भाजपा की चुनावी जीत, क्रिकेट देखने में रुचि रखने वाले शाह को माना जाता है राजनीति का माहिर रणनीतिकार
By सतीश कुमार सिंह | Published: May 23, 2019 07:38 PM2019-05-23T19:38:11+5:302019-05-23T19:38:11+5:30
2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने पूरे देश में करीब 500 चुनाव समितियों का गठन किया और करीब 7000 नेताओं को तैनात किया। उन्होंने पार्टी के चुनाव अभियान में ऐसी 120 सीटों पर खास ध्यान दिया जहां भाजपा पहले चुनाव नहीं जीत पायी थी। उन्होंने पार्टी के अभियान को चलाने के लिये 3000 पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को तैनात किया।

54 वर्षीय शाह को राज्य दर राज्य भाजपा की सफलता गाथा लिखने का सूत्रधार माना जाता है।
सफल बिसात बिछाने में माहिर हैं अमित शाह
केन्द्र में भाजपा की जीत के साथ किसी गैर कांग्रेस सरकार को लगातार दूसरी बार केन्द्र की सत्ता में लाने के सूत्रधारों मे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी शामिल हैं।
इस उपलब्धि के साथ उन्होंने दिखा दिया है कि वह बूथ से लेकर चुनाव मैदान तक प्रबंधन और प्रचार की ऐसी सधी हुई बिसात बिछाते हैं कि मंझे से मंझे राजनीतिक खिलाड़ी भी अक्सर मात खा जाते हैं। शतरंज खेलने से लेकर क्रिकेट देखने एवं संगीत में गहरी रुचि रखने वाले अमित शाह को राजनीति का माहिर रणनीतिकार माना जाता है।
यह परिणाम विपक्ष द्वारा किये गये दुष्प्रचार, झूठ, व्यक्तिगत आक्षेप और आधारहीन राजनीति के विरुद्ध भारत का जनादेश है।
— Amit Shah (@AmitShah) May 23, 2019
आज का जनादेश यह भी दिखाता है कि भारत की जनता ने देश से जातिवाद, परिवारवाद और तुष्टिकरण को पूरी तरह से उखाड़ फेंककर विकासवाद और राष्ट्रवाद को चुना है।
भारत को नमन।
यह जीत पूरे भारत की जीत है।
— Amit Shah (@AmitShah) May 23, 2019
देश के युवा, गरीब, किसान की आशाओं की जीत है।
यह भव्य विजय प्रधानमंत्री मोदी जी की पाँच साल के विकास और मजबूत नेतृत्व में जनता के विश्वास की जीत है।
मैं भाजपा के करोड़ों कार्यकर्ताओं की ओर से श्री @narendramodi जी को हार्दिक बधाई देता हूँ। pic.twitter.com/nAO3kBEqZU
अपने अथक परिश्रम से देश के हर बूथ पर भाजपा को मजबूत कर मोदी सरकार बनाने वाले भाजपा के करोड़ों कर्मठ कार्यकर्ताओं को इस ऐतिहासिक विजय की हार्दिक बधाई। pic.twitter.com/epgoj6FIVQ
— Amit Shah (@AmitShah) May 23, 2019
54 वर्षीय शाह को राज्य दर राज्य भाजपा की सफलता गाथा लिखने का सूत्रधार माना जाता है। वर्तमान लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल, ओडिशा और दक्षिण भारत में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के लिए उनकी सफल रणनीति को श्रेय दिया जा रहा है।
अमित शाह ने ‘‘पंचायत से लेकर संसद’’ तक भाजपा को सत्ता में लाने के सपने को साकार करने की दिशा में प्रतिबद्ध पहल की। जुलाई 2014 में भाजपा अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद भाजपा के विस्तार के लिये उन्होंने पूरे देश का दौरा किया और पार्टी कार्यकर्ताओं को जागृत करने का काम किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शाह ने विचारधारा की दृढ़ता, असीमित राजनीतिक कल्पनाशीलता और वास्तविक राजनीतिक लचीलेपन का शानदार मिश्रण करके चुनावी समर में भाजपा की शानदार जीत का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने बिहार और महाराष्ट्र में न केवल राजग के घटक दलों के साथ गठबंधन को लेकर लचीला रुख अपनाया बल्कि स्थानीय स्तर पर प्रतिद्वन्द्वी दलों के वोट बैंक को अपनी पार्टी के पाले में लाने की रणनीति को अंजाम दिया।
इसके अलावा तमिलानाडु और केरल जैसे राज्यों में भी गठबंधन किया। पूर्वोत्तर में गठबंधन के परिणाम स्पष्ट रूप से सामने आए हैं। चुनाव प्रबंधन के खिलाड़ी शाह ने पहली बार 1991 के लोकसभा चुनाव में गांधीनगर में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रबंधन संभाला था। लेकिन, उनके बूथ प्रबंधन का करिश्मा 1995 के उपचुनाव में तब नजर आया, जब साबरमती विधानसभा सीट पर तत्कालीन उप मुख्यमंत्री नरहरि अमीन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अधिवक्ता यतिन ओझा का चुनाव प्रबंधन उन्हें सौंपा गया।
खुद यतिन कहते हैं कि शाह को राजनीति के सिवा और कुछ नहीं दिखता। उनके करीबी बताते हैं कि पारिवारिक और सामाजिक मेल-मिलाप में वह बहुत कम वक्त जाया करते हैं। शाह को कार्यकर्ताओं की अच्छी परख है और वह संगठन व प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी हैं।
शाह ने पहली बार सरखेज से 1997 के विधानसभा उपचुनाव में किस्मत आजमायी और तब से 2012 तक लगातार पांच बार वहां से विधायक चुने गये। सरखेज की जीत ने उन्हें गुजरात में युवा और तेजतर्रार नेता के रूप में स्थापित किया। उस जीत के बाद वह भाजपा में लगातार सीढ़ियां चढ़ते गए।
मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद शाह और अधिक मजबूती से उभरे। 2003 से 2010 तक गुजरात सरकार की कैबिनेट में उन्होंने गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाला। हालांकि उन्हें इस बीच कई सियासी उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा, लेकिन जब नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर लाया गया तो उनके सबसे करीबी माने जाने वाले अमित शाह को भी पूरे देश में भाजपा के प्रचार प्रसार में शामिल किया गया।
उत्तर प्रदेश में उन्होंने लोकसभा चुनाव में पार्टी को 80 में से 71 सीटों पर जीत दिलवा कर अपनी राजनीतिक क्षमता भी साबित की। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की कामयाबी के पीछे शाह की रणनीति को महत्वपूर्ण माना जाता है।
2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने पूरे देश में करीब 500 चुनाव समितियों का गठन किया और करीब 7000 नेताओं को तैनात किया। उन्होंने पार्टी के चुनाव अभियान में ऐसी 120 सीटों पर खास ध्यान दिया जहां भाजपा पहले चुनाव नहीं जीत पायी थी। उन्होंने पार्टी के अभियान को चलाने के लिये 3000 पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को तैनात किया।