लोकसभा चुनावः राजस्थान में कांग्रेस की हार के बाद सियासी चाय के प्याले में तूफान के थमने का इंतजार!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: May 27, 2019 05:34 PM2019-05-27T17:34:42+5:302019-05-27T17:34:42+5:30
राजस्थान में हार के बाद कांग्रेस के अन्दर जो हलचल मची है, कोई उसे गुटबाजी के नजरिए से देख रहा है, तो कोई बदलाव की आहट मान रहा है, जबकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हार के बाद ये सारी रस्मी गतिविधियां हैं, जो गुजरते समय के साथ ठंडी पड़ जाएंगी.
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद राजस्थान के सियासी चाय के प्याले में तूफान आया हुआ है तथा विभिन्न राजनीतिक बयानों, गतिविधियों आदि के अपने-अपने हिसाब से अर्थ-भावार्थ तलाशे जा रहे हैं.
राजस्थान में हार के बाद कांग्रेस के अन्दर जो हलचल मची है, कोई उसे गुटबाजी के नजरिए से देख रहा है, तो कोई बदलाव की आहट मान रहा है, जबकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हार के बाद ये सारी रस्मी गतिविधियां हैं, जो गुजरते समय के साथ ठंडी पड़ जाएंगी.
कई बड़े नेता भी बयान दे रहे हैं. गहलोत सरकार के ही मंत्री रमेश मीणा का कहना है कि हार को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिये, तो सहकारिता मंत्री उदयलाल अंजना ने भी चुनाव प्रचार की कमियों को उजागर किया है.
उधर, अपुष्ट खबर है कि कृषि मंत्री लाल चन्द कटारिया राजस्थान मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे रहे हैं. इसकी वजह यह बताई गई है कि- वर्तमान में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के अन्तर्गत पार्टी को बहुत कम मत प्राप्त हुए है, इसलिये मंत्री पद पर बने रहना नैतिक रूप से उचित नहीं है.
दिल्ली में राहुल गांधी की ओर से पुत्र मोह जैसी टिप्पणी पर सीएम अशोक गहलोत ने भी अपनी बात रखी है, उनका कहना था कि- खबरें छपती रहती है और कौन सी बात किस संदर्भ में उन्होंने कही हैं, वे संदर्भ बदल जाते हैं. जब संदर्भ से हटकर बात होती है तब उसके मायने दूसरे हो जाते हैं, उस पर मैं कोई कमेंट नहीं करना चाहता.
लेकिन, कांग्रेस की हार पर उनका कहना था कि- पहले भी ऐसा समय आ चुका है, जिसमें हम कमजोर रहे, लेकिन बाद में पार्टी उबरी और सत्ता में भी आई. हार से हम लोग कोई घबराने वाले नहीं है, हार सकते हैं पर कांग्रेसजनों के अंदर हिम्मत में कोई कमी नहीं आई है.
राहुल गांधी ने देश में मुद्दा आधारित राजनीति की है. चाहे वोट हमें मिले हो या नहीं मिले हो पर हर व्यक्ति की जुबान पर है कि यह इंसान दिल से बोलता है. उन्होंने कहा कि झूठ कुछ समय के लिए जीत सकता है पर अंतिम जीत सत्य की होती है.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अभी भी कांग्रेस के पास राजस्थान की सत्ता है और हार के बाद आए सियासी चाय के प्याले में तूफान के थमने का इंतजार किया जा रहा है.
कांग्रेस चाहे तो अगले पांच सालों में प्रदेश की जनता को कुछ करके दिखा सकती है. यदि कांग्रेस राजस्थान में ऐसा करने में सफल होती है तो आने वाले पंचायत, स्थानीय निकाय आदि चुनावों में फिर से अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन हांसिल कर सकती है.