दारुल उलूम देवबंद ने मुस्लिम समाज से की अपील, कहा- महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन को मानना शरई लिहाज से भी लाजमी

By भाषा | Published: April 8, 2020 02:00 PM2020-04-08T14:00:56+5:302020-04-08T14:00:56+5:30

देशभर में कोरोना वायरस का कहर है और देशभर में 1500 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। इसके बाद दारुल उलूम देवबंद ने मुस्लिमों से घर में रहने की अपील की है।

Muslims community should follow lockdown orders, says Darul Uloom Deoband | दारुल उलूम देवबंद ने मुस्लिम समाज से की अपील, कहा- महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन को मानना शरई लिहाज से भी लाजमी

शब—ए—बारात में इबादत, दुआ करना और उसके अगले दिन रोजा रखना चाहिए। (फाइल फोटो)

Highlightsदारुल उलूम देवबंद ने कहा घरों में ही रहकर इबादत करना शरई और कानूनी दोनों ही लिहाज से जरूरी है।मौलाना नोमानी ने कहा कि हदीस के मुताबिक शब—ए—बारात में कोई भी काम सामूहिक रूप से करने का कोई सुबूत नहीं है।

लखनऊ। देश के प्रमुख इस्लामी शिक्षण संस्थानों में शुमार दारुल उलूम देवबंद ने कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर घोषित लॉकडाउन के पालन को शरई लिहाज से भी जरूरी बताते हुए कहा है कि मौजूदा हालात में शब—ए—बारात में घरों में ही रहकर इबादत करना शरई और कानूनी दोनों ही लिहाज से जरूरी है।

दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नोमानी ने मंगलवार को मुस्लिम कौम को लिखे खुले पत्र में कहा कि देश की सरकार ने कोरोना महामारी के मद्देनजर लॉकडाउन घोषित किया है। इसे मानना हर नागरिक का फर्ज है। महामारी से संबंधित शरीयत की हिदायत भी यही है।

उन्होंने कहा कि पैगम्बर मुहम्मद साहब की हदीस और हजरत उमर फारूक समेत तमाम सहाबा कराम के अमल से भी यही मार्गदर्शन मिलता है। लिहाजा मौजूदा हालात में एहतियात करना और घरों में ही रहना शरई और कानूनी दोनों ही एतबार से जरूरी है। तमाम मुसलमान लॉकडाउन की पाबंदियों को मानें और किसी तरह की गफलत ना बरतें।

मौलाना नोमानी ने एक अहम मसले की तरफ ध्यान दिलाते हुए यह भी कहा कि यह सही है कि दुनिया में सारी चीजें उस परम पिता के हुक्म से होती हैं, मगर हमें महामारी का उपाय अपनाने का हुक्म भी शरीयत ही से मिला है।

उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के खतरे के तहत दुनिया के ज्यादातर देशों की तरह हमारे मुल्क में भी लॉकडाउन लागू है। इसके 14 दिन गुजर चुके हैं लेकिन अभी तक यह शिकायत सुनने में आती है कि लोग इस पाबंदी का पूरी तरह पालन नहीं कर रहे हैं। शायद ऐसे लोग उन पाबंदियों को सिर्फ हुकूमत की प्रशासनिक नीति के तौर पर देखते हैं। तमाम मुसलमानों से यह गुजारिश है कि हुकूमत और कानून की पाबंदी मानना भी हमारी अखलाकी और शरई ज़िम्मेदारी है।

 मौलाना नोमानी ने कहा कि हदीस के मुताबिक शब—ए—बारात में इबादत, दुआ करना और उसके अगले दिन रोजा रखना चाहिए, लेकिन इनमें से कोई भी काम सामूहिक रूप से करने का कोई सुबूत नहीं है। इस रात में कब्रिस्तान जाने की भी कोई व्यवस्था नहीं है। इसके बावजूद बहुत से लोग कब्रिस्तान या मस्जिदों में सामूहिक रूप से जाते हैं।

उन्होंने कहा कि तमाम मुसलमानों से आग्रह है कि वे मौजूदा हालात में शब—ए—बारात में मस्जिदों या कब्रिस्तान जाने का इरादा भी न करें। अपने बच्चों और नौजवानों को बाहर निकलने से मना करें। चिराग जलाने या पटाखे जलाने जैसी रस्मों और 'गुनाहों' से मुकम्मल परहेज करें। 

Web Title: Muslims community should follow lockdown orders, says Darul Uloom Deoband

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