Lok Sabha Elections 2024: छोटी पार्टियों के बगैर नहीं लड़ सकते लोकसभा चुनाव, भाजपा ने चिराग, मांझी, कुशवाहा और साहनी पर डाले डोरे, जानें समीकरण

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 25, 2023 07:42 PM2023-02-25T19:42:53+5:302023-02-25T19:44:28+5:30

Lok Sabha Elections 2024: चिराग पासवान मतदाताओं के एक धड़े का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पांरपरिक रूप से उनके पिता और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक राम विलास पासवान के प्रति निष्ठा रखते हैं।

Lok Sabha Elections 2024 bjp rjd jdu Can't fight without small parties BJP put Chirag Paswan, Jitan Ram Manjhi, Upendra Kushwaha Mukesh Sahni, know equation | Lok Sabha Elections 2024: छोटी पार्टियों के बगैर नहीं लड़ सकते लोकसभा चुनाव, भाजपा ने चिराग, मांझी, कुशवाहा और साहनी पर डाले डोरे, जानें समीकरण

दो प्रमुख गठबंधनों की लड़ाई में नतीजों में फेरबदल करने की संभावना रखते हैं।

Highlightsदो प्रमुख गठबंधनों की लड़ाई में नतीजों में फेरबदल करने की संभावना रखते हैं।भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि वह भाजपा के साथ हाथ मिलाने के बजाय मरना पसंद करेंगे।

Lok Sabha Elections 2024: चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश साहनी विशेषज्ञों की राय में उन शीर्ष नेताओं की सूची में संभवत: नहीं हैं जो बिहार के चुनावी समीकरण को बदल देने का सामर्थ्य रखते हो, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही ये नेता चुनावी मैदान में अपना प्रभाव डालने लगे हैं।

 जहां से संसद के निम्न सदन के लिए 40 सदस्य चुनकर आते हैं। चिराग पासवान मतदाताओं के एक धड़े का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पांरपरिक रूप से उनके पिता और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक राम विलास पासवान के प्रति निष्ठा रखते हैं जबकि अन्य तीन नेताओं ने अब तक उस तरह से अपने प्रभाव को साबित नहीं किया है।

मुस्लिमों के अलावा कुछ मजबूत पिछड़ी जातियां

लेकिन इसके बावजूद वे अपने पक्ष में दावे करने के लिए स्वतंत्र हैं क्योंकि वे अपने छोटे जनसमर्थन आधार के कारण दो प्रमुख गठबंधनों की लड़ाई में नतीजों में फेरबदल करने की संभावना रखते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नीत पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राजग से बाहर और विपक्षी खेमे में जाने के साथ बिहार वह राज्य बन गया है जहां पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। राष्ट्रीय जनता दल (राजद)- वाम और कांग्रेस के साथ सामाजिक रूप से कई जातियों का समर्थन है और जिनमें मुस्लिमों के अलावा कुछ मजबूत पिछड़ी जातियां है।

ऐसे में भाजपा इन छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर विपक्षी खेमे में सेंध लगाने को प्रतिबद्ध है क्योंकि इन पार्टियों के मत बहुत अहम साबित हो सकते हैं और अब यह होता भी दिख रहा है। हाल में पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि वह भाजपा के साथ हाथ मिलाने के बजाय मरना पसंद करेंगे।

मांझी फिलहाल तो नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में

लेकिन अब वह वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कोई चुनौती नहीं देखते और जदयू से अलग होने के बाद भाजपा की बिहार इकाई के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने उन्हें बधाई दी। राज्य के कुछ हिस्सों में दलितों के एक धड़े का समर्थन प्राप्त करने वाले मांझी फिलहाल तो नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में हैं, लेकिन वह लगातार विरोधाभासी संकेत दे रहे हैं।

नीतीश कुमार ने बयान दिया था कि वर्ष 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में राजद नेता और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव नेतृत्व करेंगे जिसके बाद मांझी ने दावा किया कि उनके बेटे संतोष कुमार सुमन, जो बिहार सरकार में मंत्री हैं, खुद को किसी भी अन्य दावेदार से बेहतर मुख्यमंत्री साबित करेंगे।

राजनीति में पांरगत मांझी जोर दे रहे हैं कि जो भी नीतीश कुमार फैसला लेंगे वह उनके साथ जाएंगे लेकिन यह भी तथ्य है कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। बिहार की राजनीति में साहनी छोटी पार्टियों की रणनीति के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

भाजपा अपने खेमे में लाने की कोशिश कर रही 

कारोबार से राजनीति में आए साहनी विकाशसील इंसान पार्टी (वीआईपी)का नेतृत्व कर रहे हैं और उनके तीन विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद वह भगवा पार्टी के मुखर आलोचक रहे हैं और अकसर नीतीश कुमार के पक्ष में बोलते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार द्वारा हाल में उन्हें ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराए जाने के बाद कयास लगाए जाने लगे हैं कि भाजपा उन्हें अपने खेमे में लाने की कोशिश कर रही है।

कुशवाहा संख्या बल से मजबूत कोइरी-कुशवाहा पिछड़ी जाति से आते हैं जबकि मांझी और साहनी विभिन्न पिछड़ी उपजातियों के नेता के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं और पूर्व में लगातार रुख बदलते रहे हैं। अपने पिता रामविलास पासवान की समृद्ध विरासत पर दावा करने वाले चिराग पासवान वर्ष 2014 से ही भाजपा के पक्ष में रहे हैं लेकिन इस युवा और महत्वकांक्षी नेता ने अगले लोकसभा चुनाव को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। पासवान नीतीश कुमार के आलोचक रहे हैं लेकिन उनका मुखर रूप राजद और उसके नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ देखने को नहीं मिला है।

वर्ष 2024 के चुनाव में बिहार के साथ-साथ पूरे देश में बड़ा गठबंधन चाहते

राजनीति की बिसात पर चाल और प्रति चाल के बीच ये पार्टियां अपने-अपने नफा नुकसान पर मंथन कर रही हैं। कुशवाहा के करीबी सहयोगी फजल इमाम मल्लिक बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन सरकार के विरोध को तो सामने रखते हैं लेकिन 2024 के चुनाव में पार्टी के रुख के बारे में पूछे जाने पर कहते हैं कि फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

उन्होंने कहा, ‘‘बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जायसवाल की नयी पार्टी बनाने के बाद मुलाकात शिष्टाचार भेंट थी और इसके अन्य मायने नहीं निकाले जाने चाहिए।’’ पहचान गुप्त रखते हुए एक वीआईपी नेता ने भी इसी तरह की राय रखी लेकिन उन्होंने भाजपा के प्रस्ताव की बात को स्वीकार किया।

उन्होंने कहा, ‘‘पहले हम देखेंगे कि हमें कितनी सीटों का प्रस्ताव किया जाता है। वर्ष 2024 के चुनाव के लिए गठबंधन की इस समय बात करना, पहले आग में कूदना और उसके बाद पानी की तलाश करने जैसा होगा।’’ महागठबंधन के नेतृत्व के एक धड़े का मानना है कि उनके गठबंधन में पार्टियों की पहले ही भीड़ है और अन्य पार्टियों के लिए स्थान बनाना मुश्किल है।

हालांकि, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य कहते हैं कि गैर भाजपा पार्टियों में किसी तरह का बिखराव उनकी पार्टी के लिए ठीक नहीं है जिसने वर्ष 2020 के चुनाव में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था। उन्होंने कहा कि वह भाजपा के खिलाफ वर्ष 2024 के चुनाव में बिहार के साथ-साथ पूरे देश में बड़ा गठबंधन चाहते हैं।

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