महाराष्ट्र चुनाव: लातूर ग्रामीण सीट पर अनोखा कमाल, कांग्रेस के धीरज देशमुख को मिली जीत, पर नोटा बना 'उपविजेता'
By अभिषेक पाण्डेय | Published: October 24, 2019 06:18 PM2019-10-24T18:18:02+5:302019-10-24T18:28:18+5:30
Latur Rural seat: महाराष्ट्र चुनावों में लातूर रूरल सीट पर अजीबोगरीब कमाल दिखा, यहां कांग्रेस के धीरज देशमुख के बाद नोटा को मिले सर्वाधिक वोट
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए गुरुवार को 288 सीटों के लिए हुई मतगणना में भले ही बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ हो लेकिन दो ऐसी सीटें भी रहीं, जहां से कांग्रेस का दबदबा कायम रहा।
ये सीटे हैं, लातूर सिटी और लातूर ग्रामीण सीटें, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बेटे अमित देशमुख और धीरज देशमुख ने जीत हासिल की।
लातूर ग्रामीण में दूसरे नंबर पर रहा नोटा
धीरज देशमुख ने लातूर ग्रामीण सीट पर पहली बार चुनाव लड़ते हुए जीत हासिल की। लेकिन कमाल की बात ये रही की इस सीट पर धीरज के बाद दूसरे नंबर पर सर्वाधिक वोट NOTA को मिले और शिवसेना तीसरे और बहुजन वंचित अघाडी तीसरे चौथे नंबर पर खिसक गई।
लातूर ग्रामीण सीट पर कुल पड़े 194359 वोटों में से धीरज देशमुख को सर्वाधिक 131321 वोट मिले, जबकि इसके बाद 26899 वोटों के साथ दूसरे सर्वाधिक वोट नोटा ने हासिल किए। इसके बाद तीसरे नंबर पर शिवसेना के सचिन देशमुख रहे, जिन्हें 13113 वोट मिले, जबकि बहुजन वंचित अघाडी के मंचकरो बलिराम को 12670 वोट मिले।
वहीं लातूर सिटी सीट से धीरज के बड़े भाई और वर्तमान विधायक अमित देशमुख ने 38 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल करते हुए इन सीटों पर देशमुख परिवार का दबदबा बनाए रखा।
39 वर्षीय धीरज ने इस जीत के साथ ही जहां लातूर ग्रामीण सीट से अपना राजनीतिक डेब्यू किया है तो वहीं उनके बड़े भाई और यहां से दो बार के विधायक अमित देशमुख ने लातूर सिटी से लगातार तीसरी बार चुनाव जीता है।
धीरज चुनावी भाषणों में अपने हाव-भाल और बोलने के अंदाज की वजह से पहले ही चर्चित हो चुके हैं। युवा कांग्रेस के नेताओं के मुताबित धीरज मराठी, हिंदी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में धाराप्रवाह बोल लेते हैं और इसीलिए मतदाताओं पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं।
लातूर की दो सीटों पर रहा है देशमुख परिवार का वर्चस्व
देशमुख परिवार इस इलाके में चीनी उद्योग नियंत्रित करता है। धीरज के चाचा दिलीप राज्य के पूर्व राज्य मंत्री रहे हैं। लातूर सीट को कांग्रेस के लिए सुरक्षित माना जाती रही है। 1995 को छोड़कर कांग्रेस ने हर बार यहां जीत हासिल की है।