आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों को दो गठबंधनों-बीजेपी-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी- के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है। लेकिन इन चुनावों में दो ऐसी भी पार्टियां हैं, जो कई सीटों पर बड़े खिलाड़ियों का खेल बिगाड़ सकती हैं।
इन पार्टियों के नाम हैं, वंचित बहुजन अघाडी (VBA) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS)। एमएनएस इन चुनावों में 105 सीटों पर और बहुजन अघाडी 274 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
वीबीए का नेतृत्व प्रकाश आंबेडकर के हाथों में हैं, जो बीआर आंबेडकर के पोते हैं और 1 जनवरी 2018 को महाराष्ट्र में भीमा कोरेगांव के दौरान हुई हिंसा के बाद सुर्खियों में आए थे, इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए थे।
बहुजन वंचित अघाडी के पास कांग्रेस-एनसीपी का खेल बिगाड़ने की क्षमता?
प्रकाश आंबेडकर की बहुजन वंचित अघाडी की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनावों में 1 लाख वोट हासिल करते हुए कम से कम आठ सीटों पर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की जीत की उम्मीदों पर पानी फेरा था। इन सभी सीटों पर वीबीए द्वारा हासिल किए गए वोटों की संख्या विजेता के जीत से ज्यादा रही थी।
वीबीए ने लोकसभा चुनावों के अपने साझेदारा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) से नाता तोड़ लिया है, जिसने औरंगाबाद लोकसभा सीट जीती थी। लेकिन पार्टी अपने पारंपरिक वोटों पिछड़ी जातियों और दलितों पर भरोसा कर रही है। लोकसभा चुनावों में इस नव गठित पार्टी ने करीब 41 लाख वोट हासिल किए थे, जो राज्य में पड़े कुल वोटों का करीब 7.6 फीसदी हैं और राज्य के दोनों बड़े गठबंधन के बाद सर्वाधिक वोट हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हालांकि वीबीए की ताकत घटी है लेकिन उसमें अब भी कांग्रेस और एनसीपी को नुकसान पहुंचाने की क्षमता है।
वीबीए उम्मीदवारों को मिले वोट ही लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों-नांदेड़ से अशोक चव्हाण और सोलापुर से सुशीलकुमार शिंदे, की हार की वजह बने थे।
इस साल की शुरुआत में सीटों के बंटवारे पर सहमति ना बन पाने की वजह से कांग्रेस-एनसीपी के साथ गठबंधन के लिए वीबीए की बातचीत टूट गई थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि बहुजन वंचित अघाडी अब भी कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के लिए बड़ा खतरा है और इससे अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को फायदा होगा। माना जा रहा है कि वीबीए उम्मीदवारों में कई सीटों पर 10 हजार वोट पाने की क्षमता है, ये संख्या कांग्रेस-एनसीपी का गणित बिगाड़ने और सत्तारूढ़ दल को फायदा पहुंचाने के लिए पर्याप्त है।
एमएनएस के लिए बीजेपी-शिवसेना को चुनौती देना मुश्किल
बड़ी पार्टियों का खेल बिगाड़ने की क्षमता रखने वाली एक और पार्टी है महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस), जिसने 2009 के विधानसभा चुनावों में 13 सीटें जीतते हुए भगवा गठबंधन को जोरदार झटका दिया था, हालांकि उसके बाद वह अपना ये प्रदर्शन बरकरार नहीं रख पाई।
इस बार पार्टी ने कांग्रेस-एनसीपी के साथ एक समझौता किया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उसकी शक्तियां क्षीण हो चुकी हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि 2014 विधानसभा चुनावों और 2017 नगरपालिका चुनावों में करारी हार और अपने नेताओं के बड़े पैमाने पर दलबदल के बाद एमएनएस एक हतोत्साहित शक्ति रह गई है...उसने एनसीपी के साथ कुछ सीटों पर समझौता किया है, लेकिन इसका बहुत कम प्रभाव पड़ने की संभावना है। बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे द्वारा स्थापित एमएनएस ने 2014 विधानसभा चुनावों में महज एक सीट ही जीती थी।
2019 लोकसभा चुनावों में एमएनस ने चुनाव तो नहीं लड़ा लेकिन राज ठाकरे ने बीजेपी-शिवेसेना गठबंधन के खिलाफ प्रचार किया था। लेकिन परिणामों में इसका असर बेहद सीमित दिखा। इस बार भी पार्टी के ज्यादातर वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव ना लड़ने का फैसला किया है।