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लॉकडाउन का सितम, मां से मिलने को बेताब 8 साल की नन्हीं नंदिनी, रूंआसी होकर बयां की दर्द

By भाषा | Updated: May 17, 2020 14:23 IST

आठ साल की नन्हीं सी नंदिनी छु्ट्टियों में अपनी मां के पास नगालैंड जाने को लेकर बेहद उत्साहित थी लेकिन कोरोना लॉकडाउन की वजह से दिल्ली में ही फंस गई और अब विशेष ट्रेन में टिकट उपलब्ध नहीं होने से घर जाने का लंबा इंतजार उसे रूंआसा कर देता है ।

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ठळक मुद्देहिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के दैहण में ‘भारतीय जनसेवा संस्थान’ के ‘मातृछाया’ छात्रावास में रहकर पढ़ रहीं पूर्वोत्तर की 26 लड़कियों ने बयां किया घर न जाने का दर्दइन सभी को 22 मार्च को दिल्ली से गुवाहाटी और फिर अपने अपने घर जाना था । जनता कर्फ्यू और फिर लॉकडाउन के कारण वे जा ही नहीं सकीं ।

नई दिल्ली। आठ साल की नन्हीं सी नंदिनी छु्ट्टियों में अपनी मां के पास नगालैंड जाने को लेकर बेहद उत्साहित थी लेकिन कोरोना लॉकडाउन की वजह से दिल्ली में ही फंस गई और अब विशेष ट्रेन में टिकट उपलब्ध नहीं होने से घर जाने का लंबा इंतजार उसे रूंआसा कर देता है। वह हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के दैहण में ‘भारतीय जनसेवा संस्थान’ के ‘मातृछाया’ छात्रावास में रहकर पढ़ रहीं पूर्वोत्तर की उन 26 लड़कियों में से है जिन्हें 22 मार्च को दिल्ली से गुवाहाटी और फिर अपने अपने घर जाना था । जनता कर्फ्यू और फिर लॉकडाउन के कारण वे जा ही नहीं सकीं । इनमें असम की चार, मेघालय की छह और नगालैंड की 16 गरीब परिवारों की लड़कियां हैं जिनकी उम्र आठ से 15 वर्ष है । नगालैंड के दीमापुर में रहने वाली नंदिनी की मां खेती करती है और पिता अब नहीं रहे ।

उसने कहा ,‘‘ मेरी मां मेरा रास्ता देख रही है । दिन भर तो समय कट जाता है लेकिन रात को मां की याद आती है । बहुत दिन हो गए मां से मिले । फोन पर बात होती है लेकिन बहुत थोड़ी देर ।’’ नेहरू नगर स्थित ‘सनातन वेद गुरूकुलम’ में रूकी ये छात्रायें दैहण में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला पहली से 12वीं तक की कक्षाओं में पढ़ती हैं । इनकी वार्डन शीतल कायत ने बताया ,‘‘ सभी को 22 मार्च को दिल्ली से ट्रेन से अपने अपने राज्यों के लिये रवाना होना था । इसकी पहले से बुकिंग करवाई गई थी। लॉकडाउन और रेल बंद होने से हम यहीं फंस गए । दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर बच्चों के परिजन काफी परेशान भी हैं ।’’ बस यात्रा का हाथ खर्च लेकर निकली इन छात्राओं के पास टिकटों के लिये भी पैसे नहीं बचे थे तो इन्होंने हिमाचल प्रदेश महिला हेल्पलाइन के जरिये पालमपुर प्रशासन से आर्थिक मदद ली । कायत ने बताया ,‘‘ चूंकि ट्रेन की टिकट रद्द हो गई और रिफंड का पैसा इतनी जल्दी नहीं मिलता है तो आगे टिकट कराने के भी पैसे नहीं थे । हमने पालमपुर स्थानीय प्रशासन से हेल्पलाइन नंबर के जरिये मदद मांगी थी और उन्होंने हमारे खाते में 30,000 रूपये जमा कर दिये ।’’ गुरूकुल के प्रभारी समीर उपाध्याय ने बताया कि यहां आने के बाद डॉक्टर को बुलाकर सभी का चेकअप कराया गया और स्थानीय पुलिस को भी सूचना दी गई।

उन्होंने कहा ,‘‘ जिस दिन से विशेष ट्रेन चली है, हम रोज टिकट के लिये कोशिश कर रहे हैं लेकिन गुवाहाटी के लिये सप्ताह में एक ही ट्रेन है और 20 मई तक कोई टिकट नहीं है । टिकट खुलते ही पूरे बुक हो जाते हैं और हमें तो इतने सारे टिकट एक साथ चाहिये । इंतजार के अलावा कोई विकल्प नहीं है ।’’ स्कूली शिक्षा के साथ भारतीय संस्कृति और वेदों की भी शिक्षा ले रही ये छात्रायें टीवी और मोबाइल फोन प्रयोग नहीं करतीं । यहां लॉकडाउन में सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए आपस में खेलकूद, गीत भजन और चित्रकारी करके समय व्यतीत कर रही हैं । यही नहीं तीन तीन के समूह में नाश्ता और दोनों समय का खाना भी खुद बनाती हैं । गुवाहाटी की दीपा आठवीं कक्षा में पढती है और कबड्डी, खो खो की अच्छी खिलाड़ी भी है। उसने कहा ,‘‘ मेरी मम्मी को बहुत टेंशन है कि हम कब घर लौटेंगे । दिल्ली के बारे में सुनकर वह और चिंतित हो जाती हैं । मैंने उन्हें तसल्ली दी है कि हम कहीं बाहर नहीं निकलते लेकिन मां है ना , चिंता तो होगी ही ।’’ इनमें से कुछ बड़ी है अदिति जो 11वीं में पढ़ती है और आठ साल से छात्रावास में है।

नगालैंड में पेरेन जिले के एक छोटे से गांव हेरांग्ल्वा की रहने वाली अदिति के पिता कारपेंटर हैं और मां गृहिणी जो आर्थिक रूप से इतने संपन्न नहीं है कि खुद अपनी बेटी से मिलने हिमाचल जा सकें । शिक्षिका बनने की इच्छा रखने वाली अदिति कोरोना महामारी के खतरे और लॉकडाउन की जरूरत को समझती है । उसने कहा ,‘‘हम एक दूसरे को दिलासा देते रहते हैं कि ये दिन जल्दी ही बीत जायेंगे । यहां एक बड़े हॉल में रहने के बावजूद सामाजिक दूरी का पूरा पालन करते हैं । मास्क और सैनिटाइजर्स का इस्तेमाल भी कर रहे हैं और चाय, कॉफी की जगह काढ़ा पीते हैं ।’’

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