Coronavirus lockdown: दरभंगा की बेटी ज्योति कुमारी का अपनी शोहरत पर क्या कहना है...

By अजीत कुमार सिंह | Published: May 25, 2020 03:41 PM2020-05-25T15:41:51+5:302020-05-25T15:41:51+5:30

दो पहियों पर सवार होकर उन्होंने जान की बाज़ी लगाई तब जाकर कही जान बची. ज्योति और मोहन पासवान जान बचाकर गुरुग्राम से दरभंगा आ तो गये लेकिन लॉकडाउन के बाद वो क्या क्या करेंगे, वापस जाएंगे या यहीं रहेंगे. इस सवाल पर मोहन पासवान कहते हैं कि अगर बिहार सरकार हमें यहीं रोज़गार दे दे तो हम कभी नहीं जाएंगे.

Jyoti Kumari who cycled 1,200 km carrying her ailing father from Gurugram to Darbhanga, overwhelmed by support. | Coronavirus lockdown: दरभंगा की बेटी ज्योति कुमारी का अपनी शोहरत पर क्या कहना है...

ज्योति से तेजस्वी यादव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात भी की थी. (file photo)

Highlightsज्योति के पिता तोहफों की लिस्ट गिनाते हैं. इस बीच वो डोनेशन जैसे शब्दों से भी परिचित हो गये हैं. तेजस्वी यादव से 50 हज़ार का डोनेशन मिला है. एक अखबार से भी 51 हज़ार का डोनेशन मिला है.

नई दिल्लीः दरभंगा की ज्योति कुमारी, वो लड़की जिसने अपने घायल पिता मोहन पासवान को गुरुग्राम से अपनी गुलाबी रंग की पुरानी साइकिल पर बिठाकर हफ्ते भर में घर पहुंचा दिया.

ये कोई गर्व करने वाली बात तो नहीं है। फिलहाल ज्योति का ये परिचय थोड़ा पुराना पड़ चुका है. ज्योति कुमारी जब तपती गर्मी में हाड़ तोड़ती दरभंगा पहुंची तो उससे पहले ही उसकी शोहरत सोशल मीडिया पर सवारी करते हुए उसके इलाके तक पहुंच चुकी थी.

ज्योति के घर पहुंचते ही साइकिलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में नेशनल साइकिलिंग एकेडमी के ट्रायल के लिए बुलावा भेजा. तब उसने कहा था कि शरीर में टूट रहा है आउंगी लेकिन बाद में. ज्योति जब से हरियाणा से लौटी है अपने इलाके में स्टार है. जब ज्योति दरंभगा पहुंची तो मिले ऑफर पर खुश तो थी लेकिन शरीर जवाब दे गया था. 15 साल की लड़की के लिए 1200 किलोमीटर का सफर अमानवीय था लेकिन भूख ने वो साहस पैदा कर दिया कि खाली पेट भी वो पैडल चलाती रही. 

ज्योति को तब ना श्रमिक स्पेशल ट्रेन मिली ना सरकारी बस ना कोई पार लगाने वाला. लेकिन अब दरभंगा में हर दूसरा आदमी ज्योति की चमक में अपना चेहरा चमकाना चाहता है. ज्योति ने वो सफर भले ही गुलाबी रंग की पुरानी साइकिल से किया हो लेकिन अब नेता, अधिकारी, विधायक उसे नई साइकिल भेंट करने पहुंच रहे हैं वो भी अपना नाम पता छपवाकर.

ऐसा ही एक तोहफा ज्योति को मिला है, तोहफे पर दरभंगा विधायक का नाम छपा है उस पर लिखा है सप्रेम भेट, संजय सरावगी, विधायक दरभंगा. परिवार की शोहरत फैल गयी है तो अब तस्वीरें खिंचवाने के दौर चल रहे हैं. कैमरों की फ्लैश में बीच ज्योति के पिता मोहन पासवान के घुटने पर लगा चीरे का निशान उनकी मजबूरी चीख चीख कर सुनाने लगता है लेकिन परिवार भी इस शोहरत का लुत्फ उठा रहा है.

अब ज्योति के शरीर की थकान मिट चुकी है, लोग उससे अब पहले की तरह नहीं मिलते वो उसे सितारे की तरह देखते हैं. ज्योति अब लोगों से घिरी रहती है. कहती है ये सब देख कर अच्छा लगता है.वो कहती है कि हम ऐसा काम ही किए हैं कि हमसे सब मिलने आ रहे हैं. गांव के लोग जब ज्योति को अपने बच्चों से मिलाते हैं तो उसकी मिसाल देते हैं. वो अपने बच्चों से कहते हैं कि ऐसा ही बनो. बेटी मशहूर हुई तो मीडिया की नज़रें पिता पर भी पड़ी, अब उनकी भी पूछ होने लगी है. कहते हैं कि बहुत गर्व महसूस होता है. मेरी बच्ची मुझे यहां तक लेकर आई, जान भी बचा कर लायी. अगर ज्योति मुझे यहां तक नहीं लाती तो मैं शायद गुरुग्राम में मर जाता. ज्योति के पिता कहते हैं कि उनके पास पैसे तो खत्म हो चुके थे लेकिन लॉकडाउन बढ़ता ही जा रहा था. मकान मालिक किराये के लिए दबाव बना रहा था कि खाली करो खाली. 

दो पहियों पर सवार होकर उन्होंने जान की बाज़ी लगाई तब जाकर कही जान बची. ज्योति और मोहन पासवान जान बचाकर गुरुग्राम से दरभंगा आ तो गये लेकिन लॉकडाउन के बाद वो क्या क्या करेंगे, वापस जाएंगे या यहीं रहेंगे. इस सवाल पर मोहन पासवान कहते हैं कि अगर बिहार सरकार हमें यहीं रोज़गार दे दे तो हम कभी नहीं जाएंगे. यहीं कमा कर खा सकते हैं. ज्योति के पिता तोहफों की लिस्ट गिनाते हैं. इस बीच वो डोनेशन जैसे शब्दों से भी परिचित हो गये हैं. कहते हैं कि बीजेपी से साइकिल मिली है, तेजस्वी यादव से 50 हज़ार का डोनेशन मिला है. एक अखबार से भी 51 हज़ार का डोनेशन मिला है. ज्योति से तेजस्वी यादव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात भी की थी. 

ज्योति फिलहाल बीजेपी विधायक से तोहफे में मिली साइकिल की सवारी कर फोटो सेशन में व्यस्त है. उसे देश भर की सोशल मीडिया ने श्रवण कुमार कहा, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनकी बेटी इवांका ने बधाई दी उसके साहस को सलाम किया. ज्योति करे भी तो क्या जब उसे मदद चाहिए थी तब सिर्फ उसके काम उसका हौसला ही आया सरकार कहीं नज़र आई . अब दुनिया है, कैमरे हैं तमाम ऑफर हैं. ज्योति अब सब जानती है, मुस्कुराती है. उसकी दुश्वारियां कम हुई हैं खत्म नहीं लेकिन कैमरों के लिए उसने मुस्कुराना सीख लिया है.

Web Title: Jyoti Kumari who cycled 1,200 km carrying her ailing father from Gurugram to Darbhanga, overwhelmed by support.

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