लोकसभा चुनावः दिल्ली में 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता, भाजपा-आप-कांग्रेस ने नहीं दिया एक भी मुसलमान को टिकट
By सतीश कुमार सिंह | Published: April 23, 2019 08:34 PM2019-04-23T20:34:13+5:302019-04-23T20:34:13+5:30
मुस्तफाबाद, ओखला, मटिया महल, बल्लीमारान जैसे विधानसभा क्षेत्रों में तो इनकी आबादी 50 फीसद से भी ज्यादा है। कई अन्य क्षेत्र में भी ये निर्णायक स्थिति में हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली व चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में मुस्लिमों का समर्थन किसी भी प्रत्याशी को संसद पहुंचाने की राह को सुगम बना सकता है।
लोकसभा चुनाव 2019 में हर दल में वोट की राजनीति तेज है। लोकसभा चुनाव की शुरुआत होते ही हर पार्टी ने हिंदू-मुसलमान पर फोकस कर दिया है।
प्रमुख राजनीतिक पार्टियां दिल्ली में मुस्लिमों के समर्थन से संसद तक का सफर आसान तो बनाना चाहती हैं, लेकिन उन्हें वह टिकट देने में हिचकिचाती रही हैं। चुनावी इतिहास इसका प्रमाण है।
दिल्ली में 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। भाजपा, कांग्रेस और नई पार्टी आप ने किसी भी सीट पर मुस्लिम समाज से किसी को टिकट ही नहीं दिया। 1952 से लेकर 2014 तक के अधिकतर लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दलों के लिए मुस्लिम वोट बैंक ही बने रहे।
तीन लोकसभा क्षेत्र में हैं निर्णायक स्थिति में
राजधानी में मुस्लिमों की अच्छी तादाद है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां लगभग 13 फीसद मुस्लिम थे, जिनकी संख्या अब और बढ़ गई है। मुस्तफाबाद, ओखला, मटिया महल, बल्लीमारान जैसे विधानसभा क्षेत्रों में तो इनकी आबादी 50 फीसद से भी ज्यादा है। कई अन्य क्षेत्र में भी ये निर्णायक स्थिति में हैं।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली व चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में मुस्लिमों का समर्थन किसी भी प्रत्याशी को संसद पहुंचाने की राह को सुगम बना सकता है। इस बात को सभी राजनीतिक पार्टियां बखूबी समझती हैं और उन्हें अपने साथ जोड़ने की पूरी कोशिश करती हैं।
दिल्ली से सिकंदर बख्त एकमात्र नेता जो सांसद बने
आजादी के बाद से पिछले 2014 के लोकसभा चुनाव तक 62 साल में दिल्ली से 107 सांसद चुने गए। इसमें 13.86 प्रतिशत आबादी और करीब 13 प्रतिशत मतदाता वाले मुस्लिम समाज से सिर्फ एक बार 1977 में सिकंदर बख्त सांसद बने। बख्त ने चांदनी चौक सीट से भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव जीता था।
बख्त इसके बाद 1980 में जनसंघ और 1984 में भाजपा के टिकट पर मैदान में उतरे, पर दोनों ही बार उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। यही कारण है कि दिल्ली से अब तक एक ही मुस्लिम नेता सिकंदर बख्त लोकसभा का सफर तय कर सके।
निर्दलीय चुनाव लड़ते रहे हैं मुस्लिम नेता
शुरू से ही मुस्लिम प्रत्याशी निर्दलीय या फिर छोटी पार्टियों के टिकट पर चुनावी समर में उतरते रहे हैं, लेकिन वह कोई प्रभाव नहीं छोड़ सके। 1984 तक तो इनकी संख्या कम रही, लेकिन 1989 में मुस्लिम प्रत्याशियों की संख्या 15 तक पहुंच गई।
सबसे ज्यादा 1996 में 32 मुस्लिम नेताओं ने दिल्ली के मैदान में किस्मत आजमाई थी। उनमें से किसी की जमानत भी नहीं बची थी। बहुजन समाज पार्टी यमुनापार की सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारती रही है, लेकिन वे भी पांच फीसद के आसपास ही मत हासिल करने में सफल रहे थे।
विधानसभा: 6 चुनाव में 27 मुस्लिम विधायक बने
दिल्ली विधानसभा के 1993 से अब 2015 तक 6 चुनाव हुए। इसमें 420 विधायक चुने गए, जिसमें मुस्लिम विधायकों की संख्या 26 रही है। हालांकि इसमें हारून युसुफ को 5, हसन अहमद को 2, मतीन अहमद को 5, परवेज हाशमी को 4, शोएब इकबाल को 5 और आसिफ मोहम्मद खान को 2 बार चुनकर जाने का मौका मिला। अमानतुल्ला खान, इमरान हुसैन, आसिम अहमद खान और मोहम्मद इशराक एक-एक बार विधायक बने हैं।