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Jharkhand Assembly Election: सरकार बनाने में आदिवासियों की अहम भूमिका, सभी पार्टियों की इन पर टिकी निगाहें, पढ़ें- विस्तृत रिपोर्ट

By एस पी सिन्हा | Updated: September 10, 2019 18:24 IST

झारखंड विधानसभा चुनाव: लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों ने बड़े पैमाने पर 'नोटा के भी बटन दबाए थे, यह भी सभी दलों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. झारखंड सरकार ने पत्थलगडी के खिलाफ विज्ञापन छपवाए और स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कई सार्वजनिक मंचों से इसे देशद्रोह कहा.

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ठळक मुद्देझारखंड में विधानसभा चुनाव का बिगुल अभी बजा भी नहीं है, लेकिन राजनीतिक दल अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने में जुट गए हैं. झारखंड में सरकार बनाने में निर्णायक माने जाने वाले आदिवासी समुदाय के वोटों पर भाजपा सहित सभी दलों की नजरें टिकी हैं. इसी के चलते भाजपा ने अपने रणनीति में तेजी से बदलाव किया है.

झारखंड में विधानसभा चुनाव का बिगुल अभी बजा भी नहीं है, लेकिन राजनीतिक दल अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने में जुट गए हैं. झारखंड में सरकार बनाने में निर्णायक माने जाने वाले आदिवासी समुदाय के वोटों पर भाजपा सहित सभी दलों की नजरें टिकी हैं. इसी के चलते भाजपा ने अपने रणनीति में तेजी से बदलाव किया है. भाजपा की नजर आदिवासी क्षेत्रों पर टिकी है. लिहाजा सरकार की योजनाएं भी इसी क्षेत्र पर केंद्रित हैं. वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कमान आदिवासी समुदाय से आने वाले रामेश्वर उरांव के हाथों में सौंपी गई है. 

जबकि, आदिवासियों की पार्टी का दम भरने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) इन दिनों प्रदेश में बदलाव यात्रा चला रही है. इस बीच भाजपा ने झारखंड में आदिवासियों के लिए एकलव्य मॉडल स्कूल खोलने का ऐलान किया है. यहां बता दें कि झारखंड में करीब 26 फीसदी आदिवासी समुदाय का वोटर हैं, जो राजनीतिक दलों का सियासी समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. 

लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों ने बड़े पैमाने पर 'नोटा के भी बटन दबाए थे, यह भी सभी दलों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. झारखंड सरकार ने पत्थलगडी के खिलाफ विज्ञापन छपवाए और स्वयं मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कई सार्वजनिक मंचों से इसे देशद्रोह कहा. जबकि आदिवासी इसे अपनी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा बताते हैं. इस कारण अधिकतर आदिवासियों में आक्रोश है. ऐसे में आदिवासियों का मानना है कि भाजपा की सरकार के दौरान आदिवासियों के खिलाफ कई साजिश की गई. वे मानते हैं कि आदिवासी राज्य में गैरआदिवासी मुख्यमंत्री बनाना सबसे बड़ी साजिश है. 

उनका मानना है कि सीएनटी एक्ट और भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की कोशिश, वनाधिकार कानून को खत्म कर आदिवासियों को जंगलों से बेदखल करने की कोशिश, स्थानीय नीति की गलत व्याख्या, धर्मांतरण बिल आदि लाकर भाजपा सरकार ने उनका हक मारने की कोशिश की है. 

वहीं, चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक झारखंड में इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान 1,85,397 मतदाताओं ने किसी प्रत्याशी को चुनने के बजाय नोटा दबाना ज्यादा मुनासिब समझा. राज्य की सभी 14 लोक्सभा सीटों पर चुनाव लड़े कुल 229 उम्मीदवारों में से 159 को उनके क्षेत्र में नोटा से कम वोट मिले. 

आंकड़ों के मुताबिक, नोटा दबाने का चलन आदिवासी क्षेत्रो में ज्यादा रहा. सिंहभूम, दुमका, राजमहल जैसे एसटी रिजर्व क्षेत्रों के अलावा कोडरमा, गिरिडीह और गोड्डा क्षेत्र के जनजातीय इलाके में नोटा चुनने वाले मतदाताओं की संख्या अधिक रही. कोडरमा में सबसे अधिक 31,164 वोटरों ने नोटा चुना. सिंहभूम में 24261, गिरिडीह में 19669, गोड्डा में 18650, दुमका में 14365, राजमहल में 12898 लोगों ने नोटा चुना.

आदिवासियों की नाराजगी की वजह से मोदी सरकार में जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने ऐलान किया है कि आदिवासियों के लिए देशभर में नवोदय विद्यालय की तर्ज पर एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों की स्थापना की जाएगी. अगले तीन सालों में पूरे देश में प्रखंड स्तर पर ऐसे 462 एकलव्य मॉडल स्कूल खोले जाएंगे. इनमें 69 की स्थापना झारखंड में होगी. 

अर्जुन मुंडा ने बताया कि एकलव्य मॉडल स्कूल की स्थापना उन प्रखंडों में होगी, जहां अनुसूचित जनजाति की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा हो या उनकी जनसंख्या 20 हजार से अधिक हो. इसकी स्थापना केंद्र और राज्य सरकार मिलकर करेगी. 

यहां बता दें कि झारखंड की कुल 81 विधानसभा सीटों में से 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 13-13 सीटें हासिल हुई थीं. जबकि दो सीटों पर अन्य उम्मीदवार विजयी हुए थे. 

झारखंड में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 65 से अधिक सीटें जीतने का टारगेट रखा है. जबकि भाजपा 2014 के विधानसभा चुनाव में 37 सीटें ही जीती थी. भाजपा के सहयोगी आजसू को 5 सीटें मिली थीं. भाजपा को 2014 के चुनाव में 31.3 प्रतिशत वोट मिले थे. ऐसे में भाजपा इस बार के चुनाव में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाना चाहती है. इसे 50 प्रतिशत तक ले जाने की योजना है. इसके लिए भाजपा ने 25 लाख नए सदस्य बनाने का दावा किया है. ऐसे में उन्हें लगता है कि नए सदस्यों के जरिए विधानसभा चुनाव में 65 पार का लक्ष्य भी हासिल हो जाएगा. साथ ही मत प्रतिशत भी बढ़ जाएगा, इसके लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास 15 सिंतबर से आशीर्वाद यात्रा शुरू करने जा रहे हैं.

भाजपा आदिवासी बहुल क्षेत्रों में कार्यक्रमों के जरिए पैठ बनाने में लगी है. पार्टी के छोटे-छोटे कार्यक्रमों में भी मुख्यमंत्री रघुवर दास और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा पहुंच रहे हैं. कोल्हान में जनजातीय सम्मेलन में प्रदेश के तमाम बड़े नेताओं की मौजूद थे. बहरागोडा में मूर्ति अनावरण कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पहुंचे. वहां स्कूलों में संताली भाषा पढ़ाई होने की घोषणा की. ये बातें रणनीति में बदलाव को पुख्ता कर रही हैं. 

सूत्रों के मुताबिक, चुनाव से पहले सरकार और पार्टी धर्मांतरण और सरना कोड पर बड़ा दांव खेल सकती है. इसके लिए पार्टी के आदिवासी नेताओं को तैयार किया जा रहा है. समय-समय पर उनसे इस मुद्दे पर बयान दिलाया जा रहा है. पिछली कार्यसमिति में भी भाजपा जनाजाति मोर्चा के अध्यक्ष सह विधायक राम कुमार पाहन से इस मुद्दे को उठवाया गया था. पार्टी के राजनीतिक प्रस्ताव में भी जिक्र था. कार्यक्रमों में भी इन मुद्दों को उठाया जा रहा है. 

सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों हर क्षेत्र में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक होगी. चुनाव से पहले आदिवासी और जनजातीय क्षेत्र में विशेष रूप से कार्यसमिति की बैठक बुलाकर खास मैसेज देने की योजना है. सूत्रों की मानें तो पार्टी नेतृत्व ने रघुवर सरकार को आदिवासी व जनजातीय समाज को केंद्रित कर योजना तैयार करने का निर्देश दिया था, जिसपर सरकार ने इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया है. 

नेतरहाट की तर्ज पर स्कूल खोलने की बात हुई तो संताल परगना का क्षेत्र को भी चुना गया. देवघर को हवाई मार्ग से जोड़ा जा रहा है, तो एम्स की स्थापना की जा रही है. आदिम जनजातीय समुदाय के घरों तक अनाज पहुंचाने की योजना शुरू की गई है. 

वहीं, चुनाव मैदान में उतरने से पहले ही विपक्ष सुस्त नजर आ रहा है. हालांकि झामुमो बदलाव यात्रा के जरिए जनता के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज करने की जुगत में जुटी है, वहीं कांग्रेस अभी भी संगठन को दुरुस्त करने में ही उलझी हुई है. बहरहाल. इस सियासी इस जंग में बाजी वही मारेगा जो जनता के बीच उपस्थिति और छवि बनाने में सफल होगा.

टॅग्स :झारखंड विधानसभा चुनाव 2019भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)झारखंड मुक्ति मोर्चा
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