लोकसभा चुनावः 2014 से भी बीजेपी की बीजेपी की जीत! क्या विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नहीं, लोगों का गुस्सा जीता था?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: May 26, 2019 03:48 AM2019-05-26T03:48:35+5:302019-05-26T03:48:35+5:30
विधानसभा चुनाव 2018 के वक्त बीजेपी का सबसे बड़ा समर्थक- सामान्य वर्ग बीजेपी के विभिन्न निर्णयों के कारण केन्द्र और प्रदेश, दोनों सरकारों से खासा नाराज था. फिल्म पद्मावती पर केन्द्र सरकार के मौन से लेकर एससी-एसटी एक्ट में संशोधन तक के निर्णयों से जनता नाखुश थी. गैस-पेट्रोल के दाम बढ़ते ही जा रहे थे और नोटबंदी-जीएसटी के कारण अच्छे दिन हवा हो गए थे.
राजस्थान में लोकसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस को हार मिली है और विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस को जिस तरह से जीत मिली थी, क्या वह यह बताती है कि विस चुनाव में कांग्रेस नहीं, लोगों का गुस्सा जीता था?
लोस चुनाव के अंतिम आंकड़े आ गए है, सारी 25 सीटे बीजेपी के नाम रही हैं. इस बार केवल जयपुर, बीकानेर, जोधपुर, जालोर और टोंक-सवाईमाधोपुर, ऐसी पांच सीटें रही हैं, जहां जीत का अंतर पिछली बार से कम रहा है, शेष बीस सीटों पर बीजेपी पिछली बार से भी ज्यादा वोटों से चुनाव जीतने में कामयाब रही है.
जयपुर ग्रामीण में 2014 में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ 332896 वोटों से जीते थे, लेकिन इस बार 393171 वोटों से जीत दर्ज करवाई है, अलबत्ता जयपुर में पिछली बार सर्वाधिक 539345 वोटों से जीत दर्ज करवाने वाले रामचरण बोहरा इस बार 430626 वोटों से जीते हैं. इस बार सर्वाधिक वोटों से जीतने का रिकार्ड भीलवाड़ा के नाम रहा है, जहां पिछली बार सुभाष बहडिया 246264 वोटों से जीते थे वहीं इस बार 612000 वोटों से जीत दर्ज करवाई है. इसी तरह अजमेर में पिछली बार सावरलाल जाट 171983 वोटों से जीते थे, किन्तु इस बार भागीरथ चौधरी ने 416424 वोटों से जीत दर्ज करवाई है. यह वहीं सीट हैं जहां उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को मात दी थी.
प्रतिष्ठित अलवर सीट जहां से पिछली बार उपचुनाव में कांग्रेस जीत गई थी, वहां भी बालकनाथ ने 329971 वोटों से कांग्रेस के बड़े नेता भंवर जितेन्द्र सिंह को हरा दिया है, जबकि पिछले लोस चुनाव में यहां से 283895 वोटों से चांदनाथ ने यह सीट जीती थी.
दक्षिण राजस्थान में बांसवाड़ा सीट पर बीटीपी की प्रभावी मौजूदगी के चलते कांग्रेस को हार मिली है, जहां कनकमल कटारा ने 305464 वोटों से कांग्रेस के ताराचन्द भगोरा को हरा दिया है, पिछली बार बीजेपी यहां से 91916 वोटों से जीती थी.
बाडमेर, जहां जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह चुनाव लड़े थे, वहां कांग्रेस को जोरदार झटका लगा है. वहां कैलाश चौधरी 323808 वोटों से जीत गए हैं, जबकि पिछली बार यहां से कर्नल सोनाराम मात्र 87461 वोटों से जीते थे.
बीकानेर से अर्जुनराम मेघवाल अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे हैं. यहां से पिछली बार वे 308079 वोटों से जीते थे, जबकि इस बार वे 264081 वोटों से जीते हैं.
लावाड़-बारां में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह पिछली बार से भी बड़ी जीत दर्ज करवाने में कामयाब रहे हैं. वे 2014 में 281546 वोटों से जीते थे, जबकि इस बार उन्हें 453928 मतो के अंतर से जीत मिली है.
जोधपुर की प्रतिष्ठा की सीट गजेन्द्र सिंह शेखावत जीत तो गए हैं, लेकिन इस बार जीत का अंतर कम हो गया है. यहां उनके सामने सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत चुनाव लड़े थे. गजेन्द्र सिंह पिछली बार 410051 वोटों से चुनाव जीते थे तो इस बार 274440 वोटों से जीते हैं.
नागौर सीट बीजेपी ने प्रमुख जाट नेता हनुमान बेनीवाल को दे दी थी, जहां से वे 181260 वोटों से जीत गए हैं, जहां से पिछली बार बीजेपी 75218 वोटों से जीती थी. राजसमंद से दीया कुमारी ने जोरदार कामयाबी दर्ज करवाई है. यहां पिछली बार बीजेपी 395705 वोटों से जीती थी, तो इस बार 551916 से जीत हुई है.
विधानसभा चुनाव 2018 के वक्त बीजेपी का सबसे बड़ा समर्थक- सामान्य वर्ग बीजेपी के विभिन्न निर्णयों के कारण केन्द्र और प्रदेश, दोनों सरकारों से खासा नाराज था. फिल्म पद्मावती पर केन्द्र सरकार के मौन से लेकर एससी-एसटी एक्ट में संशोधन तक के निर्णयों से जनता नाखुश थी. गैस-पेट्रोल के दाम बढ़ते ही जा रहे थे और नोटबंदी-जीएसटी के कारण अच्छे दिन हवा हो गए थे. प्रदेश सरकार भी लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही थी. जनता का सबसे पहला गुस्सा उप-चुनाव में निकला जब बीजेपी को बड़ी हार देखनी पड़ी. इसके बाद विधानसभा चुनाव 2018 के दौरान भी बीजेपी के लिए संकेत अच्छे नहीं थे.
जस्थान में विधानसभा चुनाव में हार के बाद केन्द्र की मोदी सरकार ने तेजी से सुधार प्रक्रिया शुरू की. सामान्य वर्ग को मनाने के लिए दस प्रतिशत सवर्ण आरक्षण दिया, तो जीएसटी में भी सुधार किए, गैस-पेट्रोल के रेट धीरे-धीरे नियंत्रण में आने लगे, तो किसानों के लिए नई योजनाएं दी गई. कांग्रेस को बेरोजगारी, किसान समस्याएं जैसे मुद्दे जरूर मिले, किन्तु बीजेपी राष्ट्रवाद को प्रमुख मुद्दा बनाने में कामयाब रही. इस तरह रोजगारवाद से राष्ट्रवाद जीत गया, कांग्रेस हार गई.