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बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना पर तब के गृह सचिव माधव गोडबोले ने कहा, 'राजीव गांधी राम मंदिर आंदोलन के दूसरे कारसेवक'

By विनीत कुमार | Updated: November 4, 2019 14:02 IST

माधव गोडबोले ने इन बातों का जिक्र अपनी किताब 'द बाबरी मस्जिद-राम मंदिर डिलेमा: एन एसिड टेस्ट फॉर इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन' में किया है।

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ठळक मुद्दे'हमने आर्टिक 355 लगाने का प्रस्ताव रखा था जिससे यूपी में तब राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता था''मंदिर के लिए पत्थर रखने की रस्म राजीव गांधी के कार्यकाल में हुई, इसलिए मैं उन्हें दूसरा कारसेवक मानता हूं'राजीव गांधी ने शुरुआत में ही इस मसले के हल विचार किया होता तो समस्या का हल निकल आता

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद पर इसी महीने सुप्रीम कोर्ट के आने वाले संभावित फैसले से पहले बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना के समय केंद्रीय गृह सचिव रहे माधव गोडबोले का बड़ा बयान सामने आया है। 

न्यूज एजेंसी एएनआई के अनुसार माधव गोडबोले ने कहा कि बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने और मंदिर के लिए पत्थर रखने की रस्म राजीव गांधी के कार्यकाल में हुई और इसलिए वे उन्हें इस पूरे आंदोलन का दूसरा कारसेवक मानते हैं। गोडबोले के अनुसार पहले कारसेवक वे जिला मजिस्ट्रेट हैं जिन्होंने इन सब की शुरुआत की इजाजत दी। 

साथ ही गोडबोले ने ये भी कहा कि राजीव गांधी ने शुरुआत में ही इस मसले के हल पर ज्यादा तत्परता से विचार किया होता तो समस्या का हल निकल आता जो सभी को मान्य होता।

माधव गोडबोले ने इन बातों का जिक्र अपनी किताब 'द बाबरी मस्जिद-राम मंदिर डिलेमा: एन एसिड टेस्ट फॉर इंडियन कॉन्स्टीट्यूशन' में भी किया है और कहते हैं कि जब बाबरी मस्जिद गंभीर खतरने में थी तब नरसिम्हा राव के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और वीपी सिंह भी समय से कोई ठोस कदम उठाने में विफल रहे।

'घटना से पहले संशय में रहे नरसिम्हा राव'

साल 1992 में बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना पर गोडबोले ने कहा कि तब के हालात के दौरान राज्य सरकार बिल्कुल भी सहयोग नहीं कर रही थी और ऐसे में आर्टिकल 355 लगाया जाने का प्रस्ताव था ताकि मस्जिद को बचाने के लिए केंद्रीय बल उत्तर प्रदेश भेजा जा सके।

गोडबोले ने कहा, 'हमने आर्टिकल 355 लगाने का प्रस्ताव रखा था, जिसके द्वारा केंद्रीय बलों को उत्तर प्रदेश भेजा जा सकता था और फिर राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा सकता था।'

गोडबोल के अनुसार, 'हमने कई योजनाएं बना रखी थी क्योंकि राज्य सरकार सहयोगात्मक नहीं थी। उस समय प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव इस बात को लेकर संशय में थे कि संभवत: संविधान के तहत उनके पास ऐसी शक्ति है या नहीं जिससे वे इस परिस्थिति में राष्ट्रपति शासन लगा पाते।'

गोडबोले ने ये भी कहा कि अगर राजीव गांधी ने कदम उठाए होते तो समस्या के हल का रास्ता खोजा जा सकता था क्योंकि राजनीतिक परिस्थिति दोनों और मजबूत नहीं थी। ऐसे में सभावना थी कि कुछ के बदले कुछ के आधार पर रास्ता निकल आता और सभी को वो मान्य होता।

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