

5- सौर बिजली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चार साल के कार्यकाल में सौर ऊर्जा उत्पादन को काफी अहमियत दी है। 

मोदी सरकार ने पर्यावरण हितों के अनुरूप साल 2022 तक 100 गीगावाट बिजली सौर ऊर्जा से बनाने का लक्ष्य रखा है।

साल 2018 के बजट में केंद्र सरकार ने करीब दो हजार रुपये सौर ऊर्जा के लिए आवंटित किये थे।

साफ है कि सरकार जितना पैसा सौर ऊर्जा बनाने के लिए खर्च करना चाहती है उससे दोगुना वो अपने प्रचार पर खर्च कर चुकी है।

मोदी सरकार ने विज्ञापन के लिए खर्च किये गये 4880 करोड़ रुपये में करीब 920.75 मेगावाट सौर ऊर्जा तैयार हो सकती थी। 

पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की सालाना बिजली की खपत करीब 676 मेगावाट है।

यानी मोदी सरकार ने जितना प्रचार पर खर्च किया उतने पैसे में बनारस को एक साल तक बिजली मिल सकती थी।

मनमोहन सिंह सरकार का विज्ञापन पर खर्च

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली की याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया था कि मनमोहन सिंह सरकार ने मार्च 2011 से मार्च 2014 के बीच 37 हफ्तों में सरकार के कामकाज के विज्ञापन पर करीब 2048 करोड़ रुपये खर्च किये थे। 

यानी सरकार कोई है उसे गरीबी, रोजगार, बिजली, अस्पताल और शिक्षा से ज्यादा जरूरी अपना प्रचार-प्रसार लगता है।

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