लोकसभा चुनाव 2019: यूपी में बीजेपी से बड़ी परीक्षा सपा-बसपा गठबंधन की है, मुस्लिमों का मन बदला तो नतीजे चौंकाएंगे!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: February 21, 2019 04:43 PM2019-02-21T16:43:27+5:302019-02-21T16:43:27+5:30
सपा-बसपा गठबंधन की कामयाबी केवल मुस्लिम मतदाताओं के रूख पर निर्भर है, इसलिए यदि कांग्रेस 2009 वाला समर्थन जुटा सकी तो यूपी के नतीजे चौंकाने वाले होंगे.
जब यूपी के उपचुनावों में सपा-बसपा गठबंधन ने बीजेपी को मात दी थी तब उत्तर प्रदेश की सियासी तस्वीर कुछ और थी. बीजेपी का जादू उतार पर था और कांग्रेस हारी हुई थी, लिहाजा सपा-बसपा गठबंधन ने बगैर कांग्रेस साथ के बीजेपी को हरा दिया था. लेकिन, इसके बाद दो बड़े बदलाव हुए हैं, एक- कांग्रेस हारी हुई पार्टी नहीं है, उसने एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता बीजेपी के हाथ से ले ली है और इस जीत में हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम मतदाताओं का भी बड़ा योगदान है, क्योंकि उन्हें लगने लगा है कि केन्द्र में केवल कांग्रेस ही बीजेपी को टक्कर दे सकती है, दो- कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अब जीते हुए सियासी यौद्धा हैं जिन्हें प्रियंका गांधी का सशक्त साथ मिला है.
जाहिर है, ये दोनों बदलाव बीजेपी से ज्यादा बड़ा नुकसान सपा-बसपा गठबंधन का करेंगे. सपा-बसपा गठबंधन की कामयाबी केवल मुस्लिम मतदाताओं के रूख पर निर्भर है, इसलिए यदि कांग्रेस 2009 वाला समर्थन जुटा सकी तो यूपी के नतीजे चौंकाने वाले होंगे. जहां 2009 में कांग्रेस को 25 प्रतिशत, सपा को 30 प्रतिशत, बसपा को 18 प्रतिशत और बीजेपी को 6 प्रतिशत मुस्लिम मत मिले थे, वहीं 2014 में कांग्रेस को केवल 11 प्रतिशत, सपा को 58 प्रतिशत, बसपा को 18 प्रतिशत तो बीजेपी को 10 प्रतिशत वोट मिले थे.
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिले मुस्लिम वोट 2009 के सापेक्ष आधे से भी कम हो गए थे, जबकि सपा के वोट बढ़कर दोगुने हो गए थे, अलबत्ता बसपा के वोट स्थिर रहे थे. करीब चार प्रतिशत वोट बीजेपी के भी बढ़े थे.
अब, मुस्लिम मतदाताओं के रूख पर निर्भर है कि वे सपा-बसपा गठबंधन का साथ देते हैं या कांग्रेस की ओर कदम बढ़ाते हैं. समझौते के तहत सपा, बसपा के लिए और बसपा, सपा के लिए निर्धारित सीटें तो खाली छोड़ देंगी, लेकिन कांग्रेस की मौजूदगी बनी रही, तो बड़ा सवाल यह है कि- क्या, सपा-बसपा के मुस्लिम मतदाता आपस में ट्रांसफर हो पाएंगे या फिर कांग्रेस की ओर चले जाएंगे? क्योंकि, लंबे समय से सपा-बसपा एक-दूजे के विरोधी रही हैं, इसलिए सपा-बसपा समझौते के अनुरूप सीटें तो ट्रांसफर कर सकती हैं, किन्तु मतदाताओं को ट्रांसफर करना आसान नहीं है!
सियासी संकेत यही हैं कि समय रहते यदि यूपी में सपा-बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया तो गैर-भाजपाइयों की दिखती हुई कामयाबी हाथ से निकल जाएगी, क्योंकि कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के वोट बैंक का पाॅलिटिकल नेचर एक जैसा है, इसलिए इसमें बिखराव बीजेपी के लिए लाभदायक साबित होगा.
याद रहे, महाराष्ट्र में बीजेपी ने नहीं चाहते हुए भी शिवसेना के साथ गठबंधन केवल इसलिए किया कि दोनों दलों के वोट बैंक का पॉलिटिकल नेचर एकजैसा है, यदि अलग-अलग चुनाव लड़ते तो वोटों के बिखराव के कारण दोनों को नुकसान होता!