जम्मू कश्मीरः मुठभेड़ की जगहों पर मिलने वाले विस्फोटक बरपा रहे कहर, 15 सालों में 320 लोगों की ले चुके हैं जान
By सुरेश एस डुग्गर | Published: July 6, 2021 02:40 PM2021-07-06T14:40:54+5:302021-07-06T14:46:48+5:30
आतंकियों के साथ होने वाली मुठभेड़ों के बाद पीछे छूट जाने वाले गोला-बारूद को एकत्र करने की होड़ में मासूम कश्मीरी मारे जा रहे हैं। पिछले 15 सालों के भीतर ऐसे विस्फोट 320 जानें ले चुके हैं।
जम्मूः अनंतनाग के बिजबिहाड़ा के सिरहामा में मुठभेड़स्थल पर मिले गोला-बारूद में कुछ दिन पहले विस्फोट होने से जख्मी चार लोग जिन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं। इस घटना से कुछ दिन पहले पुलवामा में एक मुठभेड़स्थल से मिले विस्फोट में हुए धमाके में 6 लोग जख्मी हो गए थे। उससे पहले त्राल में इस प्रकार के एक विस्फोट ने दो मासूमों की जान ले ली थी। आतंकियों के साथ होने वाली मुठभेड़ों के बाद पीछे छूट जाने वाले गोला-बारूद को एकत्र करने की होड़ में मासूम कश्मीरी मारे जा रहे हैं। पिछले 15 सालों के भीतर ऐसे विस्फोट 320 जानें ले चुके हैं, जबकि कई जख्मी हो चुके हैं और कई जिन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं।
15 सालों के अरसे के भीतर ऐसे विस्फोटों में मरने वाले अधिकतर बच्चे ही थे। कुछ युवक और महिलाएं भी ऐसी दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं। कई बार बच्चे मुठभेड़स्थलों से उठाकर बमों को घर ले आते हैं और उन्हें तोड़ने का प्रयास करते हैं। ऐसे विस्फोटों ने न सिर्फ मासूमों को लील लिया बल्कि कई आज भी उस दिन को याद कर सिहर उठते हैं, जब उनके द्वारा उठा कर लाए गए बमों ने उन्हें अपंग बना दिया।
सुरक्षाबलों की ओर से यह स्पष्ट हिदायत दी जाती रही है कि कोई भी नागरिक मुठभेड़स्थलों की ओर तब तक न जाएं जब तक विशेषज्ञों द्वारा उन स्थानों को सुरक्षित करार न दे दिया जाए जहां मुठभेड़ होती हैं। बावजूद इसके इन हिदायतों पर कोई अमल नहीं करता। जिसका नतीजा सामने है। 15 सालों के भीतर 320 से अधिक लोगों की जानें वे बम और गोला-बारूद ले चुके हैं, जो मुठभेड़स्थलों के मलबे में आतंकियों द्वारा छोड़ दिए जाते हैं या फिर सुरक्षाबलों की ओर से दागे जाने वाले मोर्टार के गोले मिस फायर हो जाते हैं। कभी सुरक्षाबलों का गोला-बारूद भी मुठभेड़स्थलों पर छूट जाता है।
हालत यह है कि कश्मीर के हर कस्बे में बीसियों ऐसे मुठभेड़स्थल हैं जिनके मलबे से निकलने वाले विस्फोटक कई महीनों के बाद भी नागरिकों के लिए खतरा बन कर सामने आ रहे हैं। दरअसल इन मुठभेड़स्थलों के मलबे को कई-कई महीने नहीं हटाया जाता और मासूम बच्चे उनमें से कबाड़ बीनने के चक्कर में अक्सर मौत बीन लेते हैं।