पूर्व CJI रंजन गोगोई से पहले सुप्रीम कोर्ट के कौन-कौन से जज जा चुके हैं राज्य सभा? इंदिरा गांधी सरकार से शुरू हुआ था चलन
By विनीत कुमार | Published: March 17, 2020 12:05 PM2020-03-17T12:05:13+5:302020-03-17T12:05:54+5:30
रंजन गोगोई से पहले चीफ जस्टिस रहे रंगनाथ मिश्रा कांग्रेस के टिकट पर राज्य सभा जा चुके हैं। ये जरूर है कि ये पहली बार होगा जब किसी पूर्व चीफ जस्टिस को रिटायरमेंट के बाद सीधे राज्य सभा भेजा जा रहा है।
पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नाम को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से राज्य सभा के लिए मनोनीत किये जाने के बाद से नई बहस छिड़ गई है। गोगोई पिछले साल 17 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पद से सेवानिवृत्त हुए थे। सेवानिवृत्त होने से कुछ दिनों पहले इन्हीं की अध्यक्षता में बनी पीठ ने अयोध्या मामले में फैसला सुनाया था।
साथ ही रंजन गोगोई राफेल विवाद सहित कई अहम मामलों में सुनवाई कर चुके हैं। इसलिए रंजन गोगोई को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा राज्य सभा भेजने की तैयारी की खबर जब सोमवार को आई तो सियासी घमासान भी छिड़ गया। कांग्रेस ने इसे लेकर कटाक्ष किया और कहा कि तस्वीरें सबकुछ बयां करती हैं।
वैसे, ये पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट के किसी पूर्व चीफ जस्टिस को राज्य सभा भेजा जा रहा है। हालांकि, ये जरूर है कि रंजन गोगोई देश के पहले ऐसे पूर्व चीफ जस्टिस होने जा रहे हैं जिन्हें रिटायरमेंट के बाद सीधे राज्य सभा भेजा जाएगा। इससे पहले ऐसा कभी भी नहीं हुआ।
रंजन गोगोई से पहले CJI रहे रंगनाथ मिश्रा भी जा चुके हैं राज्य सभा
रंजन गोगोई से पहले चीफ जस्टिस रहे रंगनाथ मिश्रा कांग्रेस के टिकट पर राज्य सभा जा चुके हैं। जस्टिस रंगनाथ मिश्रा 1991 में रिटायर हुए थे और करीब 7 साल बाद कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये थे। वे 1998 में राज्य सभा पहुंचे और वहां 2004 तक रहे। दिलचस्प ये है कि उस समय कांग्रेस पार्टी सत्ता में नहीं थी। राष्ट्रपति ने उन्हें नामित नहीं किया था।
दरअसल, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख दंगों की जांच के लिए जस्टिस रंगनाथ मिश्रा कमिशन ऑफ इंक्वॉयरी बनाई गई। इस कमिटी की रिपोर्ट पर तब काफी सवाल उठे थे। रिपोर्ट में किसी कांग्रेसी नेता तो दंगों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था। रंगनाथ मिश्रा उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज हुआ करते थे। बहरहाल, चीफ जस्टिस के पद से रिटायर होने के बाद जस्टिस रंगनाथ को NHRC का चेयरमैन भी बनाया गया। उस समय केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी।
इंदिरा गांधी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के जज को भेजा था राज्य सभा
देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को राज्य सभा के लिए नामित साल 1983 में किया गया था। ये जस्टिस बहारूल इस्लाम थे। वे सुप्रीम कोर्ट में जज के पद से जनवरी-1983 में रिटायर हुए। इसके कुछ ही दिनों बाद जून-1983 में इंदिरा गांधी की सरकार ने उन्हें राज्य सभा के लिए नामित किया। जज बनने से पहले भी 1962 से 1972 तक बहारूल इस्लाम राज्य सभा के सांसद रह चुके थे।
इसके अलावा जस्टिस एम. हिदायतुल्लाह भी 1970 में चीफ जस्टिस के पद से रिटायर होने के बाद सभी पार्टियों की सहमति से 1979 में भारत के उप-राष्ट्रपति बनाए गये। इस तरह वे इस दौरान राज्य सभा के चेयरमैन भी रहे।
इससे पहले 1958 में रिटायर हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एमसी चागला को जवाहर लाल नेहरू की सरकार ने अमेरिका में भारत का राजदूत बनाया और फिर युनाइटेड किंगडम के भी वे उच्चायुक्त बनाए गये। बाद में वे सरकार में मंत्री भी बने। पहले वे शिक्षा मंत्री और फिर विदेश मंत्री बनाये गये।
मोदी सरकार के 2014 के इस फैसले से भी हुआ था विवाद
नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 में भी एक ऐसा फैसला लिया था, जिस पर खूब विवाद मचा था। मोदी सरकार ने तब पूर्व CJI पी. सदाशिवम को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया था।
पूर्व CJI पी. सदाशिवम साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे। पी. सदाशिवम इससे पूर्व में उस बेंच के हिस्सा थे जिसने तुलसीराम प्रजापति के हिरासत में रहते हुए मौत के मामले में उस समय गुजरात के गृह मंत्री रहे अमित शाह को बड़ी राहत दी थी। पी. सदाशिवम पहले ऐसे पूर्व CJI हैं जिन्हें किसी राज्य का राज्यपाल बनाया गया।