गुजरात: बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को कस्टोडियल डेथ मामले में उम्रकैद की सजा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 20, 2019 12:41 PM2019-06-20T12:41:37+5:302019-06-20T14:23:04+5:30

अभियोजन के अनुसार संजीव भट्ट ने एक सांप्रदायिक दंगे के दौरान एक सौ से अधिक व्यक्तियों को हिरासत में लिया था और इन्हीं में से एक व्यक्ति की रिहाई होने के बाद अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी।

Jamnagar Sessions Court sentences former IPS officer Sanjeev Bhatt to life imprisonment under IPC 302 in 1990 custodial death case. | गुजरात: बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को कस्टोडियल डेथ मामले में उम्रकैद की सजा

संजीव भट्ट को 30 साल पुराने मामले में सजा सुनाई गई है।

Highlightsसंजीव भट्ट को बगैर अनुमति के ड्यूटी से अनुपस्थित रहने और सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने के आरोप में 2011 में निलंबित किया गया था अगस्त, 2015 में पूर्व आईपीएस अधिकारी को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

गुजरात के जामनगर की एक अदालत ने बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट (55) को लगभग तीन दशक पुराने हिरासत में मौत (कस्टोडियल डेथ) से जुड़े एक मामले में गुरुवार को उम्रकैद की सजा सुनाई है।

इससे पहले 12 जून को सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में मौत के 30 साल पुराने एक मामले में 11 अतिरिक्त गवाहों का परीक्षण करने का अनुरोध करने वाली बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। संजीव ने शीर्ष अदालत का रुख कर कहा था कि मामले में एक उचित और निष्पक्ष फैसले तक पहुंचने के लिए इन 11 गवाहों का परीक्षण जरूरी है।

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हालांकि, गुजरात पुलिस ने उनकी इस याचिका का सख्त विरोध करते हुए न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ से कहा कि यह मामले के फैसले में विलंब करने का एक हथकंडा है। गुजरात पुलिस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह और अधिवक्ता रजत नायर ने पीठ से कहा कि 1990 में हिरासत में मौत के इस मामले में अंतिम बहस पूरी हो चुकी है और निचली अदालत ने कहा है कि इस मामले में 20 जून को फैसला सुनाया जाएगा।

भारतीय पुलिस सेवा के बर्खास्त अधिकारी संजीव भट्ट इस मामले में आरोपी हैं। इस घटना के वक्त वह गुजरात के जामनगर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे। भट्ट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने दलील दी कि मामले में निष्पक्ष सुनवाई के लिए इन गवाहों का परीक्षण बहुत जरूरी है। इस पर, सिंह ने अदालत से कहा कि यह मामला करीब तीन दशक तक खींचा गया है और चूंकि शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ इस तरह की एक याचिका पर 24 मई को आदेश सुना चुकी है इसलिए उनकी की याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

पीठ ने 24 मई के आदेश को देखने के बाद कहा कि वह तीन न्यायाधीशों की पीठ के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और याचिका खारिज कर दी। सुनवाई के दौरान पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के 16 अप्रैल के फैसले के खिलाफ शीर्ष न्यायालय का रुख करने में हुई देर पर भी सवाल किया। पीठ ने खुर्शीद से कहा कि आप पहले ही अदालत में क्यों नहीं आए? जिस आदेश को (गुजरात उच्च न्यायालय का) को चुनौती दी गई है वह 16 अप्रैल का है। उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ इस अदालत ने 24 मई को आदेश दिया था।

अभियोजन के अनुसार संजीव भट ने एक सांप्रदायिक दंगे के दौरान एक सौ से अधिक व्यक्तियों को हिरासत में लिया था और इन्हीं में से एक व्यक्ति की रिहाई होने के बाद अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी। संजीव भट्ट को बगैर अनुमति के ड्यूटी से अनुपस्थित रहने और सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने के आरोप में 2011 में निलंबित किया गया था और बाद में अगस्त, 2015 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।

भट्ट ने गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुये इसी महीने शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने हिरासत में मौत के मुकदमे की सुनवाई के दौरान पूछताछ के लिये अतिरिक्त गवाहों को बुलाने का उनका का अनुरोध अस्वीकार कर दिया था। गुजरात सरकार ने पूर्व आईपीएस के इस प्रयास को मुकदमे में विलंब करने का हथकंडा करार दिया। 

Web Title: Jamnagar Sessions Court sentences former IPS officer Sanjeev Bhatt to life imprisonment under IPC 302 in 1990 custodial death case.

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