LoC पर एक और हिमस्खलन में मौतें, लेकिन दुर्गम पोस्टों से जवान नहीं हटाएगी सेना, पाक सेना पर नहीं विश्वास 

By सुरेश एस डुग्गर | Published: January 8, 2020 04:30 PM2020-01-08T16:30:07+5:302020-01-08T16:30:07+5:30

पाकिस्तान से सटी एलओसी पर दुर्गम स्थानों पर हिमस्खलन के कारण होने वाली सैनिकों की मौतों का सिलसिला कोई पुराना नहीं है बल्कि करगिल युद्ध के बाद सेना को ऐसी परिस्थितियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है।

Jammu-kashmir: Deaths in another avalanche at LoC, but army will not remove troops from inaccessible posts | LoC पर एक और हिमस्खलन में मौतें, लेकिन दुर्गम पोस्टों से जवान नहीं हटाएगी सेना, पाक सेना पर नहीं विश्वास 

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Highlightsजम्मू संभाग में पुंछ जिले में एलओसी की एक दुर्गम सीमा चौकी शंख पर हुए हिमस्खलन में मौतें हुई हैं। गैर सरकारी तौर पर कहा जा रहा है कि कुछ जवान अभी भी बर्फ में लापता हैं।

जम्मू संभाग में पुंछ जिले में एलओसी की एक दुर्गम सीमा चौकी शंख पर हुए हिमस्खलन में मौतें हुई हैं। आधिकारिक पुष्टि एक पोर्टर की जान जाने की है जबकि गैर सरकारी तौर पर कहा जा रहा है कि कुछ जवान अभी भी बर्फ में लापता हैं। वैसे यह कोई पहली हिमस्खलन की घटना नहीं है एलओसी पर बल्कि सेना ऐसी घटनाओं से सर्दियों में दो चार होती रहती है पर बावजूद इसके वह दुर्गम चौकिओं से अपने जवानों को हटाने को राजी इसलिए नहीं है क्योंकि पाक सेना के वादों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

इस घटना में सेना के एक पोर्टर की जान चली गई। वहीं कई अन्य घायल हो गए हैं। मृतक पोर्टर की पहचान जफर इकबाल के रूप में हुई है। जानकारी मिलते ही सेना ने बचाव कार्य शुरू किया था। कड़ी मशक्कत के बाद जवानों ने जफर को बर्फ से बाहर निकाला, लेकिन तब तक उनकी जान चली गई थी। वहीं दो अन्य घायलों को बचाने में सेना को सफलता मिली। घायलों को उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

पाकिस्तान से सटी एलओसी पर दुर्गम स्थानों पर हिमस्खलन के कारण होने वाली सैनिकों की मौतों का सिलसिला कोई पुराना नहीं है बल्कि करगिल युद्ध के बाद सेना को ऐसी परिस्थितियों के दौर से गुजरना पड़ रहा है। करगिल युद्ध से पहले कभी कभार होने वाली इक्का दुक्का घटनाओं को कुदरत के कहर के रूप में ले लिया जाता रहा था पर अब करगिल युद्ध के बाद लगातार होने वाली ऐसी घटनाएं सेना के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही हैं।

वर्ष 2019 में 18 जवानों की मौत बर्फीले तूफानों के कारण हुई है। जबकि 2018 में 25 जवानों को हिमस्खलन लील गया था। अधिकतर मौतें एलओसी की उन दुर्गम चौकिओं पर घटी थीं जहां सर्दियों के महीनों में सिर्फ हेलिकाप्टर ही एक जरीया होता है पहुंचने के लिए। ऐसा इसलिए क्योंकि भयानक बर्फबारी के कारण चारों ओर सिर्फ बर्फ के पहाड़ ही नजर आते हैं और पूरी की पूरी सीमा चौकियां बर्फ के नीचे दब जाती हैं।

हालांकि ऐसी सीमा चौकिओं की गिनती अधिक नहीं हैं पर सेना ऐसी चौकिओं को करगिल युद्ध के बाद से खाली करने का जोखिम नहीं उठा रही है। दरअसल करगिल युद्ध से पहले दोनों सेनाओं के बीच मौखिक समझौतों के तहत एलओसी की ऐसी दुर्गम सीमा चौकिओं तथा बंकरों को सर्दी की आहट से पहले खाली करके फिर अप्रैल के अंत में बर्फ के पिघलने पर कब्जा जमा लिया जाता था। ऐसी कार्रवाई दोनों सेनाएं अपने अपने इलाकों में करती थीं।

पर अब ऐसा नहीं है। कारण स्पष्ट है। करगिल का युद्ध भी ऐसे मौखिक समझौते को तोड़ने के कारण ही हुआ था जिसमें पाक सेना ने खाली छोड़ी गई सीमा चौकिओं पर कब्जा कर लिया था। नतीजा सामने है। करगिल युद्ध के बाद ऐसी चौकिओं पर कब्जा बनाए रखना बहुत भारी पड़ रहा है। सिर्फ खर्चीली हीं नहीं बल्कि औसतन हर साल कई जवानों की जानें भी इस जद्दोजहद में जा रही हैं।

दरअसल इस बार बर्फबारी ने उस तारबंदी को बुरी तरह से कई इलाकों में क्षतिग्रस्त कर दिया है जो पाकिस्तानी क्षेत्र से होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए लगाई गई थी। हालांकि यह कोई पहला अवसर नहीं था जब तारबंदी को बर्फबारी ने क्षति पहुंचाई हो बल्कि हर साल होने वाली बर्फबारी तारबंदी को नुक्सान पहुंचाती है और फिर सेना के जवान उसे नए सिरे से खड़ा करते हैं।

सेना प्रवक्ता का कहना था कि फिलहाल इसके प्रति अंदाजा लगाना कठिन है कि तारबंदी के कितने किमी के हिस्से को क्षति पहुंची है क्योंकि एलओसी के ऊंचाई वाले इलाकों में फिलहाल बर्फबारी रूकी नहीं थी तथा वहां तक सेना के जवान पहुंचने में कामयाब नहीं हुए थे।

इतना जरूर था कि बर्फबारी के कारण क्षतिग्रस्त हुर्द तारबंदी सेना के लिए मुसीबत इसलिए बन गई है क्यांेकि हर बार उसका यह अनुभव रहा है कि आतंकी टूटी हुई तारबंदी का सहारा लेकर घुसने की कोशिश करते रहते हैं। यही कारण है कि तारबंदी के क्षतिग्रस्त होने के बाद सेना को एलओसी पर चौकसी तथा सतर्कता को और बढ़ाना पड़ा है क्योंकि पूर्व में भी पाक सेना इन्हीं परिस्थितियों का लाभ उठाने की कोशिश करती रही है।

भारी बर्फबारी के बावजूद सेना एलओसी की उन पोस्टों से अपने जवानों को हटाने को तैयार नहीं थी जो 10-15 फुट बर्फ के नीचे दब गई हैं। रक्षा प्रवक्ता कहते थे कि असल में तारबंदी भी बर्फ के नीचे दफन हो गई है और इन पोस्टांे से सैनिकों को हटा लिए जाने का मतलब साफ होता कि घुसपैठियों को कश्मीर की एलओसी पर दूसरा करगिल प्रकरण तैयार करने का मौका प्रदान करना।

अभी तक हुई हिमस्खलन की प्रमुख घटनाएं:-

30 नवंबर, 2019 - सियाचिन ग्लेशियर में भारी हिमस्खलन में सेना की पेट्रोलिंग पार्टी के दो जवान शहीद।

18 नवंबर, 2019 - सियाचिन में हिमस्खलन की चपेट में आकर चार जवान शहीद, दो पोर्टर भी मारे गए।

10 नवंबर, 2019 - उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में हिमस्खलन की चपेट में आकर सेना के दो पोर्टरों की मौत।

31 मार्च, 2019 - उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा में हिमस्खलन में दबकर मथुरा के हवलदार सत्यवीर सिंह शहीद।

3 मार्च, 2019 - करगिल के बटालिक सेक्टर में ड्यूटी के दौरान हिमस्खलन में पंजाब के नायक कुलदीप सिंह शहीद।

8 फरवरी, 2019 - जवाहर टनल पुलिस पोस्ट हिमस्खलन की चपेट में आई, 10 पुलिसकर्मी लापता, आठ बचाए गए।

3 फरवरी, 2016 - हिमस्खलन से 10 जवान शहीद, बर्फ से निकाले गए लांस ना यक हनुमनथप्पा ने छह दिन बाद दम तोड़ दिया।

16 मार्च, 2012 - सियाचिन में बर्फ में दबकर छह जवान हुए शहीद।
 

Web Title: Jammu-kashmir: Deaths in another avalanche at LoC, but army will not remove troops from inaccessible posts

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