नई दिल्लीः तीनों कृषि क़ानूनों को लेकर आंदोलनकारी किसानों ने सरकार को दो टूक कहा कि जब तक सरकार तीनों काले कानून वापस नहीं लेती और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को कानून में तब्दील नहीं करती तब तक सरकार के साथ कोई समझता नहीं होगा।
बैठक के बाद लोकमत से बातचीत करते हुए किसान नेता, राकेश टिकैत ने साफ़ किया कि सरकार अपने अड़ियल रुख पर कायम है, में उन्ही बातों को दोहरा रही है जिसमें क़ानूनों में संशोधन करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य का आश्वासन देने की बात कही गयी है। लेकिन किसानों को यह मंज़ूर नहीं है।
आज घंटों चली बैठक में, जब कोई नतीजा नहीं निकला तब, आंदोलनकारी किसानों ने साफ़ कर दिया , "जब तक कानून वापस नहीं , तब तक कोई समझौता नहीं " . एक दूसरे किसान नेता, रविंद्र चीमा ने जो स्वयं बैठक में मौजूद नहीं थे लेकिन वे लगातार बैठक में मौजूद किसानों के संपर्क में थे, उनका मानना था कि सरकार यदि अपनी हठधर्मी छोड़ कर सही फैसला करे तो समस्या का हल निकल सकता है।
सरकार अपने अड़ियल रुख पर कायम है और बार बार उन्ही बातों को दोहरा रही है जो उसने पहले दौर की बातचीत में किसानों के सामने रखी थी। इसे हार जीत का मुद्दा बनाने की जिद्द प्रधानमंत्री छोड़े तभी कोई नतीजा निकल सकता है।
आंदोलनकारी किसान दो मुद्दों को लेकर बिलकुल साफ़ हैं कि जब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य का क़ानून नहीं बनता और तीनों क़ानून वापस नहीं होते तब तक न तो आंदोलन समाप्त होगा और ना ही किसान अपने घर लौटेंगे।
मूसलाधार बारिश, घने कोहरे के बीच सर्द हवाओं को झेलते किसान सीमाओं पर अभी भी डटे बैठे हैं। उनके टेंट भीग चुके हैं लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं। 13 जनवरी को किसानों ने कृषि क़ानूनों की प्रतियों को जलाने का फैसला किया है साथ ही 6 जनवरी को ट्रेक्टर मार्च और 26 जनवरी को सीमाओं से दिल्ली में घुस कर ट्रैक्टरों पर सवार हो कर रैली की शक्ल में गणतंत्र दिवस मनाने की योजना है। किसानों से हुई बातचीत में यह साफ़ नज़र आ रहा था कि वे अब आंदोलन को तेज़ करेंगे।
अभिनेता धर्मेंद्र के अंदर का किसान जागा
फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र ने भी ट्वीट कर किसानों के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलंद की। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा " आज मेरे किसान भाइयों को इन्साफ मिल जाए , जी जान से अरदास करता हूँ हर एक रूह को सकूं मिल जाएगा।
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने भी किसानों के समर्थन में ट्वीट किया और लिखा "सर्दी की भीषण बारिश में टेंट की टपकती छत के नीचे जो बैठे हैं सिकुड़ ठिठुर कर , वह निडर किसान अपने ही हैं गैर नहीं , सरकार की क्रूरता के दृश्यों में अब कुछ और देखने को शेष नहीं - किसान नहीं तो देश नहीं "