सेवानिवृत्ति के बाद रिकार्ड में दर्ज जन्म तिथि में बदलाव नहीं कर सकता, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दिया अहम फैसला
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 12, 2024 08:59 PM2024-08-12T20:59:52+5:302024-08-12T21:00:54+5:30
जन्म तिथि 30 मार्च 1952 बताई थी, लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं दिया था। लेकिन नियोक्ता ने उसके भविष्य निधि विवरण और स्कूल प्रमाण पत्र के आधार पर उसकी जन्म तिथि 10 मार्च 1948 दर्ज की।
बेंगलुरुः कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि कोई भी कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद अपनी रिकार्ड में दर्ज जन्म तिथि में बदलाव नहीं कर सकता। यह मामला एक ऐसे व्यक्ति से संबंधित था जो 1983 में नौकरी में आने से 2006 में सेवानिवृत्त होने तक एक ‘पल्प ड्राइंग प्रोसेसर’ विनिर्माण इकाई में काम करता था। जब उसे नौकरी पर रखा गया तो उसने मौखिक रूप से अपनी जन्म तिथि 30 मार्च 1952 बताई थी, लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं दिया था। लेकिन नियोक्ता ने उसके भविष्य निधि विवरण और स्कूल प्रमाण पत्र के आधार पर उसकी जन्म तिथि 10 मार्च 1948 दर्ज की।
इसका मतलब यह हुआ कि वह 2006 में 58 साल की उम्र में सेवानिवृत्त हुआ। रिटायरमेंट के बाद, उस व्यक्ति ने 30 मार्च, 1952 को अपनी जन्मतिथि दर्शाने वाला जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त किया। फिर उसने 2010 तक लाभ प्राप्त करने के लिए या पुन: बहाल किए जाने के लिए कहा और तर्क दिया कि उसे चार साल बाद रिटायर होना चाहिए था।
नियोक्ता ने उसके अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि दर्ज की गई तारीख सही है और उसने बिना कोई मुद्दा उठाए पहले ही अपने सेवानिवृत्ति लाभ स्वीकार कर लिए हैं। व्यक्ति ने पहले अपना मामला श्रम न्यायालय में उठाया, जिसने उसे खारिज कर दिया। फिर उसने उच्च न्यायालय में अपील की।
मामले की सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति एम.जी.एस. कमल ने कहा कि व्यक्ति ने सेवानिवृत्त होने के दो साल बाद अपनी जन्मतिथि पर सवाल उठाया, जिससे उसके दावे पर संदेह पैदा होता है। अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का भी हवाला दिया, जो सेवानिवृत्ति के बाद जन्मतिथि में परिवर्तन करने पर रोक लगाता है, विशेषकर यदि कर्मचारी के पास पहले इसे सुधारने का मौका था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। अदालत ने पाया कि भविष्य निधि में दर्ज जन्मतिथि, जो व्यक्ति के स्कूल रिकॉर्ड से मेल खाती थी, अंतिम थी।
उस व्यक्ति ने क्योंकि उस समय अपनी सेवानिवृत्ति पर कोई सवाल नहीं किया था तथा अपने लाभों को स्वीकार किया था, इसलिए अदालत ने फैसला सुनाया कि उसका दावा अनुचित लाभ प्राप्त करने का एक प्रयास था। अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि कोई भी कर्मचारी काफी समय बीत जाने के बाद, विशेषकर सेवानिवृत्ति के बाद, जन्मतिथि बदलने की मांग नहीं कर सकता।