सवर्ण आरक्षण हो या एससी-एसटी एक्ट में संशोधन, तीन तलाक हो या राम मंदिर निर्माण, ज्यादातर सियासी दल जनहित नहीं, दलहित के नजरिए से फैसले लेते हैं, यही वजह है कि समस्याएं समाप्त होने के बजाय और बढ़ती जा रही हैं। ऐसे तमाम निर्णयों के पीछे राजनीतिक दृष्टिकोण यही रहता है कि अपने वोट बैंक को कैसे मजबूत किया जाए और विरोधियों के वोट बैंक में कैसे दरार डाली जाए?
एक निजी चैनल के जातिगत आधार के सर्वे पर नजर डाली जाए तो यह साफ हो जाएगा कि इन वर्षों में तमाम सियासी दलों के नेताओं ने किसी भी फैसले का, क्यों तो विरोध किया और क्यों समर्थन किया.
इस सर्वे के नतीजों के अनुसार सामान्य वर्ग बीजेपी के सबसे करीब है. बीजेपी को मिलने वाले कुल वोटों में सामान्य वर्ग के वोटों का हिस्सा 40 प्रतिशत तक है, खासकर यूपी में तो शेष दलों को इस वोट बैंक से कुछ खास हांसिल नहीं होने वाला है.
हालांकि, एससी-एसटी को साथ लेने के लिए पीएम मोदी सरकार ने एससी-एसटी एक्ट में संशोधन किया था, लेकिन उल्टे इससे बीजेपी के सामान्य वर्ग वोट बैंक में ही दरार आ गई और तीन राज्यों के विस चुनाव में बीजेपी को हार देखनी पड़ी. अब लोस चुनाव से पहले सामान्य वर्ग को मनाने के लिए बीजेपी सरकार ने सवर्ण आरक्षण का फैसला लेकर इस नाराजगी को दूर करने की कोशिश की है. देखना दिलचस्प होगा कि लोस चुनाव में बीजेपी अपने समर्थक रहे सामान्य वर्ग को फिर से साथ ला पाती है या नहीं.
सर्वे के अनुसार एससी-एसटी वोटों के मामले में बीजेपी की हालत सबसे खराब है. बीजेपी को मिलने वाले कुल वोटों में से 24 प्रतिशत वोट ही इस समुदाय से होंगे, जबकि कांग्रेस की इन वोटों पर अच्छी पकड़ है. कांग्रेस को मिलने वाले कुल वोटों में से एससी-एसटी वोटों का प्रतिशत 36 तक है, यह बात अलग है कि सबसे ज्यादा हिस्सा- 44 प्रतिशत अन्य दलों का है, जिसमें भी बीएसपी सबसे आगे है.
पिछड़े वर्ग के मामले में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों लगभग बराबरी पर हैं. बीजेपी को मिलने वाले कुल वोटों में से पिछड़े वर्ग का वोटों का प्रतिशत 36 है, तो कांग्रेस का थोड़ा ज्यादा- 38 प्रतिशत है, अलबत्ता 44 प्रतिशत तक का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी जैसे अन्य दलों के पास है.
मुस्लिम वोटों के मामले में बीजेपी सबसे कमजोर है तो क्षेत्रीय दल सबसे मजबूत हैं, इसमें कांग्रेस बीच में खड़ी है. यही वजह है कि राम मंदिर निर्माण, तीन तलाक आदि पर दलहित के हिसाब से विभिन्न दलों का आक्रामक या सुरक्षात्मक नजरिया सामने आता रहा है. लोस चुनाव के नतीजे बताएंगे कि जनता ने जनहित के मुद्दों पर विभिन्न दलों की नीतियों और नीयत पर कितना भरोसा किया है?