14 साल बाद भाजपा और बाबूलाल मरांडी को क्यों आई एक दूसरे की याद, जानें वजह
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 17, 2020 06:07 PM2020-02-17T18:07:42+5:302020-02-17T18:07:42+5:30
झारखंडः भाजपा से अलग होने के बाद बाबूलाल मरांडी की छवि कमजोर नेता की होने लगी थी। चुनावों में लगातार हार के चलते उनकी पार्टी भी अस्तित्व खोती नजर आ रही थी। 2009 के बाद 2019 तक बाबूलाल मरांडी कोई चुनाव नहीं जीत पाए थे।
14 साल पहले भाजपा से नाता तोड़ चुके झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की घर वापसी हुई है। भाजपा ने भी बाबूलाल मरांडी का बांहें खोलकर स्वागत किया है। सवाल यह उठता है कि दो धुरविरोधियों के सुर फिर कैसे मिलने लगे.. दोनों एक दूसरे का विकल्प कैसे बन गए। तो आपको बता दें कि इसका सीधा कनेक्शन राज्यसभा से है। राज्यसभा में 9 अप्रैल को झारखंड से दो सीटें खाली हो रही हैं। राजनीति के जानकारों की मानें तो भाजपा और मरांडी की जुगलबंदी इस जंग को जीतने के लिए हुई है।
राज्यसभा में झारखंड से दो सीटें खाली होने के बाद उम्मीदवार तय किए जाएंगे। चुनाव में जीत के लिए उम्मीदवार को कम से कम 28 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी। झारखंड में सरकार बना चुकी झामुमो के पास 30 विधायक हैं। बाबूलाल मरांडी के भाजपा में शामिल हो जाने के बाद झामुमो की विधायक संख्या 26 हो जाएगी। आजसू के दो विधायकों को मिला लें तो भाजपा समर्थक विधायकों की संख्या 28 हो जाती है। भाजपा यह भी दावा कर रही है कि दो निर्दलीय विधायक भी उनके संपर्क में हैं। इन्हें मिला लें तो भाजपा समर्थित विधायकों की संख्या 30 तक पहुंच जाती है। अगर भाजपा का यह तीन-तिकड़म सटीक साबित हुआ तो भाजपा अपना एक उम्मीदवार झारखंड से राज्यसभा में भेज सकती है। वहीं झामुमो भी अपना एक उम्मीदवार आसानी से राज्यसभा भेज सकती है।
बाबूलाल मरांडी की कमजोर होती छवि
भाजपा से अलग होने के बाद बाबूलाल मरांडी की छवि कमजोर नेता की होने लगी थी। चुनावों में लगातार हार के चलते उनकी पार्टी भी अस्तित्व खोती नजर आ रही थी। 2009 के बाद 2019 तक बाबूलाल मरांडी कोई चुनाव नहीं जीत पाए थे। 2019 में उनकी किस्मत ने साथ दिया और एक दशक बाद विधानसभा चुनाव में वे जीत का स्वाद चख सके। झारखंड विधानसभा चुनाव में धनवार से उन्होंने जीत हासिल की। चुनावों में भले ही उनकी पार्टी को सिर्फ तीन सीटों पर जीत से संतोष करना पड़ा हो लेकिन उनके लिए यह जीत वरदान साबित होती दिख रही है। साफ शब्दों में कहें तो, बाबूलाल मरांडी द्वारा भाजपा का दामन थामना लगभग तय माना जा रहा था। मरांडी को अपने सियासी करियर का अस्तितिव बचाए रखने के लिए आज न कल यह कदम उठाना ही पड़ता।
बाबूलाल मरांडी का बढ़ सकता है कद
केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने बाबूलाल मरांडी को माला पहनाकर पार्टी में शामिल करवाया। जिस गर्मजोशी के साथ भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को अपनाया है, इससे यह तो साफ है कि उन्हें पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा मरांडी को मंत्री पद से नवाज सकती है।