कोविड के कारण इस साल भी लोगों के घर नहीं जा सकेंगे ‘महाबली’

By भाषा | Published: August 20, 2021 08:25 PM2021-08-20T20:25:22+5:302021-08-20T20:25:22+5:30

'Mahabali' will not be able to go to people's homes this year due to Kovid | कोविड के कारण इस साल भी लोगों के घर नहीं जा सकेंगे ‘महाबली’

कोविड के कारण इस साल भी लोगों के घर नहीं जा सकेंगे ‘महाबली’

केरल की पौराणिक कथाओं के अनुसार असुर राज महाबली ने हर साल वार्षिक ‘तिरू ओणम’ दिवस पर अपनी प्रजा से मिलने का भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था । उत्तरी केरल के मालाबार क्षेत्र में महाबली वास्तव में ओणम के अवसर पर उसी तरह के वेशभूषा वाले अभिनेताओं के रूप में गांव के प्रत्येक घर में जाते हैं जहां उनका स्वागत पारंपरिक दीपों और अक्षत (चावल) से भरे बर्तनों से किया जाता है। इसके बदले महाबली परिवार के सदस्यों पर आशीर्वाद देते हैं। लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण लगातार दूसरे वर्ष ये पारंपरिक लोक कलाकार वार्षिक ‘तिरू ओणम’ के मौके पर कल (शनिवार) दशकों पुरानी प्रथा को कायम नहीं रख सकेंगे। हरे-भरे ग्रामीण इलाकों और धान के खेतों से गुजरते हुए, भारी टोपी पहने और पीतल की घंटी बजाने के अलावा हाथ में ‘‘ओलक्कुड़ा’’(ताड़ के पत्ते की छतरी) लिए ऐसे कलाकार ओणम के दौरान अक्सर दिखते हैं। ‘‘ओनापोट्टन’’ के रूप में प्रसिद्ध कलाकार महाबली का लोक प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक देवता और समृद्धि के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।स्थानीय मान्यता के अनुसार, मलयालम महीने चिंगम के ‘उथराडोम’ और ‘तिरू ओणम’ के दिनों में ‘ओनापोट्टन’ का घर आना और आशीर्वाद देना शुभ माना जाता है । अनुसूचित जाति में आने वाले मलय समुदाय के सदस्य लोक चरित्र के रूप में तैयार होते हैं और अपनी सदियों पुरानी परंपरा को बनाए रखते हुए लोगों के घरों में जाते हैं। ऐसे ही एक कलाकार बाबू थलप्प ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह लगातार दूसरा वर्ष है जब हम ओणम के मौसम में ओनापोट्टन के रूप में तैयार नहीं हो रहे हैं। मेरा बेटे और मेरे भाई का बेटा भी इस कला के लिये तैयार होते थे।’’उन्होंने कहा कि ओणम को याद करना उन लोगों के लिए एक बड़ी पीड़ा है जो परंपरागत रूप से वर्षों से (महाबली के) इस चरित्र को निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि उनके पास इसे छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं है क्योंकि कुछ जोखिम भी है। उन्होंने बताया, ‘‘जब ओनापोट्टन अपने पूरे मेकअप और रंगीन परिधानों में प्रत्येक घर जाते हैं, तो कई लोग विशेष रूप से बच्चे मनोरंजन के लिए उनके साथ चलते हैं लेकिन महामारी के मद्देनजर यह अच्छा नहीं है ।’’ उन्होंने कहा कि घरों में इस ‘‘महाबली’’ का स्वागत परिवार के सदस्यों द्वारा, विशेष रूप से बुजुर्ग व्यक्तियों द्वारा दीप जलाकर किया जाता है और वर्तमान परिस्थिति में आवश्यक सामाजिक दूरी के मानदंडों का पालन नहीं किया जा सकता है । बच्चों की कहानी की किताबों में ‘असुर’ राजा रेशम की पोशाक, शाही आभूषण और मुकुट में होते हैं लेकिन मालाबार में इन ‘महाबली’ को कमर के नीचे एक सामान्य लाल रंग का कपड़ा लपेटे हुए और हाथों में ताड़ के पत्ते की छतरी लिए हुए देखा जा सकता है। इस लोक चरित्र का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि महाबली के रूप में तैयार होने के बाद कलाकार किसी से बात नहीं करते। ‘‘पोट्टन’’ का अर्थ स्थानीय भाषा में बोलने में अक्षम व्यक्ति होता है।मूल रूप से कन्नूर जिले के रहने वाले बाबू ने कहा कि ओनापोट्टन अपनी यात्रा के दौरान या घरों में जाते समय एक भी शब्द नहीं बोलते हैं, चलते समय वह अपने पीतल की घंटी बजाते हैं ताकि लोगों को उसके आगमन के बारे में पता चले और जब वे घंटी बजने की आवाज सुनते हैं, तो लोग उन्हें अपने घरों में बुलाने की व्यवस्था करते हैं । ऐसे कलाकार के साथ आमतौर पर दो अन्य कलाकार भी होते हैं जो ड्रम और झांझ बजाते हैं।

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