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मोदी मंत्रिमंडल विस्तार: क्या दक्षिणी राज्यों को मिला उचित प्रतिनिधित्व?

By भाषा | Updated: June 1, 2019 15:38 IST

2009 में संप्रग-2 सरकार में तमिलनाडु से नौ मंत्री बनाए गए थे। भाजपा को इस बार राज्य में एक भी सीट नहीं मिली, जबकि उसके सहयोगी अन्नाद्रमुक ने एक (थेनी) सीट जीतने में कामयाबी हासिल की और बाकी 37 लोकसभा सीट द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन के खाते में चली गयीं।

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चेन्नई, एक जून (भाषा) उधर केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दूसरी पारी की भव्य शुरुआत की, इधर दक्षिण भारत में यह चर्चा तेज हो चली है कि इस क्षेत्र, विशेष रूप से तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश को मंत्रिमंडल के आवंटन में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। कर्नाटक से निर्मला सीतारमण के अलावा तीन केंद्रीय मंत्री बनाए गए हैं, जबकि केरल और तेलंगाना से एक-एक मंत्री हैं।

कर्नाटक से राज्यसभा सांसद निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्रालय मिला है। तमिलनाडु के खाते में एक भी मंत्री पद नहीं गया। 2009 में संप्रग-2 सरकार में तमिलनाडु से नौ मंत्री बनाए गए थे। भाजपा को इस बार राज्य में एक भी सीट नहीं मिली, जबकि उसके सहयोगी अन्नाद्रमुक ने एक (थेनी) सीट जीतने में कामयाबी हासिल की और बाकी 37 लोकसभा सीट द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन के खाते में चली गयीं।

द्रमुक प्रमुख एम के स्टालिन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रिमंडल में तमिलनाडु के किसी प्रतिनिधि को जगह नहीं देकर राज्य की ‘‘उपेक्षा’’ की है, क्योंकि वह इस बात से नाराज हैं कि लोगों ने उनकी पार्टी के एक भी उम्मीदवार को नहीं चुना। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के एस अलागिरी ने कहा कि इसे केवल अनाद्रमुक का बहिष्कार ही नहीं बल्कि तमिलनाडु का भी बहिष्कार माना जाना चाहिए।

उन्होंने आरोप लगया कि तमिलनाडु की उपेक्षा की गई है। उन्होंने कहा कि सीतारमण और विदेश मंत्री एस जयशंकर का तमिल लोगों से कोई संबंध नहीं है और उन्हें तमिलनाडु का प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता। राजनीतिक विश्लेषक एम भरत कुमार ने कहा, निर्मला सीतारमण कर्नाटक से राज्यसभा सदस्य हैं, जबकि एस जयशंकर दिल्ली में रहते हैं।

उन्होंने सवाल खड़ा किया, ‘‘उनका तमिलनाडु से अब कोई संबंध नहीं है। आप उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे हमारे राज्य के हितों की रक्षा करेंगे?’’ हालांकि, विश्लेषक रवींद्रन दुरईसामी ने कहा कि तमिलनाडु की उपेक्षा किये जाने की धारणा गलत है। सीतारमण और जयशंकर दोनों तमिलनाडु से हैं और उनकी जड़ें यहाँ हैं।

उन्होंने कहा कि सीतारमण को भले ही कर्नाटक से उच्च सदन के लिए चुना गया हो, लेकिन वे तमिलनाडु की मूल निवासी हैं और यही बात जयशंकर के साथ भी है। राजनीतिक पर्यवेक्षक डी जगदीश्वरन ने कहा कि अन्नाद्रमुक के शीर्ष नेतृत्व के भीतर मतभेद के कारण तमिलनाडु से किसी सांसद (लोकसभा और राज्यसभा दोनों) को मंत्रालय नहीं मिला है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सदस्य एल गणेशन ने कहा कि वर्तमान केंद्रीय मंत्रिमंडल पूर्ण नहीं है, इसमें और अधिक मंत्रियों के शामिल किये जाने के संकेत है, जाहिर है कि भविष्य में मंत्रिमंडल के विस्तार में तमिलनाडु के पास मौका रहेगा। उन्होंने कहा, ‘‘अन्नाद्रमुक को एक मंत्री पद दिया जाना चाहिए था, लेकिन हमें नहीं पता कि वार्ता के दौरान क्या हुआ और उसमें क्या निकला।’’

मंत्रिमंडल में आंध्र प्रदेश के प्रतिनिधित्व के बारे में भी यही धारणा है। आंध्र प्रदेश के राजनीतिक टिप्पणीकार पी नवीन ने कहा, ‘‘मोदी मंत्रिमंडल को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे केंद्र का आंध्र प्रदेश के साथ कोई संबंध नहीं है।’’ भाजपा के आंध्र प्रदेश से केवल एक सांसद सुरेश प्रभु हैं, जो 2016 में उच्च सदन के लिए चुने गए थे। हालांकि उन्हें इस बार मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई।

तेलंगाना में भाजपा ने चार लोकसभा सीटें जीती हैं। विश्लेषक तेलाकापल्ली रवि का कहना है कि अगर राज्य से चुनकर आए जी किशन रेड्डी को कम से कम स्वतंत्र प्रभार दिया जाता, तो लोग ज्यादा खुश होते। हालांकि कर्नाटक को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया गया है, लेकिन अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में राजनीतिक दर्शन पढ़ाने वाले नारायण ए ने कहा कि यह कहना थोड़ा सी जल्दीबाजी होगी कि मोदी कैबिनेट में राज्य को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया है, क्योंकि मंत्रिमंडल का पूरा होना अभी बाकी है।

मोदी के पिछले मंत्रिमंडल में कर्नाटक से सीतारमण सहित पांच सदस्य थे। भाजपा की केरल इकाई के प्रमुख पी एस श्रीधरन पिल्लई ने तर्क दिया कि दक्षिणी राज्यों ने पार्टी को कम सांसद दिए हैं, लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री ने दक्षिण को उचित सम्मान दिया है। हालांकि, भाजपा ने केरल में एक भी सीट हासिल नहीं की, इसके बावजूद राज्य के पूर्व पार्टी प्रमुख वी मुरलीधरन को विदेश राज्य मंत्री बनाया गया है। वह महाराष्ट्र से राज्यसभा सदस्य हैं।

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