लोकसभा चुनाव 2019: जानिए, पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का क्या रहा है इतिहास

By विनीत कुमार | Published: May 7, 2019 03:21 PM2019-05-07T15:21:48+5:302019-05-07T15:24:42+5:30

ममता बनर्जी जब सीएम बनीं तो सीपीएम से उनका 36 का आंकड़ा साफ तौर पर नजर आता था। हालांकि, इस बीच बीजेपी के उभार ने उन्हें सीधे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ला खड़ा किया।

lok sabha election 2019 political violence in west bengal and its history | लोकसभा चुनाव 2019: जानिए, पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का क्या रहा है इतिहास

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा इतनी ज्यादा क्यों (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsपश्चिम बंगाल में राजनीति हिंसा का इतिहास पुराना है, हजारों लोगों की जा चुकी है जानलोकसभा चुनाव-2019 के दौरान अब तक पांच चरणों में हिंसा की कई खबरें आईंपिछले साल पंचायत चुनाव में भी हिंसा, टीएमसी और बीजेपी सहित सीपीआई (एम) कई बार आये आमने-सामने

ममता बनर्जी जब 2011 में सीपीआई (एम) के 34 साल के शासन को खत्म कर सत्ता में आईं तो कई जानकारों ने पश्चिम बंगाल में इसे एक नई प्रकार की राजनीति की शुरुआत बताया। हालांकि, बहुत जल्द ये भ्रम टूट गया और ये साफ हो गया कि बंगाल में राजनीतिक हिंसा और खासकर चुनाव के दौरान हिंसा का दौरा खत्म खत्म नहीं हुआ है। राजनीतिक हिंसा हमेशा से पश्चिम बंगाल का हिस्सा रहा है और लोकसभा चुनाव-2019 भी इससे अलग जाता नहीं दिख रहा है। 

लोकसभा चुनाव-2019 के पांच चरणों के चुनाव हो चुके हैं और हर चरण में यहां हिंसा देखने को मिली है। पश्चिम बंगाल में इस बार सभी पांच चरणों की वोटिंग के दौरान कहीं न कहीं किसी बहाने हिंसा देखने को मिली। पांचवें चरण में 6 मई को हुए सात सीटों पर मतदान हुए और यहां भी बैरकपुर सहित हावड़ा में हिंसा की खबरें आईं। बैरकपुर से बीजेपी उम्मीदवार अर्जुन सिंह ने टीएमसी कार्यकर्ताओं पर माकपीट के आरोप लगाये जबकि हावड़ा में टीएमसी और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प की खबरें आईं।

लोकसभा चुनाव 2019 में बंगाल में हिंसा

पश्चिम बंगाल में पांच चरणों के मतदान में लगातार हिंसा देखने को मिली है। पहला चरण में यहां 83.80% मतदान हुआ और इस दौरान अलीपुरदुआर और कूच बिहार में टीएमसी और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा की खबर आई। टीएमसी समर्थकों ने लेफ्ट फ्रंट प्रत्याशी गोविंदा राय पर हमला किया और उनकी गाड़ी तोड़ी।

ऐसे ही दूसरा चरण में भी रायगंज के इस्लामपुर में सीपीआई-एम सांसद मोहम्मद सलीम की कार पर कथित तौर पर टीएमसी समर्थकों के पत्थरों और डंडों से हमले की बात सामने आई। तीसरा चरण में भी हिंसा की कई शिकायतें मिली और बमबाजी तक की खबरें आईं। ऐसे ही चौथा चरण में आसनसोल में टीएमसी कार्यकर्ताओं और सुरक्षाबलों में जमकर झड़प हुई। यही नहीं, बीजेपी सांसद बाबुल सुप्रियो की कार का शीशे भी तोड़े गये।

लोकसभा चुनाव- 2014 के दौरान हिंसा

पश्चिम बंगाल में 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी खूब हिंसा देखने को मिली थी। आधिकारिक आकड़ों की ही बात करें तो उस चुनाव में 14 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और 1100 से ज्यादा राजनीति हिंसा की घटनाएं राज्य में चुनाव के दौरान दर्ज की गई थीं। शायद यही कारण रहा कि चुनाव आयोग ने 2016 में राज्य में विधानसभा चुनाव को 6 चरण में कराने का फैसला किया था। चुनावी हिंसा का ये रूप पिछले साल पंचायत चुनाव के दौरान भी देखने को मिला था।

1960 से 2007 तक हर दौर में हिंसा

साल 1960-70 के दशक के नक्सल आंदोलन से शुरू हुई हिंसा की ये कहानी अब भी जारी है। एक सरकारी आंकड़े के अनुसार 1977 से 2007 तक ही 28 हजार राजनीतिक हत्याएं राज्य में हुईं। इस दौर के बाद सिंगूर और नंदीग्राम के आंदोलन ने हिंसा का नया चेहरा बंगाल में पेश किया।

ममता बनर्जी, बीजेपी और सीपीएम

ममता बनर्जी जब सीएम बनीं तो सीपीएम से उनका 36 का आंकड़ा साफ तौर पर नजर आता था। हालांकि, इस बीच बीजेपी के उभार ने उन्हें सीधे मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ला खड़ा किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मोदी लहर में भी केवल 2 सीट मिल सकी थी। हालांकि, पिछले 5 साल में तस्वीर बदली है। 

बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे से लेकर एनआरसी तक बीजेपी ने हर मुद्दे को खूब भुनाया। बीजेपी और टीएमसी के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्वीता का ही असर है चुनावी रैलियों में पीएम मोदी और अमित शाह जहां ममता बनर्जी पर हमलावर रहते हैं तो वहीं 'दीदी' भी हर हमले का जवाब देने से नहीं चूकतीं। बहलहाल, राजनीतिक बयानबाजी जिस हद तक जाए और लोकसभा चुनाव-2019 के नतीजे जो भी आये, ये तय है कि पश्चिम बंगाल में हिंसा का दौर थमने नहीं जा रहा है।

Web Title: lok sabha election 2019 political violence in west bengal and its history