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भारत में पांच साल तक की उम्र के 68 प्रतिशत बच्चों की मौत की वजह जच्चा-बच्चा का कुपोषण, जानें क्या कहते हैं आंकड़े

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 12, 2020 19:46 IST

भारत में जिला स्तर पर बाल मृत्युदर और बाल विकास की असफलता को लेकर पहली बार विस्तृत आकलन पेश किया गया है।

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ठळक मुद्देभारत में जिला स्तर पर बाल मृत्युदर और बाल विकास की असफलता को लेकर पहली बार विस्तृत आकलन पेश किया गया है। इसके मुताबिक, वर्ष 2000 से 2017 के बीच पूरे भारत में तमाम संकेतकों में सुधार हुआ है।

नयी दिल्ली: भारत में पांच साल से कम उम्र के 68 प्रतिशत बच्चों की मौत की वजह बच्चे और उसकी मां का कुपोषण है जबकि 83 प्रतिशत शिशुओं की मृत्यु की वजह जन्म के समय कम वजन और समय पूर्व प्रसव होना है। यह खुलासा मंगलवार को जारी ‘‘इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज बर्डन इनिशिएटिव’’ नामक एक रिपोर्ट में किया गया। 

भारत में जिला स्तर पर बाल मृत्युदर और बाल विकास की असफलता को लेकर पहली बार विस्तृत आकलन पेश किया गया है। इसके मुताबिक, वर्ष 2000 से 2017 के बीच पूरे भारत में तमाम संकेतकों में सुधार हुआ है लेकिन कई राज्यों में जिलों के बीच असमानता बढ़ी है और भारत के जिलों के बीच विशाल अंतर है।

अध्ययन के नतीजे बच्चे के जीवित रहने पर किए गए दो वैज्ञानिक शोधपत्रों का हिस्सा हैं और ऐसे समय पर इन्हें प्रकाशित किया गया है जब देश कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ लड़ रहा है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि यह हमें याद दिलाता है कि हमें कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए हरसंभव प्रयास करने चाहिए पर इसके साथ ही, भारत में अन्य अहम स्वास्थ्य मुद्दे और उनसे होने वाली स्वास्थ्य संबंधी हानि का भी ध्यान रखना चाहिए। 

अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2000 से भारत में पांच साल की उम्र तक के बच्चों में मृत्युदर 49 प्रतिशत घटी है लेकिन राज्यों के बीच इसमें छह गुना तक और जिलों में 11 गुना तक अंतर है। इसके मुताबिक, वर्ष 2017 में भारत में पांच साल से कम उम्र के 10.4 लाख बच्चों की मौत हुई जिनमें से 5.7 लाख शिशु थे। इस प्रकार, वर्ष 2000 के मुकाबले 2017 में पांच साल से कम उम्र के 22.4 लाख बच्चों की कम मौतें हुई जबकि शिशुओं की मौत की संख्या में 10.2 लाख की कमी आई। 

अध्ययन में कहा गया कि वर्ष 2000 के मुकाबले शिशु मृत्युदर में 38 प्रतिशत की कमी आई है लेकिन राज्यों के बीच मृत्युदर में पांच गुना तक और जिलों में आठ गुना तक अंतर है। अध्ययन में कहा गया, ‘‘ पांच वर्ष के बच्चों की मृत्युदर के मुकाबले नवजात बच्चों की मृत्यु दर में कम गिरावट आई और विभिन्न राज्यों और जिलों में भी अंतर है।’’ अध्ययन में कहा गया, ‘‘अगर वर्ष 2017 में दिखी परिपाटी जारी रही तो भारत पांच वर्ष के बच्चों की मृत्यु दर के मामले में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2030 के लिए निर्धारित स्थायी विकास लक्ष्य को हासिल कर लेगा लेकिन नवजात शिशु मृत्यु दर में यह संभव नहीं दिख रहा।

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत के 34 प्रतिशत जिलों को पांच वर्ष के बच्चों की मृत्युदर में कमी लाने के लिए अधिक प्रयास करना होगा। वहीं 60 जिलों को शिशु मृत्यु दर घटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।’’ भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ.बलराम भार्गव ने कहा, ‘‘ इस शोधपत्र में जिला स्तर पर दी गई जानकारी प्रत्येक राज्य में प्राथमिकता वाले जिलों का चुनाव करने में मददगार साबित होगी जहां पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।’’ 

पब्लिक हेल्थ फांडेशन ऑफ इंडिया में प्रोफेसर और बाल मृत्युदर पर शोधपत्र की प्रमुख लेखक राखी दंडोना ने कहा, ‘‘भारत के सभी 723 जिलों में बाल मृत्युदर की परिपाटी की तुलना राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और वैश्विक स्थायी विकास लक्ष्य से करने पर उन जिलों की पहचान हुई है जहां पर अधिक अंतर है और ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ जन्म के पहले महीने में होने वाली मौतों की संख्या में कमी आने के लिए मौत के कारणों को दूर करना जरूरी है। पूरे भारत में कुपोषण बाल मृत्यु के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

जन्म के समय बच्चे का कम वजन खतरे का मुख्य हिस्सा है।’’ पब्लिक हेल्थ फांडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और प्रोफेसर श्रीकांत रेड्डी ने कहा, ‘‘ पांच साल से कम उम्र के बच्चों और नवजातों की मौत दर में कमी यह भरोसा देती है कि हम वैश्विक स्थायी विकास लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं।’’ 

अध्ययन में कहा गया कि पांच साल तक की उम्र के बच्चों में मृत्युदर के मुकाबले शिशु मृत्युदर में कम गिरावट हुई लेकिन राज्यों के बीच इस मामले में भी अंतर रहा। दोनों शोधपत्र द लांसेट और ई-क्लीनिकल मेडिसिन में जारी किये गये हैं और ये भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स ऐंड इवैल्यूशन एवं भारत में अन्य हितधारकों की संयुक्त पहल हैं।

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