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जनक हाजी जलील अहमद अंसारी का ऋणी रहेगा भदोही का कालीन उद्योग, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की सरकारें पूछ रही हैं इसका राज

By भाषा | Updated: February 16, 2020 15:31 IST

जनक हाजी जलील अहमद अंसारी ने बताया कि घर की माली हालत अच्छी न होने के कारण महज आठ वर्ष की उम्र में वह अपने पिता स्वर्गीय हाजी बिस्मिल्लाह अंसारी के साथ कालीन बनाने के काम में हाथ बंटाने लगे और 1945 में छठवीं कक्षा के बाद उनकी पढ़ाई छूट गई।

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ठळक मुद्देअंसारी ने अपनी एक जिद में कालीन मेला लगाने की ठानी जलील अहमद अंसारी का नाम भी आने वाली पीढ़ियां इतिहास में पढ़ेंगी ।

भारत में कालीन उद्योग को लाने के लिए जिस तरह मुगल बादशाह अकबर का नाम इतिहास में दर्ज है, उसी तरह भारतीय कालीन का परचम दुनिया में लहराने के लिए और कालीन उद्योग में एशिया के सबसे बड़े कालीन मेले के जनक हाजी जलील अहमद अंसारी का नाम भी आने वाली पीढ़ियां इतिहास में पढ़ेंगी ।

अंसारी ने अपनी एक जिद में कालीन मेला लगाने की ठानी और आज उसे इस मुकाम पर पहुंचा दिया, जहां चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की सरकारें और वहां कालीन मेला लगाने वाले उनसे भारत के कालीन मेले की सफलता का राज पूछ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के कालीन निर्माता और निर्यातक अट्ठासी साल के जलील अहमद अंसारी के प्रयासों से भदोही में प्रदेश सरकार द्वारा कारपेट एक्सपो मार्ट को आकार दिया गया है। उन्होंने कहा, "40 साल पहले एक सपना देखा था कि भदोही में कालीन मेला लगाएंगे और वह सपना आज पूरा होते देख रहा हूं।"

अंसारी ने बताया कि घर की माली हालत अच्छी न होने के कारण महज आठ वर्ष की उम्र में वह अपने पिता स्वर्गीय हाजी बिस्मिल्लाह अंसारी के साथ कालीन बनाने के काम में हाथ बंटाने लगे और 1945 में छठवीं कक्षा के बाद उनकी पढ़ाई छूट गई। कालीन बुनने में उनकी महारत के कारण उन्हें कम उम्र में ही एक कंपनी में मैनेजर बना दिया गया।

इस दौरान 1960 में अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ से उनका नाता जुड़ा और 1967 में उन्होंने ‘ताजमहल आर्ट्स’ के नाम से अपनी कंपनी खोली। पहले साल 150 रूपए का कालीन निर्यात किया। उस समय भदोही से पांच करोड़ रूपए के कालीन का सालाना निर्यात होता था। भारत में कालीन मेले के सफर के बारे में उन्होंने बताया कि 1980 में दिल्ली के प्रगति मैदान में 10 लोगों को मेला लगाने के लिए बुलाया गया, लेकिन कोई विदेशी आयातक न होने से बड़ी निराशा हुई।

इससे नाराज दस पंद्रह लोगों ने खुद कालीन मेला लगाने का संकल्प लिया और 20 लोगों ने अपने पास से पैसा लगाकर ऑल इंडिया कारपेट ट्रेड फेयर कमेटी का गठन कर रजिस्ट्रेशन करा लिया । अंसारी ने बताया कि शुरू में कमेटी के ऑफिस के लिए उन्होंने चौरी रोड के अपने घर पर दो बड़े कमरे दिए।

इसके बाद 15 लोगों ने देश के अलग अलग शहरों में घूमकर सर्वे किया और दिल्ली के ताज होटल में मेला लगाने का फैसला किया । खुद के पैसे से सभी ने होटल बुक कर उसमें सिर्फ 25 स्टॉल लगाए। हालांकि कई देशों को सूचित और आमंत्रित किए जाने के बावजूद जवाब उत्साहवर्धक नहीं रहा। ताज होटल में दो वर्ष तक मेला लगाया गया ।

उसके बाद होटल डी पेरिस के लॉन में मेला लगने लगा और धीरे-धीरे विदेशी आयातक आने लगे । अंसारी बताते हैं कि साल दर साल मेले की लोकप्रियता बढ़ने लगी तो अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के अनुरोध पर केंद्र सरकार के कपड़ा मंत्री ने कालीन के निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में पहल की और दिल्ली के प्रगति मैदान में बड़े पैमाने पर मेला लगने लगा ।

अंसारी बताते हैं, ‘‘नब्बे के दशक में मेला खासा लोकप्रिय हो गया और जब मैं कमेटी का चेयरमैन बना तो यह विचार सामने आया कि क्यों ना यह मेला भदोही में लगाया जाए और इस उद्देश्य से भदोही में कारपेट एक्सपो मार्ट बनना खुशी की बात है और अब बस अक्टूबर में मेले के आयोजन का बेसब्री से इंतजार है।’’ अंसारी का कहना है कि भारत का कालीन निर्यात 1960 में 436 करोड रुपए से शुरू होकर 2020 में 10,000 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर चुका है । हालांकि अंसारी को उम्मीद है कि गंभीर प्रयासों से इस आंकड़े को जल्द दोगुना किया जा सकता है।

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